संस्थान और कोरोना महामारी के चलते नहीं हो पाई परीक्षा
कोर्ट ने कहा कि 2020 में संस्थान के अपने कारण और 2021 में कोविड महामारी (Corona Pandemic) के चलते पेपर नहीं हो पाया था। 2020 और 21 में जो आवेदक पात्र थे उनके लिए उम्र में छूट दी जा रही है लेकिन यह व्यवस्था एक बार के लिए होगी और यह 2022 के इम्तेहान में अति विशेष परिस्थिति में छूट दी जा रही है। लेकिन मौजूदा साल के लिए अब छूट नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो कैंडिडेट जो 2020 और 2021 में एग्जाम देने के लिए पात्रक थे और डीजेएसई के लिए 32 साल की उम्र और डीएचजेएसई के लिए 45 साल उम्र पार नहीं हुई थी उन्हें एक बार छूट दी जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 233(2) का दिया हवाला
शीर्ष अदालत के जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा कि जो संवैधानिक व्यवस्था है उसके खिलाफ उम्र क्राइटेरिया नहीं है। संविधान के अनुच्छेद-233 (2) के तहत संविधान न्यूतम पात्रता तय करता है इसके लिए कहा गया है कि वकील की प्रैक्टिस सात साल की होनी चाहिए। न्यूनतम उम्र का जिक्र संविधान में नहीं है। हाई कोर्ट ने अपने अधिकार क्षेत्र के तहत नियम तय किया है और वह उसका यह अख्तियार है।
कोर्ट ने आगे कहा कि संविधान ने अगर सात साल न्यूतनम वकालत की प्रैक्टिस की बात कही है तो निश्चित तौर पर इसके पीछे का उद्देश्य यही है कि परिपक्व लोग हायर ज्यूडिशियल सर्विसेज में आएं ऐसी सोच है। हाई कोर्ट ने इस मामले में 4 मार्च 2022 को आदेश पारित किया था और उसके खिलाफ याचिकाकर्ता नीशा तोमर ने अर्जी दाखिल कर न्यूतनम उम्र के क्राईटेरिया को चुनौती दी थी।