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मुन्ना के. पाण्डेय

‘अइसन वीर न सुनली काने / जाने में ना कहीं जनाइल।’- सन 1765 ई. में जब शाह आलम बिहार, बंगाल आ उड़ीसा के दीवानी अंग्रेजन के सौंप दिहलन तब सारन के कलेक्टर हुस्सेपुर (बिहार के गोपालगंज जिला) के महाराज फतेह बहादुर साही से राजस्व के मांग कइलस आ उनकरा से कंपनी के अधीनता स्वीकार करे के बात भी कहलस। फतेह बहादुर साही इ दुनु बात माने से इंकार कर दिहले। सारण प्रान्त के एह इलाका में लगभग तेईस बरस तक फतेहबहादुर साही अंग्रेजन से युद्ध करत रहले, कबो सीधे सामने डटके त कबो छापामार ढंग से। कंपनी उनकर हुस्सेपुर के किला के तबाह कर दिहलस। तब हुस्सेपुर से लगले बांकजोगिनी के जंगल में आश्रय लेके फतेह साही के विद्रोह अनवरत चलत रहल। फेर बाद में फतेह साही आज के यूपी के तमकुहीराज में आपन राज्य स्थापित करके अंग्रेज सत्ता के लगातार सफल चुनौती देत रहनी। प्रो. मैनेजर पाण्डेय लिखले बानी कि ओ समय एगो अंग्रेज लिखले रहे कि जेतना परेशानी हमनी के पेशवा से नइखे ओतना परेशान हमनी के फतेहबहादुर साही कइले बाड़न। 14 जून 1775 के ईस्ट इंडिया कंपनी के इसाक रोज, साइमन रोज, इमन ता लेफ्टिनेंट अर्सकिन द्वारा भेजल पत्र के प्रतिलिपि के हवाला से वारेन हेस्टिंग्स आ उनकर परामर्शदात्री समिति के एगो पत्र में लिखल लोग – ‘…फतेहबहादुर साही हुस्सेपुर राज्य के ताल्लुकेदार हवन। उ कंपनी सरकार से विद्रोह कर बइठल बाड़न आ टैक्स देबे से स्पष्ट मना कर दिहले बाड़न। इतिहासकार रामलखन शुक्ल फतेह साही विद्रोह के भारत के कंपनी राज के खिलाफ पहिलका जन विद्रोह कहले बानी। 1781 में एह योद्धा से त्रस्त होके वारेन हेस्टिंग्स और एडवर्ड व्हीलर के हस्ताक्षर से एगो परवाना निकलल जेइमे इ जिक्र बा जे फतेह साही के पकड़वावे वाला के बीस हजार रुपया के इनाम दियाइ।

महाराजा फतेह साही के पकड़े खातिर एतना बड़ रकम इनाम में मिले के घोषणा के बावजूद अंग्रेज उनकरा के ना त कबो पकड़ पइले ना हरा ही पवले। आम जनता इनाम से बेसी अपना देशभक्त राजा के साथ दिहल पसंद कइलस। इतिहास में एतना जनप्रिय राजा के उदाहरण कम बा।

हालांकि महाराज के चचेरा भाई बाबू बसंत साही अपना अग्रज के विरुद्ध अंग्रेजन के साथ दिहलन, जवना कारण दंडात्मक कार्यवाही के रूप में महाराजा फतेह साही अपना भाई बसंत साही के सर कलम कर दिहलन। साथ ही, राजा अंग्रेजन के टैक्स सुपरिटेंडेंट मीर जमाल के भी हत्या कइले। एह घटना पर कुलदीप नारायण राय झड़प के ‘मीर जमाल वध’ खण्ड काव्य बा – ‘फतेहसाही वीर लाख में/ एक अकेले लाख समान/ जइसे बाज झपट मारे/ झपटसु, डपटसु करसु प्यान’।

फतेह साही के विद्रोह के एगो उदाहरण बड़ा गोपालगंज में स्थित अंग्रेजन के कैंटोनमेंट एरिया लाइन बाज़ार के हमला रहल जेइमे एगो अनुमान के हिसाब से लगभग दु सौ अंग्रेजन के हत्या भइल रहे। सीमित संसाधन आ छोट तोपखाना के साथ कंपनी के एतना बड़ नुकसान के बाद आलम ई रहे जे इलाका से सब अफसर पटना मिलिसिया भाग गइल रहलन। संन्यासी विद्रोह के सारण जनपद के इतिहास में भूमिका देखला पर हमनी के पता चलेला कि फतेह साही विद्रोह में संन्यासियन के भी सहयोग मिलल रहे।

बनारस के चेत सिंह विद्रोह में भी महाराजा फतेह साही के युध्द कौशल ही सबसे प्रमुख रहल। फतेह साही के वीरता के आगे 1781 में बनारस से हेस्टिंग्स के भागे के पड़ल आ तबसे लोक में गीत प्रचलित भइल – ‘घोड़ा पर हौदा, हाथी पर जीन/ भागा चुनार को वारेन हिस्टिन।’

आज हमनी के आजादी के अमृत महोत्सव मना रहल बानी जा बाकिर गोपालगंज के जवन आजादी के पहिलका नायक के हेतना विपुल गौरवशाली इतिहास बा ओकरा योगदान आ त्याग के भारत वर्ष ही ना उनकरा जिला तक दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से भुला दिहले बा।

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