सिंधी समाज के बच्चों को सिंधी भाषा की शिक्षा कैसे मिले?
सिंधी साहित्य व इतिहास का लेखन पुरानी पीढ़ी द्वारा ज्यादातर अरबी लिपी में किया जाता रहा है,
हिंदुस्तान में पैदा हुयी नयी पीढ़ी में बहुत कम लोग ही अरबी लिपी में लिख या पढ़ सकते हैं, हिंदी
हमारी राष्ट्रभाषा है, जिसे लिखने के लिये भी देवनागिरी लिपी का उपयोग करना, सीखना ही पड़ता
है. अतः देवनागिरी लिपी में ही अपनी मातृभाषा सिंधी को लिखना व पढ़ना भी आसान होता है.
हमारी नई पीढ़ी के लिए अरबी लिपि सीखना अत्यंत कठिन कार्य है, सिंधी भाषा में लिखने व पढ़ने के
लिये देवनागिरी लिपी व सिंधी भाषा के शब्दकोष का ज्ञान भी आवश्यक है. सिंधी भाषा के कई
शब्दकोश बनाये गये हैं जिनके अध्यन की ज़रूरत रहती है, मोदी सरकार द्वारा पांचवी क्लास तक
(प्राईमरी) शिक्षा को मातृभाषा में सीखना अनिवार्य किया गया है. परन्तु पांचवी क्लास तक मातृभाषा
सीखने या सिखाने के लिये पांचवी क्लास तक के प्राईमरी कोर्स (पहिली क्लास से पांचवीं क्लास
तक) की किताबों की आवश्यकता रहती है, बच्चों को पढ़ानै के लिये अध्यापकों , अध्यापिकाओं की
ज़रूरत भी रहती है, बच्चों को पढ़ाने के लिये स्थान की ज़रूरत रहती है, तथा यह व्यवस्था करने के
लिये किसी न किसी संस्था की भी ज़रूरत रहती है. हो सकता है इस योजना के आधार पर कुछ
बजट भी पास किया गया होगा. इसके अतिरिक्त समस्या यह भी है कि यह योजना सिर्फ सरकारी
स्कूलों में ही लागू हो सकती है,परन्तु प्राईवेट स्कूलों में लागू होना मुश्किल है. क्योंकि एक ही स्थान
पर सभी मातृभाषाओं में बच्चो को पढ़ाने की व्यवस्था करना मुश्किल काम है, अब सवाल उठता है
कि सिंधी समाज के ज्यादातर बच्चे इंगलिश मीडियम के (प्राईवेट) स्कूलों में पढ़ते हैं . सिंधी स्कूलों
में नहीं पढ़ते हैं. ऐसे हालात में सिंधी समाज के बच्चों को मातृभाषा सिंधी की शिक्षा कैसे या कहां
प्राप्त हो सकती है? बच्चे जब तक सिंधी भाषा में लिखना पढ़ना नहीं सीखेंगे तब तक उनका सिंधी
भाषा में बोलने का व्यवहारिक अभ्यास भी पक्का नहीं हो पायेगा. क्योंकि टी.वी., सिनेमा, मोबाइल,
इंटरनेट व लोकल भाषाओं के प्रभाव में हमारा अभ्यास बिगड़ गया है. परन्तु फिर यही सवाल उठ
सकता है कि यह सब करेगा कौन? अतः आवश्यकता इस बात की है कि सिंधी समाज हर क्षेत्र में
संगठित होकर अपनी भाषा, सभ्यता और संस्कृति को बचाने के लिये मानसिक रूप से तैयार हो.
हमारे देश में त्रिभाषा फार्मूले को मान्यता प्राप्त है. अर्थात पहिली ज़रूरत अपनी मातृभाषा को
सीखने की रहती है. दूसरी ज़रूरत अपनी राष्ट्रभाषा को सीखने की रहती है, तथा तीसरी ज़रूरत
किसी अंर्तराष्ट्रीय (सम्पर्क) भाषा को सीखने रहती है. किसी भी बच्चे या व्यक्ति के लिये तीनों
भाषायें सीखने की ज़रूरत रहती है. विदेशों में जहां अपनी मातृभाषा सीखने या सिखाने की कोई
अलग से व्यवस्था नहीं रहती है. वहां समाज को स्वंय ही कोई व्यवस्था बनाने की ज़रूरत रहती है.
अतः हमें भी सामाजिक स्तर पर भी ऐसी कोई व्यवस्था बनाने की ज़रूरत रहती है. उदहारण के
लिये सिख समाज द्वारा अपने बच्चो को अपनी मातृभाषा, सभ्यता व संस्कृति की शिक्षा उपलब्ध
कराने के लिये हरक्षेत्र की “पंचाइती दरबार” में की जाती है. सिंधी समाज भी अपनी हर क्षेत्र की
पंचाइत के स्तर पर ऐसी व्यवस्था करने के लिये “सिंधियत विकास केंद्र” की स्थापना कर सकता
है। जिससे पंचाइतों को भी समाजसेवा का एक अच्छा माध्यम मिल सकता है।