निश्चित रूप से सिंधी सम्मेलन अच्छी बात है, लेकिन एक अहम सवाल, क्या कोई भी संगठन सिन्धियों की समस्याओं का निराकरण कर सका है ? या इस तरह के सम्मेलन केवल सिन्धियों के सम्पन्न वर्ग का हिस्सा बनकर रह गए हैं ? इस पर विस्तार से विचार की जरूरत है।
बातों से कुछ नहीं होगा, कुछ करके दिखाना होगा।
आजादी के 74 साल बाद भी सिंधी समाज राजनीति आरक्षण से वंचित है। अनेक राज्यों में सिंधी विस्थापितों के जमीन, दुकान, मकानों के पट्टा प्रकरण लंबित हैं, जिस कारण सम्पत्ति की खरीद फरोख्त में परेशानी आ रही है।सिंधी भाषा लुप्तप्राय होने की कगार पर है, जिसे रोजगार से जोड़ने की जरूरत है। राष्ट्रीय सिंधी विकास समिति NCPL की दूर्दशा किसी से छुपी नहीं है। जिसका प्रभार एक गैर सिंधी ही नहीं गैर हिन्दू के पास है, बजट 8 करोड़ से घटाकर ढाई करोड़ कर दिया गया है।
इसे सिन्धियों का दुर्भाग्य ही माना जाएगा कि स्वतंत्र भारत में सिंधु प्रदेश नहीं बन सका। जबकि कच्छ, गांधीधाम, सोराष्ट्र एवं सिंध का एक हिस्सा मिलाकर सिंधु प्रदेश प्रस्तावित था, जिसे उस समय के सिंधी भाषी नेता कथित स्वार्थ के कारण अमली जामा नहीं पहना सके। अगर अलग राज्य बनता तो समाज के कुछ सांसद होते, सौ सवा सो विधायक होते और सिन्धियों की आवाज देशभर में सुनी जाती। लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
आजादी के 74 साल बाद भी सिंधी समाज राजनीति आरक्षण से वंचित है। हमारी यह मांग है कि जहां 5 हजार सिंधी हैं वहां पार्षद, जहां 50 वोटर हैं वहां विधायक और जहां 2 लाख सिंधी हैं वहां सांसद कि टिकट सिंधी भाषी नेता को दिया जाए।
कई अन्य समस्याएं भी हैं, जिनके निराकरण की आवश्यकता है, और इस हेतु राष्ट्रीय स्तर पर सिंधी विकास बोर्ड के गठन की सख्त जरूरत है। इस बावत लोकसभा अध्यक्ष श्री औम बिड़ला जी से संत हिरदाराम नगर भोपाल की अग्रणी सामाजिक संस्था सिंधी सेंट्रल पंचायत के पदाधिकारियों की सांसद श्री शंकर लालवानी की मौजूदगी में दिल्ली में विस्तार से चर्चा हुई थी। हमने श्री शंकर लालवानी को केबिनेट का दर्जा देकर उनकी अध्यक्षता में 21 सदस्यों के सिंधी विकास बोर्ड के गठन का सुझाव दिया था, जिसका कार्यकाल दो साल रखने की मांग की, ताकि यह बोर्ड देशभर की सिंधी बस्तियों का दौरा करे। जिस पर लोकसभा अध्यक्ष सैद्धांतिक रूप से सहमत भी थे। लेकिन कुछ समय बाद ही कोरोना संक्रमण के कारण, मुद्दा आधे में रह गया।
इस पर अब विस्तार से चर्चा किए जाने की आवश्यकता है। ताकि सिंधी विकास बोर्ड देशभर में सिन्धियों की समस्यायों का अध्ययन होने के बाद रिपोर्ट सरकार को प्रस्तुत करें और समस्याओं का समाधान हो सके।
पारिवारिक समस्याएं
सिंधियों कई पारिवारिक समस्याएं भी हैं जैसे कि अंतर्जातीय विवाह बढ़ते जा रहे हैं, परिवार तेजी से टूटते जा रहे हैं, शादी के छह बारह महीने में ही दरार आ रही है, बेटा चाहे बेटियों के रिश्ते देरी से हो रहे हैं। सभी तो नहीं लेकिन अधिकांश सिंधी परिवारों में बड़े बुजुर्गो का सम्मान कम होता जा रहा है, कुछ संतानें संस्कार विहीन होती जा रही हैं। गरीब और अमीर सिंधी परिवारों में लगातार दूरियां बढ़ रही हैं। गरीब सिंधी परिवारों सेवा और मदद का भाव अधिकांश अमीर सिन्धियों में घटता जा रहा है, और अधिकांश परिवार केवल धन जमा करने और ओशो आराम में व्यस्त होते जा रहे हैं।इन मुद्दों पर भी सिंधी सम्मेलनों में चर्चा होनी चाहिए। वरन कोई भी सम्मेलन बड़ा क्यों न मेरी दृष्टि में निरर्थक है।
बुरा लगे तो क्षमा करें
धन्यवाद
आपका व सिंधी समाज का शुभचिंतक
सुरेश जसवानी
महासचिव
सिंधी सेंट्रल पंचायत
संत हिरदाराम नगर भोपाल
09425029911