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अखिलेश झा

दिल्ली चलो… यह नारा था आजाद हिंद फौज का, नेताजी सुभाष चंद्र बोस का। अंग्रेजों के चंगुल से देश को छुड़ाने निकली उस फौज का मार्चिंग सॉन्ग भी बनाया गया, इसी नारे को। उस गीत में कहा गया था, ‘चलो दिल्ली…चलो दिल्ली… चलो दिल्ली, जवानो, हिंद को आजाद करवाएं’। उसमें दिल्ली की पहचान भी बताई गई। वह दिल्ली, जहां यमुना किनारे अपना लाल किला है। उसी गीत में एक खास मकसद भी तय किया गया था। आजाद हिंद फौज के उस लक्ष्य की जानकारी मिलती है एक ग्रामोफोन रेकॉर्ड से।

ग्रामोफोन रेकॉर्ड की बात लेकिन आती है बाद में। पहले हुआ आजाद हिंद फौज के सिपाहियों का दिल्ली कूच। ‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ वे दिल्ली पहुंचे तो जरूर, लेकिन युद्ध बंदी के रूप में। आजाद हिंद सरकार ने जापान सहित जिन देशों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ लड़ाई छेड़ी थी, उन्हें दूसरे विश्व युद्ध में हार का सामना करना पड़ा। इसी वजह से आजाद हिंद फौज को भी आत्मसमर्पण करना पड़ा। उस फौज के लगभग 17 हजार सिपाहियों को युद्ध बंदी बनाकर दिल्ली लाया गया।

ब्रिटिश हुकूमत ने दिल्ली के लाल किले में आजाद हिंद फौज के नेताओं पर मुकदमा चलाया। सबसे पहले निशाने पर लिया गया, गुरबख्श सिंह ढिल्लो, प्रेम कुमार सहगल और शाहनवाज खान की मशहूर तिकड़ी को। उनके बचाव के लिए देश के जाने-माने वकीलों की एक डिफेंस कमेटी बनाई गई। जवाहरलाल नेहरू भी शामिल थे उन वकीलों में। डिफेंस कमेटी की जोरदार दलीलों और देश में आजाद हिंद फौज के लिए उमड़े जन समर्थन के चलते आखिरकार अंग्रेजों को तीनों नेताओं को छोड़ना पड़ा।

उन्हीं दिनों आजाद हिंद फौज के सिपाहियों की मदद के लिए ‘आईएनए रिलीफ फंड’ भी बनाया गया। उसमें योगदान करने के लिए 1945-46 में भारत की तमाम ग्रामोफोन कंपनियों ने आजाद हिंद फौज के सिपाहियों के गीतों के रेकॉर्ड निकाले। उन गीतों को देश के मशहूर गायकों ने गाया। सभी गायकों और संगीतकारों ने अपनी रॉयल्टी का पैसा आईएनए रिलीफ फंड में दे दिया। गीतों के अलावा नेताजी सुभाष चंद्र बोस और आजाद हिंद फौज के सैन्य अधिकारियों के भाषणों के रेकॉर्ड भी जारी किए गए।

उन दिनों भारत की एक स्वदेशी ग्रामोफोन कंपनी थी नैशनल ग्रामोफोन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड। बॉम्बे की यह कंपनी ‘यंग इंडिया’ लेबल से ग्रामोफोन रेकॉर्ड निकालती थी। उसी ने सबसे पहले जवाहरलाल नेहरू और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाषणों को रेकॉर्ड के जरिए रिलीज किया।

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उसी यंग इंडिया लेबल पर 1946 में आजाद हिंद फौज के कर्नल गुरबख्श सिंह ढिल्लो की आवाज में वह गीत रेकॉर्ड कर रिलीज किया गया, जिसे फौज का मार्चिंग सॉन्ग बनाया गया था। इस रेकॉर्ड के एक तरफ थी ‘अपने खून से तवारीख लिख जाएं’ गीत की रेकॉर्डिंग और दूसरी तरफ ‘महात्माजी की अहिंसा’ नाम से एक भाषण रेकॉर्ड किया गया था। ‘महात्माजी की अहिंसा’ वाले भाषण में कर्नल ढिल्लो ने देश को भरोसा दिलाया था कि आजाद हिंद फौज के सैनिक अब गांधीजी के दिखाए अहिंसा के रास्ते पर चलकर देश सेवा करेंगे।

‘चलो दिल्ली’ गीत का हिस्सा ‘अपने खून से तवारीख लिख जाएं’ में शामिल था। उस गीत में ही था आजाद हिंद फौज का सबसे बड़ा लक्ष्य। उसमें कहा गया था कि दिल्ली की कुतुब मीनार पर निशान-ए-हिंद को फहराना है। निशान-ए-हिंद यानी भारत का झंडा।

उस गीत के बोल थे-

चलो दिल्ली, जहां मीनार कुत्बी है

चलो दिल्ली, निशान ए हिंद को हम उसपे लहराएं।

चलो दिल्ली, चलो दिल्ली…

इस गीत से साफ पता चलता है कि आजाद हिंद फौज के सिपाही अगर अपने मकसद में सफल हो जाते, तो वे दिल्ली पहुंचकर कुतुब मीनार पर भारत का झंडा फहराते। वैसे भी, स्वाभिमान का झंडा सबसे ऊंची जगह पर लहराना चाहिए। तब दिल्ली में झंडा फहराने के लिए सबसे ऊंची जगह कुतुब मीनार ही थी, लेकिन उन सैनिकों का वह सपना पूरा न हो सका।

भारत की आजादी के 75 साल 15 अगस्त 2022 को पूरे होंगे। पूरे देश में इस मौके को आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मनाने की तैयारी चल रही है। केंद्र और राज्यों की सरकारें कई तरह के कार्यक्रमों की योजनाएं बना रही हैं। मैं भी आजादीनामा शीर्षक से 75 वृत्तचित्र बना रहा हूं, जिनके स्रोत ग्रामोफोन रेकॉर्ड हैं। इसी स्रोत पर अनुसंधान करते हुए मेरा ध्यान एक ऐतिहासिक घटना पर गया।

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इस पृष्ठभूमि में भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय को और उसके अधीनस्थ भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को 15 अगस्त, 2022 को कुतुबमीनार पर तिरंगा के साथ-साथ आजाद हिंद फौज का झंडा लहराने की तैयारी करनी चाहिए। इससे अमृत महोत्सव की गरिमा बढ़ेगी। इसके साथ ही, इस अवसर पर कुतुब मीनार से लेकर दिल्ली के लाल किले के बीच में स्थित भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित अनेक ऐतिहासिक स्थलों में भारत की आजादी के आंदोलन से सम्बद्ध प्रदर्शनियां लगाई जाएं। उन प्रदर्शनियों में आजाद हिंद फौज के सिपाहियों की वीरता और उन पर लाल किले में चलाए गए मुकदमे से संबद्ध चित्रों, दस्तावेजों और अन्य उपलब्ध सामग्रियों की भी प्रदर्शनी लगाई जाए। और क्या इस दौरान उन अनमोल ग्रामोफोन रेकॉर्ड्स की प्रदर्शनी नहीं लगाई जानी चाहिए? क्या आजादी की 75वीं सालगिरह पर संस्कृति मंत्रालय को कुतुब मीनार पर तिरंगे के साथ आजाद हिंद फौज का झंडा नहीं फहराना चाहिए?

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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