क्या था पूरा मामला?
यह मामला छत्तीसगढ़ का है। चार आरोपी भागीरथ, चंद्रपाल, मंगलसिंह और विदेशी को निचली अदालत ने दोषी करार दिया था। दो लोगों की हत्या के मामले में चारों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। इस मामले में हाई कोर्ट में अपील दाखिल की गई। हाई कोर्ट ने तीन लोगों की अपील स्वीकार कर उन्हें बरी कर दिया जबकि चंद्रपाल को दोषी करार दिया और उसे उम्रकैद की सजा दी गई। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया।
सुप्रीम कोर्ट में आरोपी चंद्रपाल की ओर से दलील दी गई कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्यों में विरोधाभास है और गवाही पुख्ता नहीं है। इस मामले में एक आरोपी ने एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल बयान दिया था। लेकिन, सिर्फ उस बयान के आधार पर आरोपी को दोषी करार नहीं दिया जा सकता है। कारण है कि अन्य साक्ष्य पुख्ता नहीं हैं।
राज्य सरकार ने क्या दी दलील?
राज्य सरकार ने कहा कि इस मामले में तमाम परिस्थितिजन्य साक्ष्य मौजूद हैं और साक्ष्यों की कड़ियां जुड़ रही हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा-30 के मुताबिक, एक से ज्यादा आरोपी हों और साथ में ट्रायल चला हो तो एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल कन्फेशन की वैल्यू तब ज्यादा है जब अभियोजन पक्ष के अन्य पूरक साक्ष्य पुख्ता तौर पर मौजूद हों। जब तक कि पूरक साक्ष्य मौजूद नहीं हैं तब तक एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल कन्फेशन कमजोर किस्म के साक्ष्य माने जाते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में एक्स्ट्रा ज्यूडिशियल कन्फेशन यानी इकबालिया बयान कमजोर साक्ष्य है क्योंकि इसे साबित नहीं किया जा सका है और न ही अन्य पुख्ता साक्ष्य हैं और ऐसे में आरोपी चंद्रपाल को मर्डर मामले में इस बयान के आधार पर दोषी करार नहीं दिया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को बरी कर दिया।