1- विशेष न्यायाधीश प्रवीण सिंह ने मलिक की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि उसने1994 में बंदूक छोड़ दी थी और उसके बाद उसे एक वैध राजनीतिक व्यक्ति के रूप में मान्यता दी गई थी। न्यायाधीश ने कहा कि यह सही हो सकता है कि अपराधी ने वर्ष 1994 में बंदूक छोड़ दी हो, लेकिन उसने वर्ष 1994 से पहले की गई हिंसा के लिए कभी कोई खेद व्यक्त नहीं किया था।
2- दोषी के दावे पर कि वह अहिंसा के गांधीवादी सिद्धांत का पालन कर रहा था। न्यायाधीश ने कहा कि उसने ऐसा नहीं किया। बंदूक छोड़ने के बावजूद हिंसा में लिप्त था। वहीं गांधी जी ने चौरी चौरा में हिंसा की एक घटना के बाद असहयोग आंदोलन वापस ले लिया।
3- यासीन मलिक के किए गए अपराध बहुत गंभीर प्रकृति के थे। जम्मू-कश्मीर को भारत से जबरदस्ती अलग करने का इरादा था। न्यायाधीश ने कहा कि अपराधों की गंभीरता बढ़ गई क्योंकि राजनीतिक आंदोलन के पीछे विदेशी शक्तियों और नामित आतंकवादियों की सहायता और भागीदारी थी।
4- न्यायाधीश ने कहा सरकार के अच्छे इरादों के साथ विश्वासघात करते हुए उसने राजनीतिक संघर्ष की आड़ में हिंसा को अंजाम देने के लिए एक अलग रास्ता अपनाया। दोषी ने दावा किया कि शांतिपूर्ण अहिंसक संघर्ष का नेतृत्व कर रहा था। हालांकि, सबूत जिसके आधार पर आरोप तय किए गए थे और जिसने उसे दोषी ठहराया है, कुछ और ही कहानी बयां करते हैं। अदालत ने जेकेएलएफ प्रमुख पर 10 लाख रुपये से अधिक का जुर्माना भी लगाया।