बेंच ने मृत्यु से पहले व्यक्ति के बयान और उसके बयान का समर्थन करने वाले चिकित्सकीय सबूतों पर भरोसा करने के बाद कमल खुदाल की दोषसिद्धि और सजा को बरकरार रखा। जस्टिस पारदीवाला ने पीठ की तरफ से फैसले में लिखा है, ‘मृत्यु से ठीक पहले किसी व्यक्ति के दिए गए बयान को स्वीकार करने के पीछे संपूर्ण विचार यह है कि अंतिम समय में कोई व्यक्ति झूठ बोलकर विदा नहीं होना चाहेगा। यह माना जाता है कि जब कोई व्यक्ति मृत्यु के करीब पहुंच जाता है तो दुनिया से हर तरह की उसकी अपेक्षा खत्म हो जाती है और वह बुरे इरादों से दूर हो जाता है।’
शीर्ष अदालत ने कहा कि मौत से पहले मौखिक और लिखित बयानों के साक्ष्य के रूप में प्रकृति, दायरे और मूल्य के संबंध में कानून की इस न्यायालय के विभिन्न न्यायिक निर्णयों द्वारा काफी अच्छी तरह से व्याख्या की जा चुकी है।
प्राथमिकी के मुताबिक 15 जुलाई 2007 को सुबह करीब सात बजे खुदाल सह आरोपी (मुन्ना भाई) के साथ मृतक (उत्तम दत्ता) के घर आया। दोनों आरोपी दत्ता को अपने साथ धान की रोपाई के लिए ले गए और देर शाम तक दत्ता अपने घर नहीं लौटा।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, धान के खेत में कुछ समय तक काम करने के बाद दत्ता आरोपी व्यक्तियों के साथ एक शराब कारखाने में गया। कुछ देर बाद, स्थानीय लोगों ने दत्ता को शरीर पर जलने के निशान के साथ कारखाने से बाहर आते हुए देखा। अभियोजन पक्ष के गवाह, जो पास के खेत में मौजूद थे, ने दत्ता से पूछा कि क्या हुआ।
अभियोजन के मुताबिक दत्ता ने उन्हें बताया था कि आरोपियों ने उसके शरीर पर गर्म लाली (स्थानीय शराब बनाने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला कच्चा माल) डाला था, जिसके परिणामस्वरूप वह जल गया। इतना बताने के बाद लाली की मौत हो गई।