Authored by चन्द्र प्रकाश पाण्डेय | नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: Oct 21, 2021, 2:56 PM
प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल के दिनों में अपने जुझारूपन से प्रभावित किया है। गोरखपुर में पुलिसकर्मियों के हाथों कानपुर के व्यापारी की हत्या का मामला हो या लखीमपुर में बीजेपी नेता के काफिले की गाड़ियों से प्रदर्शनकारी किसानों की मौत का मामला… योगी सरकार और बीजेपी को अगर किसी ने सबसे दमदार तरीके से घेरा है तो वह प्रियंका गांधी वाड्रा ही हैं।
पुलिस ने आगरा जाने से रोका तो बोलीं प्रियंका,’तो क्या आपको खुश करने के लिए लखनऊ के गेस्ट हाउस में रहूं?’
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दो मार्मिक तस्वीरें। दोनों ही दलित। दोनों परिवारों ने अपनों को खोया। दोनों परिवारों से हमदर्दी और संवेदना का इजहार। एक तस्वीर यूपी के आगरा की है तो दूसरी पंजाब के तरनतारन की। एक में कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा पीड़ित परिवार का आंसू पोंछ रही हैं, ढांढस बढ़ा रही हैं, तो दूसरी में भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर सिंघु बॉर्डर पर हुई ‘तालिबानी बर्बरता’ में अपने जवान बेटे को खोने वाले बुजुर्ग बाप का दर्द महसूस करते दिख रहे हैं। दोनों घटनाओं में इतनी समानता होने के बाद भी ये दोनों तस्वीरें भारतीय राजनीति की असली सूरत दिखाती हैं जहां संवेदनाएं भी नफा-नुकसान के तराजू पर कसे जाने के बाद फूटती हैं, नफा-नुकसान के गणित से तय होती हैं।
प्रियंका गांधी वाड्रा आगरा में एक दलित युवक की पुलिस हिरासत में संदिग्ध परिस्थिति में मौत को बड़ा सियासी मुद्दा बनाने में जुटी हैं। मकसद है यूपी चुनाव से पहले दलित सुरक्षा के मुद्दे पर योगी आदित्यनाथ सरकार को घेरना। बुधवार को वह आगरा में अरुण वाल्मीकि के घर पहुंचीं। वाल्मीकि की पत्नी उनसे लिपटकर रोने लगीं। प्रियंका भी भावुक हो गईं। वाल्मीकि सफाई कर्मचारी थे और जगदीशपुर थाने में तैनात थे। उन्हें थाने के मालखाने से 25 लाख रुपये चुराने के आरोप में हिरासत में लिया गया था। बाद में उनकी संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। परिवार का आरोप है कि पुलिस की पिटाई से उनकी मौत हुई जबकि पुलिस का दावा है कि अचानक तबीयत बिगड़ने से उनकी मौत हुई। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत की वजह हार्ट अटैक बताई गई है।

आगरा में अरुण वाल्मीकि के परिजनों को ढांढस बंधाती प्रियंका गांधी वाड्रा
प्रियंका गांधी वाड्रा ने हाल के दिनों में अपने जुझारूपन से प्रभावित किया है। गोरखपुर में पुलिसकर्मियों के हाथों कानपुर के व्यापारी की हत्या का मामला हो या लखीमपुर में बीजेपी नेता के काफिले की गाड़ियों से प्रदर्शनकारी किसानों की मौत का मामला… योगी सरकार और बीजेपी को अगर किसी ने सबसे दमदार तरीके से घेरा है तो वह प्रियंका गांधी वाड्रा ही हैं। हालांकि, यह बात अलग है कि जब कांग्रेस विधायक का बेटा बलात्कार का आरोपी हो तो ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ तेवरों वाली प्रियंका सवाल को ही टाल जाती हैं।
आगरा में दलित की मौत पर प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस आक्रामक हैं लेकिन सिंघु बॉर्डर पर निहंगों की तालिबानी बर्बरता के शिकार हुए पंजाब के तरनतारन के दलित युवक लखबीर सिंह के मुद्दे पर दोनों खामोश हैं। लखबीर के घरवालों का आंसू पोंछने किसी भी पार्टी का कोई बड़ा नेता नहीं पहुंचा सिवाय भीम आर्मी चीफ चन्द्रशेखर आजाद के। उन्होंने पीड़ित परिवार से मुलाकात की और उनके लिए इंसाफ की आवाज बुलंद की। चन्द्रशेखर ने लखबीर के परिजनों को 1 करोड़ रुपये मुआवजे और सीबीआई जांच की मांग को लेकर सीएम चन्नी को खत भी लिखा है। राजस्थान में दलितों की लिंचिंग के मुद्दे पर शोर मचाने वाली बीजेपी का भी कोई बड़ा नेता तरन तारन झांकने तक नहीं गया।

आगरा में अरुण वाल्मीकि के परिजनों के बीच बैठीं प्रियंका गांधी वाड्रा
लखबीर सिंह को गुरुग्रंथ साहब का कथित तौर पर बेअदबी करने के आरोप में सिंघु बॉर्डर पर बेरहमी से मार दिया गया था। किसान आंदोलन के मंच के पास निहंगों ने उनके साथ फैसला ऑन द स्पॉट का तालिबानी इंसाफ किया। उन्हें तड़पा-तड़पाकर मारा गया। बांये हाथ की कलाई काट दी गई। पैरों की हड्डियां तोड़ दी गईं। रहम की भीख मांगते लखबीर को जब अंदाजा हो गया कि उनकी जान नहीं बख्शी जाएगी तो वह गर्दन काटने की गुहार करने लगे ताकि असहनीय दर्द से मुक्ति मिले। लेकिन बर्बर भीड़ ने उन्हें एक पुलिस बैरिकेड पर टांग दिया। बगल में कटे हाथ को भी नुमाइश के लिए टांग दिया गया। लखबीर ने तड़प-तड़पकर दम तोड़ दिया। वह दृश्य रोंगटे खड़ा कर देने वाला था, विचलित करने वाला था। निहंगों ने इस बर्बरता का वीडियो भी बनाया, पल-पल का वीडियो और उसे प्रचारित भी किया।
दलितों के मुद्दे पर प्रियंका गांधी आक्रामक हैं लेकिन लखबीर सिंह के घर जाने का न उन्हें समय मिला और न ही कांग्रेस के किसी बड़े नेता को तो सवाल उठेंगे ही। वह भी तब जब पंजाब में पिछले महीने ही चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर कांग्रेस ने दलित कार्ड खेला था। यूपी के लखीमपुर में मृत किसानों के लिए 50 लाख रुपये मुआवजे का ऐलान करने वाले चन्नी को अपने ही राज्य के लखबीर की सुध नहीं आई। न परिजनों से मिलने पहुंचे न ही कोई मुआवजे का ऐलान किया।

लखबीर के मामले में तो पंजाब की कांग्रेस सरकार के पास कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर घिरने का भी खतरा नहीं था जैसा राजस्थान के मामलों में है। राजस्थान में इसी महीने हनुमानगढ़ में जगदीश नाम के एक दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई। पिछले महीने अलवर में 17 साल के एक दलित युवक को पीट-पीटकर मार डाला गया था। अगर प्रियंका या कांग्रेस के बड़े नेता राजस्थान में दलित पीड़ितों से मुलाकात कर जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश करते तो कांग्रेस की अशोक गहलोत सरकार कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर बुरी तरह घिर जाती और विपक्ष के हमले तेज हो जाते। लेकिन लखबीर सिंह का मामला तो इससे अलग था। उनकी बर्बर हत्या पंजाब से दूर हरियाण में दिल्ली बॉर्डर के नजदीक हुई। ऐसे में दूर-दूर तक पंजाब की कानून-व्यवस्था से इसका कोई लेना-देना नहीं है। तब कांग्रेस के डर की वजह क्या है?
प्रियंका गांधी वाड्रा और कांग्रेस को डर है कि अगर लखबीर सिंह के परिजनों से हमदर्दी जताने गए तो निहंग भड़क सकते हैं। बेअदबी के आरोप की वजह से मामला बहुत ही संवेदनशील है। निहंग तब कांग्रेस को बेअदबी करने वालों के समर्थक के तौर पर पेश करने की कोशिश कर सकते हैं जिससे सिख वोटों के खिसकने का खतरा होगा। पहले के बेअदबी के मामले तो वैसे भी पंजाब में कांग्रेस के गले की घेंघ बन चुके हैं। यह कितना संवेदनशील मुद्दा है, इसे इसी से समझ सकते हैं कि नवजोत सिंह सिद्धू ने इसी मुद्दे पर कैप्टन अमरिंदर के खिलाफ सबसे तीखा मोर्चा खोला था और कैप्टन जैसे कांग्रेस के कद्दावर नेता को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। यही वजह है कि सियासी नफा-नुकसान के गणित की वजह से कांग्रेस लखबीर सिंह के परिजनों के प्रति सहानुभूति के इजहार से भी बच रही है।

आगरा में सफाईकर्मी अरुण वाल्मीकि के परिजनों से मिलती प्रियंका गांधी (L) और तरन तारण में लखबीर सिंह के पिता से मिलते आजाद (R)