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हाइलाइट्स

  • कन्हैया कुमार के कांग्रस में शामिल होने से आरजेडी खुश नहीं
  • आरजेडी नेताओं का कन्हैया कुमार को पहचानने से भी इनकार
  • कांग्रेस में शामिल कन्हैया कुमार की अबतक जिम्मेदारी तय नहीं
  • बिहार के बेगूसराय से 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं कन्हैया

पटना
बिहार के ‘सियासी राजकुमारों’ (तेजस्वी-चिराग) के सामने कन्हैया कुमार बड़ी चुनौती बननेवाले हैं। इसका अभास ‘भावी मुख्यमंत्री’ माननेवालों को भी है। तेजस्वी और कन्हैया ने कभी मंच साझा नहीं किया। पूरे देश में कन्हैया की पहचान एंटी मोदी को लेकर रही है। कांग्रेस में उनकी एंट्री ने आरजेडी के पेशानी पर बल ला दिया है।

कन्हैया कुमार से तेजस्वी को किस बात का डर?
बिहार में कन्हैया कुमार से आरजेडी ‘कांप’ रही है। आलम ये है कि पार्टी नेता पहचानने से भी इनकार कर रहे हैं। पत्रकारों से ही सवाल करने लगते हैं कि कौन हैं कन्हैया कुमार? किसी भी सवाल का जवाब देने से बचना चाहते हैं। रिपोर्टों के मुताबिक कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने के बाद राष्ट्रीय जनता दल ने अपने प्रवक्ताओं और सभी नेताओं को फरमान जारी कर दिया है। इसमें कहा गया है कि कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी जाए। पार्टी के सीनियर नेता और विधायक भाई वीरेंद्र से जब कन्हैया कुमार के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि कौन है कन्हैया कुमार? मैं इन्हें नहीं जानता। माना जा रहा है कि कन्हैया के कांग्रेस में शामिल होने से आरजेडी खुश नहीं है। बिहार में कांग्रेस और सीपीआई दोनों महागठबंधन का हिस्सा है और कन्हैया कुमार सीपीआई से ही कांग्रेस में आए हैं।

अपने हिसाब से कांग्रेस को ‘एडजस्ट’ नहीं पाएंगे?
बिहार में कांग्रेस को हराकर ही लालू यादव ने ‘राज’ करना शुरू किया था। 15 साल तक उनकी पार्टी राज्य की सत्ता पर काबिज रही। जगन्नाथ मिश्रा के कांग्रेस छोड़ने के बाद से पार्टी नेतृत्व विहीन हो गई और धीरे-धीरे लालू यादव अपने हिसाब से कांग्रेस को ‘एडजस्ट’ करते रहे। कांग्रेस और आरजेडी का रिश्ता दो दशक से ज्यादा पुराना है। ये सवाल उठता है कि आखिर कन्हैया के कांग्रेस में आने से आरजेडी नाराज क्यों है? दरअसल बिहार में कांग्रेस के पास कोई चेहरा नहीं था। कांग्रेस के घाघ नेता अपनी ‘सेटिंग-गेटिंग’ में लगे रहते हैं। पार्टी को नौजवान नेतृत्व को जरूरत थी। कन्हैया कुमार उस हिसाब से फिट बैठते हैं। पढ़े-लिखे हैं, हाजिर जवाब हैं, अच्छे वक्ता हैं, एंटी मोदी की पहचान रखते हैं और किसी भी आरोप का मुंहतोड़ जवाब देते हैं। कन्हैया की ये खासियतें लालू यादव और तेजस्वी को ‘सूट’ नहीं करती है।

कन्हैया के आने से महागठबंधन ‘फेस वॉर’ शुरू?
जब तक कांग्रेस कमजोर रहेगी, क्षेत्रीय दलों की दुकानदारी चलती रहेगी। कांग्रेस के मजबूत होने से आरजेडी को नुकसान होगा। इसमें कोई दो मत नहीं है। आरजेडी कभी नहीं चाहेगी कि कांग्रेस को मजबूत नेतृत्व मिले। कन्हैया की मेहनत और जिम्मेदारियों पर सबकुछ निर्भर है। पंजाब क्राइसिस के बावजूद राहुल गांधी ने जिस तरह से कन्हैया को तवज्जो दी, उससे लालू और तेजस्वी का चैन जरूर खो गया है। फिलहाल बिहार में महागठबंधन का चेहरा तेजस्वी यादव हैं। बिहार कांग्रेस में कन्हैया का रोल बढ़ने से ‘फेस वॉर’ शुरू हो जाएगा। तेजस्वी की पहचान लालू यादव की बदौलत है, जबकि कन्हैया कुमार ने खुद को गढ़ा है। वो अपनी भाषण शैली से लोगों को अच्छे से कनेक्ट करते हैं। कांग्रेस में कन्हैया को शामिल नहीं कराया जाए, इसके लिए आरजेडी ने कई तिकड़म किए थे। मगर मामला ‘सेट’ नहीं हो पाया। कहा जाता है कि कन्हैया को पार्टी में शामिल कराने का फैसला राहुल गांधी का है।

बेगूसराय में कन्हैया हारे थे या हरा दिए गए?
कन्हैया कुमार को बिहार में कोई जिम्मेदारी कांग्रेस सौंपती है तो इसका सीधा असर तेजस्वी यादव पर पड़ सकता है। कन्हैया की स्टाइल तेजस्वी पर भारी है। उनसे तो आरजेडी 2019 लोकसभा चुनाव से ही खुश नहीं है, जब सीपीआई ने बेगूसराय से उम्मीदवार बना दिया था। गिरिराज सिंह के जीतने के पीछे कहीं ना कहीं आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव का भी हाथ माना जाता है। बेगूसराय से कन्हैया कुमार की जीत होती तो तेजस्वी यादव का राजनीतिक कद कम हो जाता। आरजेडी ने अपने उम्मीदवार तनवीर हसन को उतार कर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया था और बीजेपी की जीत आसान हो गई। बिहार में दो सीटों पर उपचुनाव होने हैं। तारापुर और कुशेश्वर स्थान पर आरजेडी ने अपना दावा ठोक दिया है। जबकि कुशेश्वर स्थान से 2020 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस चुनाव लड़ी थी। हालांकि उसके उम्मीदवार हार गए थे।

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