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Read moreमैं बिस्तर पर से उठा,अचानक छाती में दर्द होने लगा मुझे… हार्ट की तकलीफ तो नहीं है. ..? ऐसे विचारों...
Read moreएक राजा के राज्य में फकीर रहता था। राजा का रोजाना का नियम था। सुबह 9:00 बजे से शाम 5:00 बजे तक अपने खजाने से गरीबों व भिखारियों को दान किया करता था अर्थात खजाना, पैसा बांटा करता था। जिससे उस राजा को बहुत खुशी मिलती थी। एक फकीर रोज आता था और लाइन में लग जाता था जो भी उससे पहले खड़े होते थे उसके बाद जो और लोग आते थे वह उनको अपनी बारी, अपना टर्न और लोगों को देता रहता था। धीरे–धीरे शाम के 5:00 बज जाते थे और फकीर का नंबर नहीं आता था। धीरे–धीरे कई दिन बीत चुके थे। ऐसा ही रोजाना होता था। फकीर अपना टर्न अपनी वारी दूसरों को देता रहता था। और शाम 5:00 बजे तक उसको दान नहीं मिलता था। यह क्रिया राजा का एक दरबारी देखता रहता था और नोट करता रहता था। उसने यह सारी बात राजा को बताई राजा ने भी गौर किया उसके बाद राजा ने उस फकीर को बुलाया और उस फकीर महाशय से पूछा हे महाशय! तुम रोज हमसे दान लेने के लिए आते हो लेकिन रोजाना खाली हाथ लौट जाते हो। तुम लोगों को अपने आगे करते रहते हो और अपना नंबर दूसरों को देते रहते हो। फकीर ने कहा! राजा जी आप राजा हो आपके पास संपत्ति, अमानत, रुपया, पैसा सब कुछ है। आप यह दान करते हो और मेरे पास वारी है, टर्न है। मैं वह दान करता हूं। राजा जी जब आप किसी को दान दिया करते थे तब आपके चेहरे पर एक अलग ही खुशी दिखाई देती थी। मैं उस खुशी को देखकर सोचने लगा कि राजा दान देकर खुश होते हैं। तो मुझे भी कुछ देना चाहिए। मैं तो फकीर हूं मेरे पास तो कुछ देने के लिए नहीं है। तब मैंने सोचा मेरे पास बारी देने के लिए है, टर्न देने के लिए है। मैं तो फकीर हूं मुझे तो यह हीरे, जवाहरात, रत्न, खजाने, रुपया, पैसे लेने की जरूरत ही नहीं है। मेरे लिए यह चीज महत्व नहीं रखती है। तब मैंने देना शुरू किया जिससे मैं आपसे ज्यादा खुशी का अनुभव करने लगा हूं। देवताओं को सदा आशीर्वाद देने के पोज में दिखाते हैं, जिससे उनका चेहरा सदा हर्षित रहता है। लक्ष्मी को धन देने के पोज में दिखाते हैं अर्थात जिसके पास जो होता है, वह देता है। तो हमें सोचना है कि हमारे पास क्या है जो हम लोगों को दे सकें। क्योंकि देना ही लेना है। अगर हम स्थूल या सूक्ष्म में कुछ भी देते हैं तो उसके बदले में हमें कई गुना मिलता है। किसी को सम्मान देंगे, तब हमें कई गुना सम्मान मिलेगा। हम दिन भर लोगों को क्या देते हैं थोड़ा सा इस पर नजर डालते हैं। वर्तमान में जो हम देते हैं हम आज कलियुग के अंत समय में हैं अब हम रोजाना अपने अपने दान को चेक करेंगे। आज हमने क्रोध कितनों को दिया है, कितनों को पत्थर दिए हैं, कितनो को ईर्ष्या दी है, कितनो को घृणा दी है, कितनों को बुरी दृष्टि के द्वारा देखा है, कितनों के अवगुणों को देखा है, देखना अर्थात हमारे संकल्प चलना और संकल्प चलना अर्थात दूसरों को देना। लिस्ट तो बहुत लंबी है यह तो सभी जानते हैं कि हम क्या क्या देते हैं तो उनको लिखना ही शक्ति/एनर्जी को कमजोर करना है क्या हमारे पास यही सब कुछ देने के लिए है, क्या इसकेअलावा और कुछ भी देने के लिए है। थोड़ा हटके सोचते हैं। आज से हमें यह देना है हमारे पास पैसा है तो पैसे का दान कीजिएगा। समय है तो समय का दान कीजिएगा। हमारे पास ज्ञान है तब ज्ञान का दान कीजिएगा अर्थात जो भी हमारे पास है उसका दान कीजिएगा। जिससे वह दान किया हुआ कई गुना हमको वापस होकर मिलता है। इसको देना ही लेना कहा जाता है। शब्दों में कहें कि जब हम छोटे बच्चे को बेटा कहते हैं, तब वह हमें रिस्पेक्ट देता है। माना कि हमारे पास कुछ भी नहीं है। तब हम चलते फिरते जो सामने दिखता है, या जो भी हमें दिन भर में मिलता है, या संबंध संपर्क में आता है उन सभी के लिए कल्याण की भावना रख सकते हैं। उसके लिए कुछ शब्द हम लिख रहे हैं। इससे हम अपने मन के द्वारा दान दे सकते हैं। इसमें खर्च कुछ नहीं है, सिर्फ संकल्प से दान देना है।– सभी का कल्याण हो। सभी सुखी हो और सब का भला हो। सभी का जीवन सफल हो। सभी के जीवन में सुख, शांति, खुशी और पवित्रता आ जाए। सभी निरोगी बन जाए। सभी स्वस्थ हो जाएं। सभी इस वायरस के दुख से मुक्त हो जाएं। सभी के अंदर देवताओं जैसे गुण आ जाएं। सभी सर्वगुण संपन्न बन जाए। सभी निर्विकारी बन जाए। सभी 16 कला संपूर्ण बन जाए। सभी संपूर्ण पवित्र बन जाए। सभी फरिश्ता बन जाए। सभी दूसरे के मददगार बन जाए। सभी सुखी हो जाएं। सभी सदा खुश रहें ……… आदि आदि हम कोई भी दान दे सकते हैं। यह तो कुछ ही हमने दान लिखे हैं जो भी आपको अच्छे लगे आप वह दे सकते हैं। इसमें न समय का खर्च है, न पैसे का, न मेहनत का कोई भी खर्च नहीं है। सिर्फ मन से संकल्प के द्वारा देना है। इसके बदले में अभी कितनी खुशी मिलेगी और बाद में कितना अमाउंट जमा होगा वह तो समय ही बताएगा। शिक्षा :- इस कहानी से हमें यही शिक्षा मिलती है कि किसी के जीवन में बहुत पैसा है, कोई गरीब है। किसी के रिश्ते में बहुत अनबन है, किसी का कुछ हद तक रिश्ता ठीक है। कोई बहुत बीमार है, कोई स्वस्थ/ठीक भी है। इन सबके पीछे राज क्या है? क्योंकि जब हम इस दुनिया में आते हैं तो मुट्ठी बंदकरके आते हैं और जब हम इस दुनिया से जाते हैं तब हाथ फैलाकर जाते हैं। आते समय भी कुछ दिखाई नहीं देता है और जाते समय भी कुछ दिखाई नहीं देता है कि हम क्या लेकर आए थे और अब क्या लेकर जा रहे हैं। फिर यह अमीरी, गरीबी, दुख, कष्ट, बीमारी आदि हमें कैसे प्राप्त होती है। जरूर पिछले जन्म में कुछ हमने दिया होगा उसी के बदले में यह मिल रहा है। अब हमें अगले जन्म के लिए सोचना है कि हमें अगले जन्म में क्या लेना है उसके हिसाब से हमें क्या देना है। संत गुलूराम दरबार साहिब अयोध्या कपिल हासानी
Read moreआज बन्दर और बन्दरिया के विवाह की वर्षगांठ थी। बन्दरिया बड़ी खुश थी। एक नज़र उसने अपने परिवार न प्यारे – प्यारे बच्चे , नाज उठाने वाला साथी , हर सुख–दु:ख में साथ देने वाली बन्दरों की टोली। पर फिर भी मन उदास है। सोचने लगी – “काश ! मैं भी मनुष्य होती तो कितना अच्छा होता ! आज केक काटकर सालगिरह मनाते , दोस्तों के साथ पार्टी करते। हाय ! सच में कितना मजा आता ! बन्दर ने अपनी बन्दरिया को देखकर तुरन्त भांप लिया कि इसके दिमाग में जरुर कोई ख्याली पुलाव पक रहा है। उसने तुरन्त टोका -“अजी, सुनती हो! ये दिन में सपने देखना बन्द करो। जरा अपने बच्चों को भी देख लो, जाने कहाँ भटक रहे हैं.? मैं जा रहा हूँ बस्ती में कुछ खाने का सामान लेकर आऊँगा तेरे लिए। आज तुम्हें कुछ अच्छा खिलाने का मन कर रहा है मेरा। बन्दरिया बुरा सा मुँह बनाकर चल दी अपने बच्चों के पीछे जैसे–जैसे सूरज चढ़ रहा था , उसका पारा भी चढ़ रहा था अच्छे पकवान के विषय में सोचती तो मुँह में पानी आ जाता। पता नहीं मेरा बन्दर आज मुझे क्या खिलाने वाला है ? अभी तक नहीं आया। जैसे ही उसे अपना बन्दर आता दिखा झट से पहुँच गई उसके पास।...
Read moreMahatma Gandhi, the Father of Nation had special attachment with Sindh and Sindhis. Several Sindhi prominent personalities were part of...
Read moreजब बुढ़ापे में अकेला ही रहना है तो औलाद क्यों पैदा करें उन्हें क्यों काबिल बनाएं जो हमें बुढ़ापे में...
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