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why hindus become target in england


अवधेश कुमार
इंग्लैंड के लेस्टरशर से लेकर स्मिथविक और बर्मिंघम तक हिंदुओं, उनके धर्मस्थल और समुदाय के रूप में चिह्नित स्थानों पर हो रहे हमले चिंताजनक हैं। इससे भी चिंताजनक है इंग्लैंड सहित समूचे यूरोप और पश्चिमी देशों में मुख्यधारा के मीडिया का रवैया। अगर हिंसा गैर-हिंदुओं के विरुद्ध होती तो पूरे विश्व में वह मीडिया की सुर्खियां बनती। कुछ मीडिया संस्थानों ने तो हमला झेल रहे हिंदुओं को ही दोषी ठहराने में अपनी बुद्धि लगाई। स्मिथविक शहर के एक विडियो में साफ दिख रहा है कि एक समुदाय के लोग दुर्गा भवन हिंदू सेंटर के बाहर धार्मिक नारे लगा रहे हैं और पुलिस उन्हें रोकने की कोशिश कर रही है। लेस्टरशर के एक मंदिर से भगवा झंडा उतार कर नीचे फेंकने के विडियो सामने आए हैं। बर्मिंघम में ऐसे ही मंदिर पर चढ़ते और धार्मिक नारे लगाते लोग दिख रहे हैं।

क्रिकेट के बहाने
भारत सरकार ने इसे गंभीरता से लिया है। विदेश मंत्रालय की ओर से हिंदुओं पर हमले रोकने की अपील वाला बयान भी जारी किया गया है। इसके पहले ब्रिटेन में भारतीय उच्चायोग ने भी वहां प्रशासन से इस मामले में संपर्क किया था। मीडिया के एक वर्ग ने लिखा है कि एशिया कप में भारत-पाकिस्तान क्रिकेट मैच के बाद ये दंगे हुए। सतही तौर पर देखने से ऐसा लगता भी है कि पाकिस्तान की हार से गुस्साए उसके समर्थकों ने हिंसा की। लेकिन कई ऐसी बातें हैं, जो इस थियरी को संदिग्ध बनाती हैं:

  • क्रिकेट में हार का गुस्सा थोड़े समय तक रह सकता है। लेकिन क्या यह इतना ज्यादा होगा कि 28 अगस्त से शुरू हुई हिंसा महीने भर खिंच जाए?
  • अगर गुस्सा क्रिकेट को लेकर है तो फिर मंदिरों या जिन घरों के बाहर हिंदू धर्म की कोई आकृति हो उन्हें निशाना बनाने का क्या औचित्य हो सकता है?
  • चार और पांच सितंबर को लगातार हिंदुओं के विरुद्ध हिंसा हुई। ध्यान रहे, 4 सितंबर को एशिया कप क्रिकेट में पाकिस्तान की विजय हो गई थी। फिर भी हिंदू समुदाय के विरुद्ध हिंसा होती रही।
  • दूसरी ओर, एक भी घटना ऐसी नहीं हुई, जिसमें हिंदुओं को दूसरे समुदाय के विरुद्ध हिंसा करते हुए देखा गया हो।

लेस्टरशर में पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में मंदिर के सामने एकत्र भीड़

सुनियोजित हिंसा
इन सबसे लगता है कि हिंसा की ये घटनाएं हिंदुओं को निशाना बनाने के मकसद से शुरू की गई थीं। इसकी असल वजह क्रिकेट की जय-पराजय नहीं थी। भले ही उसे बहाना बनाया गया हो:

  • यह सच है कि एशिया कप में पाकिस्तान पर भारत की विजय पर लोगों ने खुशी मनाई। उनमें से कई लोगों के हाथों में तिरंगा झंडा था। हिंदुस्तान जिंदाबाद और पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे भी लगे। लेकिन दुष्प्रचार यह हुआ कि दूसरे धर्म के विरुद्ध नारे लगाए गए हैं। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर यह झूठ फैलाया कि हिंदू अतिवादी दूसरे धर्म के विरुद्ध नारे लगा रहे थे और हिंसा कर रहे थे।
  • कुछ मीडिया रिपोर्टों में हिंदुओं के घरों और धर्म स्थलों पर आरएसएस का झंडा लगे होने की बात कही गई थी। दरअसल, ये भगवा झंडे थे, जो आमतौर पर मंदिरों पर दिखाई देते हैं। पूरे मामले को राजनीतिक रंग देने के लिए आरएसएस का झंडा बताकर दुष्प्रचार किया गया।

अगर मामला केवल क्रिकेट का था तो भारत के साथ आरएसएस, बीजेपी और मोदी सरकार के विरुद्ध नारे क्यों लग रहे थे? देखा जाए तो कई तथ्य ऐसे हैं, जो यह संदेह पैदा करते हैं कि हिंसा की ये घटनाएं स्वत:स्फूर्त नहीं थीं:

  • हिंदुओं पर हमले की तैयारी के प्रमाण मिल मिल रहे हैं। लेस्टरशर में करीब 50 लोग पकड़े गए, जिनमें कई दूसरे शहरों से आए हुए थे।
  • सोशल मीडिया पर हिंदुओं के विरुद्ध प्रदर्शनों की अपील भी की जा रही थी। स्मिथवीक में एक धर्म विशेष से जुड़े नाम वाले संगठन के सोशल मीडिया अकाउंट से दुर्गा भवन मंदिर के बाहर प्रदर्शन का आह्वान किया गया था।

यह कैसा दुष्प्रचार
सच पूछिए तो काफी समय से ब्रिटेन में भारत और भारतीय अलग-अलग तरीकों से निशाना बने हैं। कृषि कानून विरोधी आंदोलन के दौरान ब्रिटेन में कई प्रदर्शन हुए थे। प्रदर्शन में वहां पाकिस्तान के लोगों के साथ लेबर पार्टी के कुछ सांसद भी शामिल थे। भारतीय उच्चायोग तक पर हमले हुएः

  • ध्यान रखने की बात यह भी है कि पिछले कुछ समय से पाकिस्तान ही नहीं कई देशों में भारत और हिंदुओं के विरुद्ध दुष्प्रचार कर विरोधी माहौल बनाया जा रहा है।
  • हाल के दिनों में यह प्रचारित किया गया कि भारत सरकार की नीतियां अल्पसंख्यक समुदाय के विरुद्ध हैं। उनके मजहबी अधिकारों पर हमले हो रहे हैं।
  • अनेक पत्रकारों, नेताओं, बुद्धिजीवियों और एनजीओ ने भी वर्तमान सरकार बीजेपी, आरएसएस आदि के बारे में प्रचारित किया कि ये अल्पसंख्यकों के दमन की नीतियों पर आगे बढ़ रहे हैं।
  • कल्पना करिए अगर इस तरह के हमले गैर-हिंदुओं पर हुए होते तो तो आज यह दुनिया में चर्चा का प्रमुख विषय होता। मानवाधिकार से लेकर धार्मिक अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता अल्पसंख्यकों के अधिकार आदि पर काम करने वाली संस्थाएं झंडा लेकर खड़ी हो चुकी होतीं।

किसी को चिंता नहीं
हिंदुओं पर हमलों का किसी की चिंता का विषय न बनना डराता है। यह बताता है कि अंतरराष्ट्रीय मीडिया एवं संस्थानों की मानसिकता आज भी कैसी बनी हुई है। इसका सीधा निष्कर्ष है कि विपरीत परिस्थिति में विश्वभर के हिंदुओं के लिए आज भी उम्मीद की किरण एकमात्र भारत ही है। हालांकि ब्रिटेन में हिंदुओं पर हमला संपूर्ण विश्व के लिए चिंता का विषय होना चाहिए क्योंकि ऐसे कट्टरपंथी अतिवादी हिंसक समूह मजहब के नाम पर कुछ भी कर सकते हैं। खासकर ब्रिटेन की सरकार के लिए तो यह चेतावनी होनी चाहिए।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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