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UP assembly election 2022: सहयोगी हूं पर यह तय करना मेरा काम नहीं कि बीजेपी का सीएम चेहरा कौन होः अनुप्रिया पटेल, nbt exclusive interview with anupriya patel on up election and obc politics


अपना दल (एस) यूपी में बीजेपी का सहयोगी दल है। अपना दल (एस) की मुखिया अनुप्रिया पटेल मोदी कैबिनेट में राज्य मंत्री हैं। उनकी गिनती अब ओबीसी के कद्दावर नेता के रूप में होने लगी है। बीजेपी के लिए उनकी अहमियत इसलिए भी ज्यादा है कि यूपी पॉलिटिक्स ओबीसी केंद्रित हो गई है। 2014 में जब नरेंद्र मोदी ने यूपी के वाराणसी से चुनाव लड़ने का फैसला किया था तो बीजेपी ने जातीय समीकरणों को दुरुस्त करने के लिए अपना दल (एस) के साथ गठबंधन करना जरूरी समझा था। एनबीटी के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने अनुप्रिया पटेल से बात कर बीजेपी के साथ उनके रिश्तों और उनकी भविष्य की राजनीति को समझा। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश:

आप बीजेपी के साथ हैं और आपकी माताजी समाजवादी पार्टी के साथ। यह विरोधाभास क्यों?
राजनीति में यह जरूरी नहीं कि परिवार में सभी सदस्यों की विचारधारा एक हो। परिवार का हरेक सदस्य स्वतंत्र होता है अपनी सोच के हिसाब से निर्णय लेने के लिए। जब भी माताजी हमारे साथ आना चाहेंगी, तो मैं उनका नेतृत्व स्वीकार कर लूंगी।

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जिस सीट से आपकी माताजी समाजवादी गठबंधन से चुनाव लड़ रही हैं, वह सीट बीजेपी ने आपको दी थी। आपने मां के खिलाफ प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया तो बीजेपी ने अपना प्रत्याशी उतार दिया। आपकी हार्दिक इच्छा क्या है, उस सीट पर आपकी मां चुनाव जीतें या बीजेपी?
यह सच है कि माता के सम्मान में हमने उनके खिलाफ प्रत्याशी न उतारने का फैसला किया है। राजनीतिक विचारधारा अलग-अलग होने के बावजूद वह हमारी मां हैं। लेकिन मैं गठबंधन धर्म को भी नहीं भूल सकती। उस सीट पर बीजेपी के हारने की बात सोचना गठबंधन धर्म के खिलाफ होगा।

आपकी बहन पल्लवी डेप्युटी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के खिलाफ समाजवादी गठबंधन की उम्मीदवार हैं। लेकिन वहां आप नामांकन के समय डेप्युटी सीएम के साथ देखी गईं?
माता वाली सीट अपना दल-एस के हिस्से में आई थी, इसलिए वह मेरे अधिकार में था कि मैं वहां प्रत्याशी लड़ाऊं या नहीं। लेकिन बहन वाली सीट तो बीजेपी के हिस्से की है, वहां उसने अपना प्रत्याशी उतारा है। मैं वहां बीजेपी के पक्ष में प्रचार करूंगी।

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आपके पिता ने जब अपना दल नाम से अपनी पार्टी बनाई थी तो उनकी इच्छी थी कि अगर यूपी में यादव जाति से सीएम हो सकते हैं तो कुर्मी जाति से भी हों। क्या अपने लिए कोई टारगेट तय किया है कि कब तक सीएम बनना है?
राजनीति संभावनाओं का खेल होता है। लोकतंत्र की खूबसूरती यही है कि कुर्मी ही क्या, समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़ी किसी जाति का भी कोई शख्स कभी भी सीएम बन सकता है। मेरी जो अवधारणा है, वह किसी एक जाति तक सीमित नहीं है। मैं समाज के वंचित तबके को मजबूत करने की लड़ाई लड़ रही हूं, यही मेरे पिता का भी सपना था।

यूपी में दो चरणों का मतदान हो चुका है, क्या परिदृश्य देख रही हैं?
पहले दो चरणों में हमारी एक ही सीट थी, बाकी सभी सीटों पर बीजेपी के उम्मीदवार थे। मैं यह कह सकती हूं कि यूपी में एनडीए की फिर से सरकार बनेगी।

यूपी की पॉलिटिक्स में अब ओबीसी की अहम भूमिका हो गई है। अगर बीजेपी किसी ओबीसी चेहरे को आगे कर चुनाव लड़ती तो क्या उसे और ज्यादा मजबूती मिलती?
मैं बीजेपी की सहयोगी जरूर हूं लेकिन यह तय करना मेरा काम नहीं है कि वह सीएम चेहरा किसे बनाए। बीजेपी को अपने नफा-नुकसान का खुद ख्याल होगा। उनका चेहरा जो है, मैं उसके साथ हूं।

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चुनाव के वक्त बीजेपी से जो नेता बाहर निकले, चाहे वह स्वामी प्रसाद मौर्य हों, दारा चौहान हों, धर्म सिंह सैनी हों, सबने एक ही बात कही कि बीजेपी में पिछड़ों की सुनवाई नहीं है। कितनी सचाई है?
अगर यह बात उन लोगों ने 2017 में मंत्री बनने के बाद, 2018, 2019, 2020 में कही होती तो मैं एक बार सोचती भी। लेकिन यह बात उन लोगों ने तब कही, जब चुनाव कार्यक्रम घोषित होने वाला था।

अगर इन लोगों को बीजेपी की लहर दिख रही होती तो क्या ये लोग चुनाव के वक्त पार्टी छोड़ते?
पार्टी क्यों छोड़ी, यह उनके और बीजेपी के बीच का मामला है। हो सकता है कि उन्हें अपनी सीट पर समीकरण में कोई दुश्वारी दिख रही हो। यह भी संभव है कि सर्वे में बीजेपी ने यह पाया हो कि वे लोग सीट नहीं निकाल सकते तो उनके टिकट कट रहे हों।

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आपको भी मोदी 2.0 में मंत्री बनने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। कैबिनेट में यूपी चुनाव करीब आने पर ही जगह मिल पाई…
यह प्रधानमंत्री जी का फैसला था कि वह मुझे कब कैबिनेट में लेते हैं। लेकिन इससे यह बात भी साबित हो गई कि मैं बीजेपी के साथ सिर्फ मंत्री बनने के लिए नहीं हूं। अगर मंत्री बनने के लिए होती तो जब नहीं बनाया गया था, तो अलग हो जाती।

कहा जा रहा है कि अखिलेश यादव ने इस बार एमबीसी समीकरण अच्छे तरीके से बनाया है?
यह परसेप्शन बनाने की कोशिश हो रही है, हकीकत में ऐसा है नहीं।

जो लोग बीजेपी छोड़ रहे हैं, वे सब एसपी में क्यों जा रहे हैं?
उनके सामने और कोई विकल्प नहीं है। कांग्रेस मुकाबले में नहीं है। बीएसपी भी हाशिए पर जा चुकी है।



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