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कांग्रेस के लिए निराशा और हताशा भरी लंबी रात की सुबह कब होगी? क्या नए अध्यक्ष के चुनाव और भारत जोड़ो यात्रा की बदौलत पार्टी तमाम बाधाओं से उबरकर खुद को खड़ा कर सकेगी? आज की तारीख में देश की सियासत में यह सवाल सबसे अधिक पूछा जा रहा है। एक बड़ा वर्ग कांग्रेस का मर्सिया लिख रहा है। उसका मानना है कि मौजूदा संकट पार्टी को और रसातल में ले जाएगा, जिससे संगठन के दो टुकड़े भी हो सकते हैं। वहीं एक अन्य वर्ग देश की सबसे पुरानी पार्टी को फिर से अपने पैरों पर खड़ा होने के लिए कई तरह के सुझाव दे रहा है। उसका मानना है कि अगले कुछ दिनों में संगठन चुनाव के बाद पार्टी अपने पुराने तेवर में लौटेगी। इन दोनों से अलग, बीजेपी कांग्रेस पर पूरी तरह हमलावर है। उसे पता है कि अगर कांग्रेस यहां से खुद को उठाने में सफल नहीं रही, तो 2024 का चुनाव उसके लिए उम्मीद से कहीं ज्यादा आसान हो जाएगा।

​अब उठा एक नया विवाद

इन तमाम विवादों के बीच कांग्रेस ने संगठन चुनाव के कार्यक्रम का एलान कर दिया है। इसके अनुसार 17 अक्टूबर को पार्टी के नए अध्यक्ष का चुनाव होगा। नए अध्यक्ष का चुनाव पुराने और असंतुष्ट गुट के नेताओं की पहली और प्रमुख मांग थी। लेकिन चुनाव की घोषणा के बाद इसे लेकर नया विवाद खड़ा हो गया। अब वही पुराने नेता चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाने लगे। मनीष तिवारी से लेकर आनंद शर्मा तक चुनावों में पारदर्शिता की बात कर रहे हैं। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं ने भी पार्टी संगठन में चयन प्रक्रिया पर सवाल उठाया है। ये लोग इलेक्टोरल कॉलेज को सार्वजनिक करने की मांग कर रहे हैं, ताकि पता चले कि चयन का पैमाना क्या था। यह भी माना जा रहा है कि इस बार अध्यक्ष पद के कई उम्मीदवार दिख सकते हैं।

​पार्टी में विभाजन की नौबत

चुनाव से पहले आई कटुता से बाद में पार्टी में विभाजन की भी नौबत आ सकती है। यह सब ऐसे समय में हो रहा है जब गुलाम नबी आजाद ने कांग्रेस छोड़ी है और वह लगातार पार्टी के खिलाफ बयान दे रहे हैं। इन विवादों की टाइमिंग इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कांग्रेस विपक्ष में रहते हुए पहली बार केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रामक होकर आंदोलन का एलान कर रही है। 7 सितंबर से भारत जोड़ो यात्रा की शुरुआत होनी है, जिसमें 3500 किलोमीटर की पदयात्रा खुद राहुल गांधी कर सकते हैं। इससे पहले 4 सितंबर को महंगाई के खिलाफ दिल्ली में रैली होनी है। पार्टी का आंतरिक संघर्ष खुलकर ऐसे समय में सामने आया है, जब वह खुद को खड़ा करने की कोशिश कर रही है।

​गुटबाजी में घिरा संगठन

पार्टी के कुछ नेताओं का मानना है कि अंदरूनी हालात इतने बुरे हैं कि चीजों के फिर पटरी पर आने की संभावना ना के बराबर है। ऐसे नेताओं का यह भी तर्क है कि इतने दिनों तक चीजों को टाला गया कि अब अंतिम समय में इन्हें पटरी पर लाने का प्रयास सफल होना लगभग असंभव है। मगर पार्टी की चिंता इतनी ही नहीं है। खुद अपने दम पर कांग्रेस सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में शासन में है। वहां भी अगले साल ही चुनाव होने हैं और दोनों राज्यों में पार्टी की गुटबाजी चरम पर है। तमाम बागी नेताओं के निशाने पर सबसे अधिक राहुल गांधी और उनकी टीम ही रही है। राहुल और उनकी टीम भी आक्रामक होकर इन पर जवाबी हमला बोल रही है। मतलब यह कि दोनों खेमों की ओर से भी संवाद के जरिए चीजों को ठीक करने की संभावना लगभग समाप्त कर दी गई है।

इस रात की भी एक सुबह है

लेकिन इस घुप अंधकार के बीच पार्टी के प्रति समर्पित नेताओं को लगता है कि इस रात की भी एक सुबह है और यह गहराया हुआ अंधेरा सुबह आने से ठीक पहले का ही है। इनका मानना है कि साल के अंत तक तस्वीर पूरी तरह बदल जाएगी। यह संक्रमण काल कभी न कभी तो आना ही था। जहां तक अध्यक्ष पद पर होने वाले चुनाव और विवाद का मामला है, पार्टी को यह भी लगता है कि सोनिया गांधी हस्तक्षेप करके चीजों को ठीक कर सकती हैं। वे यह भी कहते हैं कि अगर गांधी परिवार से कोई सदस्य अध्यक्ष पद के लिए खड़ा होता है तो फिर शायद विवाद ही न हो।

सोनिया गांधी से बनी उम्मीद

इसलिए पार्टी नेताओं का एक बड़ा वर्ग चाहता है कि सोनिया गांधी ही 2024 तक अध्यक्ष रहें। वही खड़ी हों। अगर वह खुद खड़ी होती हैं तो जी-23 का बड़ा वर्ग भी लूप में आ सकता है। लेकिन यह उम्मीद तब बिखर जाएगी, जब गांधी परिवार अभी के स्टैंड के अनुरूप खुद को चुनाव से अलग रखेगा। ऐसे में अगर इनकी ओर से कोई उम्मीदवार खड़ा भी किया जाता है तो उसके लिए मन मुताबिक समर्थन जुटाना आसान नहीं होगा। अभी इसके लिए राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का नाम सबसे आगे माना जा रहा है।

​अब भारत जोड़ो से ही उम्मीद

इसके अलावा पार्टी को भारत जोड़ो यात्रा से भी बड़ी उम्मीदें हैं। एक सीनियर नेता ने कहा कि आज तक भारतीय राजनीति के जिस नेता ने पदयात्रा की है, उसका जन समर्थन बढ़ा है। साथ ही 3500 किलोमीटर की पदयात्रा हाल के सालों की सबसे बड़ी पदयात्रा होगी। नेताओं का मानना है कि पिछले कुछ समय से महंगाई-बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर पार्टी जमीन पर उतरी है और इस यात्रा से जमीनी काडर लड़ने के लिए खड़ा हो जाएगा- इन दोनों का असर पार्टी के भविष्य पर निश्चित रूप से देखने को मिलेगा। इसके अलावा कांग्रेस का यह भी तर्क है कि जिन नेताओं की ओर से बागी तेवर दिखाए जा रहे हैं और हर चीजों में विवाद खड़ा करने की कोशिश की जा रही है, उनके बारे में पहले ही अनुमान लगाया जा चुका था कि वे ऐसा करेंगे। ऐसे में अधिकतर नेता इसके लिए पहले से तैयार थे और नीचे तक संदेश भेजा जा चुका था।



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By admin