Sindhu Dhara

समाज की पहचान # सिंध की उत्पति एवं इतिहास<> सिंधी भाषा का ज्ञान <> प्रेणादायक,ज्ञानवर्धक,मनोरंजक कहानिया/ प्रसंग (on youtube channel)<>  सिंधी समाज के लिए,वैवाहिक सेवाएँ <> सिंधी समाज के समाचार और हलचल <>


नरेन्द्र नाथ

पिछले कुछ दिनों से 2024 आम चुनावों के मद्देनजर विपक्षी एकता की कोशिशें तेज हो गई हैं। हर कोई अपने स्तर पर इसे आकार देने के लिए सक्रिय है। कभी ममता बनर्जी तो कभी शरद पवार, कभी राहुल गांधी तो कभी सोनिया गांधी- सभी इसमें भूमिका निभाते नजर आ रहे हैं। अब तक इन तमाम बैठकों से विपक्षी एकता को लेकर मिश्रित संकेत मिले हैं। लेकिन इतना तय है कि अगर विपक्षी एकता को आकार लेना है तो इन नेताओं को कई सवालों के जवाब तलाशने होंगे जो उठने शुरू हो गए हैं।

कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के साथ ही अधिकतर क्षेत्रीय दलों के नेताओं ने 2004 मॉडल को फिर से अपनाने की मंशा दिखाई है। 2004 में यूपीए के गठन के पीछे भी सोनिया गांधी की पहल थी। तमाम क्षेत्रीय दलों को एक मंच पर लाने के बाद ही अटल बिहार वाजपेयी की अगुआई वाली एनडीए सरकार को 2004 में अप्रत्यशित रूप से हटाने में कामयाबी मिली। तब आम सहमति से तय हुआ था कि नेता का मसला चुनाव के बाद देखा जाएगा। ऐसा ही कुछ इस बार करने की तैयारी दिख रही है। 20 अगस्त को हुई विपक्षी दलों की बड़ी मीटिंग में भी अधिकतर नेताओं ने इसी पैटर्न की बात कही। लेकिन इस बार मामला उतना आसान नहीं है। 2004 के मुकाबले 2024 में बड़ा बदलाव आ चुका है। हाल के समय में चुनाव नाम के दम पर लड़ने का ट्रेंड बढ़ा है। आम चुनाव में मोदी बनाम कौन का सवाल उठ सकता है। यह मुद्दा 20 अगस्त की मीटिंग में भी उठा। महाराष्ट्र के सीएम और शिवसेना नेता उद्धव ठाकरे ने कहा कि भले नेता का चुनाव बाद में तय करने का फैसला ले लिया जाए लेकिन फिर भी यह बात जेहन में रखनी होगी कि जब हम जनता के बीच जाएंगे तो लोग यह सवाल पूछ सकते हैं। हालांकि ममता बनर्जी ने कहा कि मोदी के सामने हम जनता को चेहरा बनाएंगे। आम राय बनी कि अभी विपक्षी एकता की कोशिश को आगे बढ़ाया जाए और नेतृत्व के सवाल को आगे के लिए छोड़ दिया जाए।

मुद्दों को लेकर भी बनानी होगी सहमति

नेतृत्व के अलावा दूसरा अहम मसला जो मीटिंग में उठा वह था मुद्दों का। झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने मीटिंग में इस बात पर चिंता जताई कि विपक्ष का अधिकतर समय ऐसे मुद्दों में चला जाता है जिससे आम लोगों का सरोकार नहीं होता। परोक्ष रूप से उन्होंने पेगासस जासूसी कांड की ओर इशारा किया। उनका कहना था इससे बड़ा मसला महंगाई या बेरोजगारी है। उनकी बातों का कुछ अन्य दलों ने समर्थन किया। वहीं तेजस्वी यादव ने परोक्ष रूप से कांग्रेस से कह दिया कि वह क्षेत्रीय दलों को अधिक जगह दे। उनका इशारा कांग्रेस की ओर से चुनावों में अधिक सीट मांगने के लिए दबाव देने की ओर था।

भले विपक्षी एकता के लिए होम वर्क अभी से शुरू हो गया हो, लेकिन अभी अधिकतर दल खासकर क्षेत्रीय पार्टियां उसे अंतिम रूप देने के मूड में नहीं हैं। वे इसके लिए अगले साल तक इंतजार करना चाहेंगी। दरअसल 2022 में कई ऐसी सियासी घटनाएं होंगी जो इन प्रयासों को नया आकार दे सकती हैं। विपक्ष को सबसे पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की बाधाा पार करनी है। जीत-हार के अलावा विपक्षी दलों को लगता है कि उत्तर प्रदेश के चुनाव में बीजेपी की सीटें कम हुईं तो 2022 का राष्ट्रपति चुनाव दिलचस्प हो सकता है। इसके अलावा 2024 से पहले गुजरात, कर्नाटक, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने हैं। अगले साल के अंत में गुजरात में भी चुनाव होंगे।

इन सभी राज्यों में मुख्य मुकाबला बीजेपी और कांग्रेस के बीच ही है। बीजेपी का सफल राजनीतिक सफर अगर इन राज्यों में जारी रहा तो आम चुनाव से पहले कांग्रेस की सौदेबाजी की ताकत और कम हो जाएगी। स्वाभाविक ही क्षेत्रीय विपक्षी दल चाहते हैं कि अंतिम मोर्चा तय करने से पहले इन घटनाओं का नतीजा देख लिया जाए।

बीजेडी और टीआरएस को भी है चिंता

दरअसल पिछले कुछ सालों से कांग्रेस के गिरते ग्राफ से हालात पार्टी के खिलाफ बने हैं। साथ ही कांग्रेस के अंदर नेतृत्वहीनता के कारण क्षेत्रीय दलों की उससे दूरी भी बढ़ी है। क्षेत्रीय दलों ने विपक्षी एकता न होने के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहराया। यह भी कहा गया कि जब राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थे तब वह दूसरे दलों को जोड़ने में कामयाब नहीं रहे। पिछले कुछ दिनों से इसी धारणा को दूर करने की कोशिश की जा रही है। राहुल गांधी ने संसद के मानसून सत्र में सभी दलों के साथ बेहतर समन्यव बनाने की पहल की। तमाम विपक्षी दलों के साथ होने वाली मीटिंग में राहुल गांधी सक्रियता से साथ निभा रहे हैं। वे अलग-थलग रहने वाले नेता की छवि को तोड़ना चाहते हैं। आगे यह कवायद किस दिशा में आगे बढ़ती है वह भी कई चीजें तय करेगी। उधर नवीन पटनायक की बीजेडी भी पिछले कुछ सालों में पहली बार कुछ-कुछ मसलों पर विपक्ष के साथ दिखने की कोशिश कर रही है। जाति जनगणना के मुद्दे पर वह विपक्षी दलों की मांग के साथ है। उधर के चंद्रशेखर राव की टीआरएस भी विपक्षी खेमे में अपनी जगह तलाश रही है। जानकारों के अनुसार जिस तरह बीजेपी ने इन दोनों राज्यों में पैठ बढ़ाई है उससे ये दोनों नेता चिंतित हैं। ये तमाम पहलू हैं जिनसे जुड़े सवाल विपक्षी एकता की दिशा और शर्तें तय करेंगे।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





Source link

By admin