गर्मी व बरसात के मौसम में बैक्टीरियल और वायरल इंफेक्शन की आशंका काफी रहती है। वहीं पेट और आंतों में सूजन की वजह से परेशानी हो जाती है। आजकल पेट में अममून दो तरह की परेशानी ही ज्यादा देखी जाती है:
1. पेट और आंतों में सूजन: इसे गैस्ट्रोइनटेरिटिस भी कहते हैं। यह सूजन खराब भोजन खाने और गंदे पानी की वजह से हो सकती है। दरअसल, इनमें बैक्टीरिया और वायरस की मौजूदगी हो सकती है। अमूमन यह समस्या 3 से 4 दिनों में दूर हो जाती है। किसी-किसी में परेशानी लंबा भी चला जाता है। बैक्टीरियल इंफेक्शन से ज्यादा कॉमन है वायरल इंफेक्शन।
यह आमतौर पर इन 4 कारणों से होता है। बैक्टीरियल इंफेक्शन: ई-कोलाई, साल्मोनेला, कैंपीलोबैक्टर, शिजेला
गैस्ट्रोइनटेरिटिस में बैक्टीरियल इंफेक्शन के लक्षण
पेट और आंतों में सूजन
पेट में दर्द
पानी की कमी
उल्टी और डायरिया, कई बार स्टूल के साथ खून भी आता है।
तेज बुखार (102 या 103 फारेनहाइट तक), कभी-कभी हल्का बुखार (100 फारेनहाइट तक)
कमजोरी
शरीर में पानी की कमी
किस बैक्टीरिया या पैरासाइट ने लक्षण पैदा किए हैं, उस पर भी निर्भर करता है।
दवा की बात: इसमें डॉक्टर खून और स्टूल जांच के बाद ऐंटिबायोटिक भी लिखते हैं।
गैस्ट्रोइनटेरिटिस में वायरल इंफेक्शन के लक्षण
- सभी लक्षण बैक्टीरियल इंफेक्शन वाले ही होते हैं।
- बुखार इसमें कम आता है। अमूमन 100 से नीचे ही रहता है।
- इसमें कभी-कभी मांसपेशियों में दर्द भी होता है।
- 99 फीसदी मामले 3 से 4 दिनों में खुद ही दूर हो जाते हैं।
- 1 फीसदी मामले ही गंभीर होते हैं।
दवा की बात: चूंकि यह वायरल इंफेक्शन होता है, इसलिए ऐंटिबायोटिक लेने से कोई फायदा नहीं होता। अमूमन ऐंटिबायोटिक नहीं दी जाती।
2. एक्यूट हेपेटाइटिस: यह लिवर की परेशानी है। इसमें लिवर में सूजन आ जाती है। खाना अच्छा नहीं लगता। बुखार भी 100 या इससे ऊपर भी हो सकता है। अगर मामला बहुत ज्यादा गंभीर न हो तो इसमें ऐंटिबायोटिक नहीं दी जाती। दरअसल, ऐंटिबायोटिक का बुरा असर लीवर पर पड़ता है।
क्या हैं लक्षण
- पेट में काफी तेज दर्द
- भूख में कमी
- थकावट
- उल्टी
- यूरिन का रंग गाढ़ा पीला
- जोड़ों में दर्द
- हल्का बुखार (100 तक)
- सीने के दाहिने हिस्से में रिब्स (छाती की हड्डी) के नीचे दर्द
क्या करें कि इस तरह की परेशानी हो ही नहीं
1. आदत बदलें
- खाने को कम से कम 12 बार चबाकर खाएं। हम जो भी खाते हैं उसका पाचन मुंह से शुरू हो जाता है। उसमें लार मिलती है। अगर भोजन के कणों को कम तोड़ेंगे तो इसका सीधा असर पेट पर होगा। वहां पर इसे पचाने में ज्यादा मेहनत करनी होगी और एक तरह से पेट की गर्मी बढ़ जाएगी क्योंकि ज्यादा मात्रा में एचसीएल निकालना होगा।
- खाने को मुंह में इतना चबाना चाहिए कि यह पेस्ट जैसा बन जाए।
- सुपाच्य और सामान्य खाना ही खाएं, जैसे: दाल, भात या रोटी और मौसमी सब्जी। ज्यादा तेल-मसाले से बचें।
- जब खाना मुंह से फूड पाइप के जरिये पेट में पहुंचता है तो वहां पर HCL (हाइड्रोक्लोरिक एसिड) निकलता है। इस वजह से खाना वहां एसिडिक बन जाता है। इसके अलावा भी यहां कई तरह के दूसरे पाचक रस निकलते हैं।
- हर दिन एक शख्स के पेट में करीब 2.5 लीटर पाचक रस निकलता है।
- पेट में एचसीएल और खाना इस तरह मिलता है, जैसे कोई आटा गूंथता है।
- पेट में एचसीएल खाने को इस तरह तोड़ता है कि छोटी आंत में पहुंचने पर शरीर उसे आसानी से जज्ब कर सके।
- छोटी आंत में पहुंचते समय भोजन के 1 कण का आकार 1 मिलीमीटर या इससे छोटा होना चाहिए।
2. खानपान का चुनाव हो सही
- बासी खाना न खाएं।
- गर्म तासीर वाली चीजें, जैसे: कच्चा प्याज, मिर्च, लहसुन, अदरक बहुत कम कर दें। सर्दियों में जितना लेते थे, उसकी तुलना में 10 फीसदी से ज्यादा न हो।
- बाहर का खाना खाने से बचें।
- बाहर की कच्ची चीजें, जैसे: सलाद या फ्रूट सलाद भी न खाएं। यह मुमकिन है कि उसे साफ पानी से न धोया गया हो।
- मौसमी फल और सब्जियां को घर में अच्छी तरह से धोकर खाएं। खासकर फल और सलाद को।
- बाहर के गन्ने का बर्फ वाला जूस या कोई दूसरा जूस भी न लें क्योंकि बर्फ के लिए किस पानी का इस्तेमाल किया गया है और कैसा रखरखाव है, यह पता नहीं चलता।
- चाय, कॉफी, शराब आदि में कमी या इनसे दूरी जरूरी है।
- गर्मी से बचने के लिए हम बहुत ज्यादा ठंडा पानी पीते हैं। यह गलत है। पानी उतना ही ठंडा हो जितना एक मिट्टी के मटके में रखने पर होता है। सच तो यह कि ठंडा पानी जीभ के टेस्ट के लिए ठीक हो सकता है, लेकिन शरीर के भीतर पहुंचने पर शरीर को इसे फिर गर्म करना पड़ता है।
जब हो जाए इंफेक्शन… डिहाइड्रेशन से है लड़ना
जब ज्यादा उलटी, डायरिया की स्थिति बनती है तो शरीर में पानी की कमी होने लगती है। ज्यादा परेशानी होने पर किडनी फेल होने की आशंका रहती है।
इसलिए शरीर में पानी की मात्रा कम न होने दें। हर एक या दो घंटे पर एक गिलास ओआरएस का घोल दें। अगर ओआरएस नहीं है तो एक गिलास सादा पानी में एक चुटकी नमक और एक से दो चम्मच चीनी मिलाकर दें। यह भी न हो तो सामान्य पानी दें। पर यह ध्यान रहे कि पानी में फिर से इंफेक्शन की आशंका न हो। अगर ज्यादा जरूरी हुआ तो पानी को 5 मिनट खौला लें। फिर सामान्य तापमान होने पर पीने के लिए दें।
खानपान का ध्यान
- तेल-मसाला बिलकुल बंद कर दें।
- हाई कैलरी (मीठा, फैटी चीजें, जंक फूड: पित्जा, बर्गर, नूडल्स आदि) न लें।
- रोटी न खाएं, पचाने में परेशानी होगी।
- दूध और उससे बने उत्पाद से बचें। चीनी मिलाकर एक कटोरी दही खा सकते हैं। दही खट्टा न हो।
- खाने में खिचड़ी (मूंग दाल वाली) या चावल और मूंग या मसूर दाल का पानी लें।
- अगर बुजुर्ग हैं तो उनके बीपी पर भी नजर रखनी है। कई बार बीपी नीचे चला जाता है। अगर यह 100/60 से नीचे जाए तो डॉक्टर से संपर्क जरूर करें। इसलिए इन्हें डिहाइड्रेशन न होने दें।
ऐसे में ये ड्रिंक भी देंगे साथ
- बेल का शर्बत: एक दिन में 2 गिलास। अगर कब्ज की समस्या है तो न लें या आधा गिलास काफी है। यह कब्ज को बढ़ाता है।
- आम पना:1 दिन में 2 गिलास तक
- शिकंजी: एक दिन में 3 से 4 गिलास
- लस्सी: 2 गिलास तक
- जलजीरा: 3 से 4 गिलास
- चना सत्तू ड्रिंक: नमकीन या मीठा पिएं (एक गिलास पानी में दो या तीन चम्मच चना सत्तू और स्वादानुसार नमक या चीनी)।
मन की गर्मी यानी गुस्सा
गुस्से को हम मन की गर्मी कह सकते हैं। गुस्सा सभी को आता है। किसी को कम तो किसी को ज्यादा। कोई गुस्से में अपना नुकसान करता है: कभी सिर पटकता है तो कभी घर का सामान फेंक देता है। वहीं कुछ लोग गुस्से में दूसरों का नुकसान करते हैं। हिंसा पर उतर आते हैं। हाथ में जो सामान आया उसे उठाकर सामने वाले पर फेंकते हैं। इसे इमोशंस का मुखौटा भी कहते हैं। दरअसल, गुस्से को डीप इमोशन नहीं माना जाता। ज्यादातर समय गुस्सा आने के वक्त मन में किसी दूसरी वजह से उथल-पुथल मची होती है और यह बाहर किसी दूसरी वजह से निकलता है। सीधे कहें तो यह अंदर के इमोशंस को दर्शाने की कोशिश होती है। गुस्सा आने पर एक परेशानी यह होती है कि हमें पता ही नहीं चलता कि हम गुस्से में हैं। हां, दूसरों का गुस्सा हम जरूर समझ लेते हैं।
क्या है इसमें केमिकल लोचा
जब गुस्सा आता है तो एड्रिनलिन हॉर्मोन तेजी से निकलता है। यह हॉर्मोन हमारी धड़कनों को तो बढ़ाता ही है, साथ ही हमें अतिरिक्त ऊर्जा का आभास भी कराता है। इससे हम हिंसक होने लगते हैं। गुस्सा आने का मतलब है कि उस समय हमारे शरीर में मौजूद सेरेटोनिन हॉर्मोन के स्तर में बदलाव हुआ है। दरअसल, यह हॉर्मोन हमारे दिमाग को शांत रखने में अहम भूमिका निभाता है। एड्रिनलिन हॉर्मोन तेजी से रिलीज होता है और बॉडी को इस बात के लिए तैयार कर देता है कि वह फिजिकली रिऐक्ट करे। दूसरी तरफ नर्वस सिस्टम में कॉर्टिसोल समेत कुछ और केमिकल निकलते हैं। ये दिमाग को उत्तेजित अवस्था में रखते हैं, जिससे दिमाग में विचारों का प्रवाह बेचैनी के साथ और बेहद तेज रफ्तार से होने लगता है।
आखिर गुस्सा क्यों बेकाबू होता है?
- अपनी सामाजिक और आर्थिक स्थिति से असंतुष्ट होना
- दिल की बातें किसी से शेयर न कर पाना
- सब्र की भारी कमी, दूसरों को देखकर जलन
- माहौल का भी असर
गुस्से में हैं यह कैसे पहचानें
- सांस तेज: गुस्से का यह शुरुआती लक्षण है। हमारी सांसें सामान्य 15 से 20 प्रति मिनट से बढ़कर 30 से 35 प्रति मिनट तक हो सकती हैं।
- धड़कनें तेज: जब सांसें तेज होती है तो धड़कनें भी तेज हो ही जाती हैं। यह 60 से 80 से बढ़कर 80 से 100 या इससे भी ऊपर पहुंच जाती हैं।
- पैर थरथराना: कई बार गुस्सा आने पर पैरों में थरथराहट आम बात है। कई लोगों को इसलिए फौरन ही बैठ जाना पड़ता है, नहीं तो गिरने का डर रहता है।
- हाथ-पैर पटकना: यह ज्यादातर बच्चों, टीनएजर्स में देखा जाते हैं, लेकिन कुछ युवाओं में भी यह लक्षण हो सकता है।
- चेहरा और आंखें लाल: चूंकि एड्रिनलिन हार्मोन ज्यादा मात्रा में निकलता है। इससे शरीर में खून का बहाव तेज हो जाता है। कुछ लोगों की आंखों और चेहरे पर इसका सीधा असर दिखता है। ये लाल हो जाते हैं।
- सिरदर्द: यह भी गुस्सा आने के बाद मुमकिन है। अमूमन यह ज्यादातर उन लोगों में होता है जिन्हें हाई बीपी की शिकायत होती है।
- चिल्लाना और शब्दों के चुनाव में गलती: गुस्सा जताने के लिए हम चिल्लाना शुरू करते हैं। खासकर तब जब हम यह मान लेते हैं कि हम ही एक सही हैं, बाकी सभी गलत।
- विचारों का प्रवाह बहुत तेज होना: जब हम गुस्से में होते हैं तो हमारे दिमाग में एक साथ कई तरह के विचार पैदा होने लगते हैं।
क्या है नुकसान
- अगर किसी को हाई बीपी की परेशानी है तो यह स्वाभाविक है कि उसकी धड़कनें बढ़ी होंगी। ऐसे में अगर उसे गुस्सा आएगा, बार-बार आएगा तो यह मुमकिन है कि उसकी हार्ट बीट बहुत ज्यादा हो जाए। नतीजा एंजाइना या हार्ट अटैक भी हो सकता है।
- खुद को शारीरिक नुकसान पहुंचाकर खुद का नुकसान करते हैं। समस्या तब बढ़ जाती है जब कोई गुस्से पर काबू न रखते हुए दूसरों से गाली-गलौज या मारपीट करने लगता है। पुलिस केस जैसी समस्या भी आ जाती है।
- अगर किसी करीबी से चिल्ला कर बोल दें तो संबंध कई बार हमेशा के लिए खराब हो जाते हैं।
बिना वजह और बार-बार गुस्सा आने की वजह
अगर कोई शख्स तनाव या डिप्रेशन में लगातार हो तो यह काफी आशंका होती है कि उसे बार-बार गुस्सा आए। खासकर उन बातों के बारे में सोचकर या चर्चा होने पर जिसकी वजह से वह तनाव की स्थिति में होता है। जब तक उस समस्या का कोई हल नहीं निकलता, तब तक उस विषय पर ज्यादा मंथन न करें। वहीं, उनके करीबी लोगों को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसे शख्स के सामने उन बातों की जिक्र या चर्चा करने से बचे। अगर चर्चा हो भी तो उसकी वजह के लिए उस शख्स को दोषी न बताएं। अगर जरूरत हो तो किसी साइकॉलजिस्ट या सायकायट्रिस्ट की मदद भी ले सकते हैं।
क्या यह मुमकिन है कि गुस्सा आए ही नहीं?
यह संभव नहीं है। गुस्सा सभी को आता है, लेकिन जरूरी यह है कि उस पर काबू कैसे किया जाए। हमें यह समझना होगा कि जब गुस्सा आने की स्थिति बने या गुस्सा आ जाए तो क्या करना चाहिए?
रिएक्शन टाइम बढ़ाने से गुस्सा होगा कूल
उदाहरण 1: जब हम गाड़ी चलाते हैं और कोई आगे वाली गाड़ी बिना इंडिकेटर दिए मुड़ जाए। हमें अचानक ही ब्रेक लगाना पड़े। हमारा रिऐक्शन ज्यादातर मामलों में चिल्लाना, गाली देना या अगर मुमकिन हुआ तो उतरकर उससे लड़ाई करना यानी अगर हमारे मन के कुछ भी विपरीत हो तो हमें बर्दाश्त नहीं होता जबकि यह संभव नहीं है कि सभी लोग हमारी मर्जी से ही काम करें। हर कोई नियमों का पालन करे।
- कार वाले उदाहरण को ही देखें तो हमारा रिऐक्शन होना चाहिए: हम कार को साइड में लगा दें। कुछ 10 से 15 बार गहरी सांस लें। जब गुस्से का आवेग निकल जाए तब गाड़ी में लौटें।
उदाहरण 2: घर में या ऑफिस में हैं। वहां पर किसी बात पर गुस्सा आ गया। ऊपर जो लक्षण बताए गए हैं, वे सब दिख रहे हैं तो हमें उठकर उस कमरे से दूसरे कमरे में चले जाना चाहिए। इससे रिऐक्शन टाइम बढ़ जाएगा। साथ ही माहौल बदल जाएगा तो हम उन घटनाओं पर विवेक के साथ जवाब पाएंगे ना कि आवेग यानी गुस्से में।
गुस्से की उत्पत्ति को पहचानना: अगर किसी खास वजह से गुस्सा आ रहा है तो उसे पहचानना जरूरी है। किसी खास विषय पर बात करने से गुस्सा आता है तो उससे बचने की जरूरत है।
लचीलापन: हमें दूसरों को सुनने के लिए लचीलापन रखना चाहिए। स्थिति के हिसाब से बदलाव के लिए भी तैयार रहना चाहिए।
तनाव कम करना: तनाव में सभी होते हैं, लेकिन जब यह हर दिन के काम में खलल पैदा करने लगे तो इस पर काबू करना जरूरी है। ऐसे तनाव से ही अक्सर गुस्सा पैदा होता है।
छोटी-छोटी खुशियों को जाया न करना: जब ज़िंदगी में खुशियां कम होंगी तो तनाव ही बढ़ेगा। एक छोटी-सी खुशी को भी अगर 5 लोगों से शेयर करेंगे तो 5 बार खुश हो जाएंगे।
वॉकिंग और एक्सरसाइज: हर दिन 30 से 35 मिनट का वॉक और 15 से 20 मिनट की एक्सरसाइज से फायदा होता है। पॉजिटिव हॉर्मोन ज्यादा निकलता है।
योग और ध्यान करना: हर दिन 10 मिनट का ध्यान और 10 से 15 मिनट योग करने से एड्रिनलिन हॉर्मोन कम मात्रा में या जल्दी नहीं निकलता।
अच्छा श्रोता बनना: जब हम अच्छे सुनने वाले होते हैं तो फौरन ही जवाब नहीं देते यानी रिऐक्शन टाइम बढ़ जाता है।
क्या सही है गुस्सा को दबाना: खून का घूंट पीकर रहना, सही नहीं है। यह बीपी भी बढ़ाता है और नींद भी उड़ा देता है। इसलिए गुस्से को निकलने दें, पर रिऐक्शन टाइम बढ़ाकर और धैर्य के साथ।
गर्मी में घर को ऐसे रखें ठंडा
गर्मियों में घर भी काफी गर्म हो जाता है। अगर घर की छत या दीवारों पर सीधी धूप आती है तो हो सकता है कि घर अंदर से एक तरह से आग का गोला बना हुआ हो। ऐसे में अगर घर में एसी न हो तो पंखे और कूलर भी गर्म हवा फेंकते हैं। लेकिन ऐसे बहुत सारे उपाए हैं जिन्हें आजमाकर आप घर को ठंडा रख सकते हैं। जानें, ऐसे ही कुछ उपायों के बारे में:
1. छत पर पानी डालें
अगर आप टॉप फ्लोर पर या ऐसे घर में रहते हैं जिसमें सिर्फ एक ही छत है तो गर्मी में छत की तपिश से घर के अंदर ही हवा भी गर्म हो जाती है। ऐसे में बेहतर होगा कि शाम को धूप जाने के बाद छत पर पानी डालें। पानी डालने से छत की तपिश खत्म हो जाती है और घर के अंदर चल रहा पंखा ठंडी हवा देता है। ध्यान रखें कि छत पर पानी तब तक डालें जब तक कि छत ठंडी न लगने लगे। इसके लिए छत पर नंगे पैर चलें। अगर पैर ठंडे लगने लगें तो समझ लें कि छत ठंडी हो गई है। छत को इन तरीकों से भी ठंडी रख सकते हैं:
- छत पर गमले रखकर उनमें पौधे लगा दें। इससे धूप सीधी छत पर नहीं लगेगी और छत ठंडी रहेगी। गमलों में आप सब्जी, फूल वाले पौधे आदि लगा सकते हैं।
- सफेद रंग रिफ्लेक्टर का काम करता है। इसलिए छत पर सफेद पेंट या चूनायुक्त सफेद सीमेंट का लेप लगाएं। ऐसा करने से छत 70 से 80 फीसदी तक ठंडी रहती है।
- छत के ऊपर खाली बोरे या खस की टाट फैलाकर उन पर पानी छिड़कते रहने से भी घर के भीतर आने वाली गर्मी को कम किया जा सकता है।
2. खिड़कियों को करें कवर
गर्मियों में खिड़कियों को जितना हो सके, बंद रखें। अगर खिड़कियां कांच की हैं तो उन पर हीट कंट्रोल वाली फिल्म चिपका दें। ये फिल्म काली, डार्क सिल्वर, ब्लू आदि रंगों में आती हैं। इन्हें कांच पर लगाने से न केवल सूरज की गर्मी से बचा जा सकता है बल्कि ये सूरज से आने वाली अल्ट्रावॉयलेट (UV) किरणों को भी रोकती हैं। इन्हें ऑनलाइन या ऑफलाइन मार्केट से आसानी से खरीदा जा सकता है। अगर फिल्म नहीं लगा सकते तो खिड़कियों पर कॉटन के हल्के पर्दों का इस्तेमाल करें। इससे गर्म हवा और धूप कमरे में नहीं आएगी और घर गर्म नहीं होगा।
- कीमत: 400 रुपये (20×100 इंच का साइज)
यह देसी उपाय भी है कारगर
- अगर आपकी खिड़कियों पर जाली लगी हुई है तो खिड़कियां खोलकर उस पर कोई गीला सूती कपड़ा या खसखस के पर्दे टांग दें। हवा गीले कपड़े से टकराकर जब अंदर आएगी तो वह ठंडी होगी। जब कपड़ा सूख जाए तो उसे फिर से गीला करके खिड़की पर टांग दें।
3. कूलर में डालें बर्फ
मार्केट में इन दिनों ऐसे कूलर आ रहे हैं जिनमें आइस चैंबर होता है। इसमें बर्फ रखी जाती है। कूलर का पानी इस बर्फ से टकराकर कूलर के टैंक में जाता है जो धीरे-धीरे ठंडा होता जाता है। इससे कूलर से आने वाली हवा और भी ठंडी हो जाती है। अगर आपके पास कूलर में आइस चैंबर नहीं है तो सीधे कूलर के टैंक में बर्फ डाल दें। इससे कूलर में भरा पानी ठंडा हो जाएगा और आपको एसी जैसी ठंडी हवा मिलेगी।
4. दीवारों और छत पर कराएं पेंट
आजकल मार्केट में ऐसे पेंट मौजूद हैं जो न केवल घर की खूबसूरती बढ़ाते हैं बल्कि हीट को भी कंट्रोल करते हैं। इन्हें हीट रिफ्लेक्टिव पेंट भी कहा जाता है। इन्हें दीवारों के बाहरी हिस्से और छत पर किया जाता है। सूरज की किरणें जब दीवारों और छत पर पड़ती हैं तो ये पेंट हीट को रिफ्लेक्ट कर देते हैं। इससे सूरज की गर्मी का असर घर पर कम पड़ता है और घर ठंडा रहता है। कई बार यह अंतर 10 डिग्री सेल्सियस तक रहता है यानी अगर घर के बाहर का तापमान 40 डिग्री है तो अंदर का तापमान 30 डिग्री होगा। ये पेंट 10 साल तक चलते हैं।
- कंपनी: Dulux, LuminX, EXCEL आदि।
- कीमत: 6 हजार रुपये (20 लीटर)
5. घर में लगाएं हरे-भरे पौधे
घर में ठंडक के लिए हरे-भरे पौधे भी काम आते हैं। घर के दरवाजे और बालकनी में पौधे लगाने से बाहर की हवा कुछ ठंडी होकर अंदर आती है। वहीं घर के अंदर भी पौधे (इंडोर प्लांट्स) लगा सकते हैं। इसमें मनी प्लांट, स्नेक प्लांट, बेबी रबर प्लांट, एलोवेरा आदि शामिल हैं। इनसे न केवल शुद्ध हवा मिलती है बल्कि घर के अंदर भी ठंडक रहती है। पौधों के कारण घर के अंदर का तापमान बाहर की अपेक्षा 10 डिग्री तक कम रहता है। पौधे लगाते समय इन बातों का ध्यान रखें:
- बालकनी में ऐसे पौधे लगाएं जो घने हों जैसे- पाम, गुड़हल आदि।
- इंडोर प्लांट में छोटे-छोटे पौधे घर में जगह-जगह लगाएं। अगर आपका घर 1000 स्क्वेयर फुट का है तो इसके 10वें भाग में पौधे ही लगाएं।
- Hide quoted text
- पौधों को शाम को पानी जरूर दें और उन्हें अच्छे से धोएं।
- लंबे पौधों को खिड़कियों के पास रखें ताकि वे कमरे में सीधी धूप को आने से रोक सकें।
6. लगवाएं फॉल्स सीलिंग
छत पर फॉल्स सीलिंग लगवाने से भी गर्मियों में कमरे को ठंडा रखा जा सकता है। फॉल्स सीलिंग में छत के नीचे एक और परत बनती है और धूप के कारण छत के गर्म होने का असर कमरे के अंदर कुछ खास नहीं पड़ता। इससे कमरे में ठंडक बनी रहती है। इसे ड्रोप सीलिंग भी कहा जाता है। फॉल्स सीलिंग को एल्यूमीनियम फ्रेमिंग द्वारा स्क्वेयर पैटर्न में तैयार किया जाता है। इनमें जिप्सम बोर्ड फिट किया जाता है और फिर पेंट या वॉलपेपर लगाकर फिनिश किया जाता है। फॉल्स सीलिंग से घर की खूबसूरती भी बढ़ती है।
7. बिजली के उपकरणों का रखें ख्याल
बिजली के कई उपकरण जैसे टीवी, फ्रिज आदि भी घर में गर्मी बढ़ाते हैं। अगर इन उपकरणों का इस्तेमाल नहीं कर रहे तो बंद कर दें। अगर बंद करना संभव नहीं है तो बेहतर होगा कि इन्हें ऐसी जगह रखें जहां से क्रॉस वेंटिलेशन हर समय रहता हो। घर में LED बल्ब लगवाएं। इनसे कम गर्मी का उत्सर्जन होता है जिससे घर को ठंडा रखने में मदद मिलती है।
ये तरीके भी रखेंगे घर को कूल-कूल
- घर में कॉटन के हल्के रंग के पर्दे, बेडशीट आदि इस्तेमाल करें। इससे कूल-कूल फीलिंग आती है। साथ ही हल्का रंग आंखों को भी ठंडक देता है।
- घर के दरवाजे और खिड़कियां हर समय बंद करके न रखें। सुबह सूरज निकलने से पहले और शाम को सूरज डूबने के बाद कुछ देर के लिए खिड़कियां खोल दें।
- अगर घर में एसी नहीं है तो रात को कोई खिड़की या कमरे का कोई हिस्सा खुला छोड़ दें ताकि ठंडी हवा कमरे में आ सके। अगर हो सके तो एग्जॉस्ट फैन चलाएं।
- घर में क्रॉस वेंटिलेशन सही रखें ताकि हवा का सर्कुलेशन सही बना रहे। अगर पानी के साथ कूलर चला रहे हैं तो कोई खिड़की खोलकर रखें या एग्जॉस्ट फैन लगाकर रखें। नहीं तो कूलर ठंडी हवा की जगह नमी से शरीर को चिपचिपा कर देगा।
- किचन में एग्जॉस्ट फैन या चिमनी लगवाएं ताकि किचन में पैदा हुई हीट को बाहर किया जा सके।
- अगर कमरे में कालीन बिछा हो और उस कमरे में एसी नहीं है तो कालीन को हटा दें। दरअसल, कालीन गर्मी बढ़ाता है। खाली फर्श ठंडा रहता है और गर्मी के दिनों में खाली फर्श पर नंगे पैर चलने से न केवल अच्छा लगता है बल्कि ठंडी-ठंडी फीलिंग भी आती है।
-डॉ. सत्या एन. डोरनाला, वैद्य-साइंटिस्ट फेलो