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हाइलाइट्स

  • झारखंड में जज की मौत के मामले में सुनवाई कर रही थी अदालत
  • CBI, IB जैसी केंद्रीय एजेंसियों को सुप्रीम कोर्ट ने लगाई फटकार
  • कोर्ट ने कहा- जजों की बिल्‍कुल मदद नहीं करतीं ऐसी एजेंसियां
  • ‘हाई प्रोफाइल केसेज में मनमुताबिक फैसला नहीं आता तो बदनामी’

नई दिल्ली
देश में जजों को मिलने वाली धमकियों पर चिंता जताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई और आईबी जैसी एजेंसियों को फटकार लगाई है। कोर्ट ने कहा, ‘गैंगस्टर और हाई प्रोफाइल क्रिमिनल केसों में जजों को धमकियां मिलती हैं और वॉट्सऐप पर अपशब्द भेजे जाते हैं। लेकिन सीबीआई और आईबी जजों की बिल्कुल मदद नहीं करती हैं।’ धनबाद में एक जज की मौत के मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने यह कमेंट किया। साथ में सीबीआई को मामले की जांच रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया।

चीफ जस्टिस एनवी रमना और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा, ‘जजों को धमकी मिलने के एक-दो मामलों में हमने सीबीआई जांच का आदेश दिया था। एजेंसी ने एक साल से अधिक समय में कुछ नहीं किया। वक्त के साथ हमें सीबीआई के रवैये में बदलाव की उम्मीद थी, लेकिन यह कहते हुए दुख हो रहा है कि कोई बदलाव नहीं आया।’ इस पर अटॉर्नी जनरल ने कहा कि हमारे पास जजों पर अटैक होने के मामलों की लिस्ट है। समय आ गया है कि कड़े कदम उठाए जाएं।’

‘जजों को बदनाम किया जाने लगा है’
चीफ जस्टिस ने यह भी कहा, ‘एक नया चलन शुरू हो गया है। हाई प्रोफाइल क्रिमिनल केसों में मन मुताबिक आदेश न आने पर अदालतों और जजों को बदनाम करना शुरू कर दिया जाता है। देश भर में ये ट्रेंड है।’ धनबाद के जज उत्तम आनंद की मौत का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘देखिए… किस तरह से एक युवा जज की मौत हुई है। ये राज्य की विफलता है।’

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जब कोर्ट ने पूछा, भारी दस्तावेज देकर डराना चाहते हो?
सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को एक याचिकाकर्ता की ओर से ढेर सारे दस्तावेज पेश किए गए। इस पर कोर्ट ने कहा, ‘क्या इतनी मोटी फाइलें हमें डराने के लिए पेश की जा रही हैं? इन दस्तावेजों को लाने के लिए हमें लॉरी लगानी पड़ी।’ ट्राई के नए टैरिफ के फैसले को बहाल रखने के बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन ने याचिका दी थी। इस पर चीफ जस्टिस एनवी रमना की बेंच ने कहा, ‘आपने दस्तावेज के 51 वॉल्यूम जमा किए हैं। इन्हें लाने के लिए हमें लॉरी लगानी पड़ी। इतने सारे दस्तावेज देने की कोई जरूरत और औचित्य नहीं है।’

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सुप्रीम कोर्ट (फाइल)



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