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sonia gandhi congress president gandhi family: chintan shivir : कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने उदयपुर नव संकल्प चिंतन शिविर में संगठन में सुधार और नेहरू गांधी परिवार को पार्टी अध्यक्ष से अलग रखने के बदले नरेंद्र मोदी सरकार पर मुसलमानों को डराने का आरोप लगाया – congress president sonia gandhi skips leadership issue in party udaipur chintan shivir


नोएडा : चिंतन मनन के मामले में भारत काफी आगे रहा है। मनीषियों के चिंतन ने एक से बढ़ कर एक आध्यात्मिक-सामाजिक सिद्धांत दिए हैं। किसी समस्या या दुविधा से निकलने का रास्ता भी चिंतन प्रदान करता है। भारत की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी यानी कांग्रेस ऐसा ही चिंतन कर रही है। 400 नेताओं को गुटों में बांट कर संगठन की अलग-अलग समस्यायों पर चिंतन के काम में लगा दिया गया है। इसके लिए उदयपुर के रिसॉर्ट को चुना गया है। नव संकल्प चिंतन शिविर (Nav Sankalp Chintan Shivir) के पहले दिन पार्ट की कार्यवाहक अध्यक्ष सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का कबूलनामा थोड़ी देर पहले सामने आ गया। उन्होंने कहा – पार्टी अभूतपूर्व चुनौतियों से जूझ रही है। असाधारण परिस्थितियों में असाधारण फैसले लेने पड़ेंगे। हम इससे पीछे नहीं हटेंगे। सुनने में ये सब बहुत अच्छा है। पर इस चिंतन का मुख्य विषय सोनिया ने भी नहीं बताया। इसी पार्टी ने शिमला में चिंतन के बाद 2004 में वाजपेयी की अटल लग रही सरकार को उखाड़ फेंका था। तब की कांग्रेस और आज की कांग्रेस में क्या फर्क है? तो जवाब है नेतृत्व का। तब सोनिया त्याग की प्रतिमूर्ति थीं। आज कांग्रेस की बर्बादी की मूकदर्शक।

दूसरी ओर देश का नेतृत्व कर रहे नरेंद्र मोदी ने उनकी चुनौतियां और बढ़ा दी है। ऑपरेशन कांग्रेसमुक्त भारत शबाब पर है। सोनिया को पता है कि कांग्रेस की मुख्य समस्या लीडरशिप की है। चिट्ठी से भी ये बता दिया गया है। लेकिन तय मानिए इस चिंतन शिविर में हो सकता है मुख्व विषय पर चर्चा आखिरी दिन तक न हो। नेहरू-गांधी परिवार को पार्टी चलानी चाहिए या नहीं, इसको छोड़ कर हो सकता है सभी विषयों पर चर्चा हो जाए। सोनिया ने संकेत भी दे दिए हैं। उन्होंने अपने भाषण में नरेंद्र मोदी सरकार, दलितों-आदिवासियों की समस्या, डर का माहौल जैसे तमाम राजनैतिक मुद्दों का जिक्र किया पर लीडरशिप पर गौण रहीं। यही भाजपा और कांग्रेस का फर्क है। सही समय पर नेतृत्व परिवर्तन।

चिंतन शिविर में 20 साल पहले सोनिया गांधी ने की थी ऐसी प्लानिंग, निकाल दी थी वाजपेयी के शाइनिंग इंडिया की हवा
याद कीजिए 1984 का चुनाव। भारतीय जनता पार्टी की बुरी गत हुई। 2004 में इंडिया शाइनिंग के बूते वाजपेयी की सरकार अटल मानी जा रही थी। नतीजा उलटा निकला। मनमोहन सिंह सरकार पर हमलावर बीजेपी 2009 में भी उम्मीद से थी लेकिन हार गई। हर बार बीजेपी ने क्या किया ये देखिए। 2004 की हार के बाद वेंकैया नायडू को अध्यक्ष पद से हटा दिया गया। इसके बाद तीसरी बार अध्यक्ष बने लालकृष्ण आडवाणी को इसलिए पद छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्होंने मोहम्मद अली जिन्ना को सेक्युलर कह दिया था। आडवाणी के बाद राजनाथ सिंह को कमान मिली। पर 2009 की हार के बाद भाजपा ने उन्हें भी रास्ता दिखा दिया। फिर गडकरी आए। लेकिन महाराष्ट्र में मंत्री रहते गबन के आरोप का पुराना मामला सामने आया तो 2013 में उन्हें भी अमित शाह के लिए जगह खाली करनी पड़ी।
नेतृत्व बदलो सफलता पाओ
यही नहीं लगातार दो हार के बाद 2014 की बारी आई तो पार्टी ने नरेंद्र मोदी को नेता चुनने में सारे विरोधों को दरकिनार कर दिया। चाहे ये विरोध आडवाणी कैंप से ही क्यों न हो। अब सोचिए। अगर बीजेपी भी कांग्रेस के रास्ते पर चलती तो 2014 में क्या सत्ता में आ पाती? नेतृत्व परिवर्तन से किस्मत परिवर्तन की कहानी सिर्फ भारत की नहीं है। दूसरे लोकतांत्रिक देशों की पार्टियों ने भी ये प्रयोग किए। ब्रिटेन में लेबर पार्टी और कंजर्वेटिव पार्टी के नेता हार के बाद हमेशा पद छोड़ते आए हैं। इस तरह के बदलाव से ही मार्गरेट थैचर और टोन ब्लेयर जैसे परिवर्तनकारी नेता इंग्लैंड को मिले। ये ब्लेयर का करिश्मा ही था कि 18 साल तक सत्ता से दूर रही लेबर पार्टी कुर्सी पर विराजमान हुई। अमेरिका में रिपब्लिकन और डेमोक्रैट्स ने नेताओं को बदलने और नए प्रयोग करने में कभी कोताही नहीं की। इसीलिए पार्टी कैडर के तौर पर नए होने के बावजूद बिल क्लिंटन और डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता राष्ट्रपति बन पाए। फ्रांस में इमैनुएल मैक्रों को देखिए। नया नेता और नई पार्टी। पर जलवा देखिए. अभी हाल में दोबारा फ्रांस की सत्ता पर काबिज हुए हैं।

उदयपुर: सोनिया गांधी की भावुक अपील, पर कांग्रेस नेता कर्ज क्यों लौटाएं

अब आप समझ चुके होंगे कि इनकी तुलना में कांग्रेस ने क्या किया। 2019 में राहुल गांधी के पद छोड़ने के बाद वापस सोनिया गांधी को जिम्मेदारी दे दी जिनके नेतृत्व में पार्टी पिछला चुनाव हारी थी। ग्रांड ओल्ड पार्टी में पुरानी जमात से प्यार नीचे लेवल तक है। ये पार्टी को दीमक की तरह खा रही है। जिस उदयपुर में चिंतन चल रहा है वहां के सीएम बन गए अशोक गहोलत जबकि पूरे पांच साल संघर्ष किया सचिन पायलट ने। मध्य प्रदेश में सत्ता पाने और फिर गंवाने के बाद भी कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष भी हैं और विधानसभा में विपक्ष के नेता भी। निष्कर्ष साफ है। कांग्रेस को कल्पनातीत बदलाव करने होंगे।

चिंतन शिविर में अब तक क्या-क्या हुआ?
तीन दिन चलने वाला चिंतन शिविर शुक्रवार को शुरू हुआ। इसमें कुछ बातों पर चर्चा हुई है। एक परिवार-एक टिकट का फॉर्मूला लागू होगा। पर अपवाद के साथ। अपवाद इसलिए कि गांधी परिवार को खुद अब तीन-चार टिकट चाहिए। दूसरी चर्चा ये हुई है कि नियुक्त पदाधिकारियों का कार्यकाल निश्चित हो। तर्क ये है कि इससे सभी नेताओं को मौका मिलेगा। हालांकि अध्यक्ष पर ये लॉजिक लागू नहीं होगा। अब अगर रिफॉर्म के लिहाज से देखें तो शुरुआत ही प्रतिगामी दिखती है।



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By admin