हाइलाइट्स
- 31 अक्टूबर से 12 नवंबर तक चलेगा UN जलवायु शिखर सम्मेलन
- भारत की ओर से हिस्सा लेने ग्लासगो पहुंच चुके हैं पीएम नरेंद्र मोदी
- दुनिया के सामने कई डिमांड्स रखेगा भारत, टारगेट भी होंगे अपडेट
- ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को घटाकर आधार करने की सोच
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महत्वपूर्ण COP26 जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन में हिस्सा ले रहे हैं। ग्लासगो में भारत ‘जलवायु न्याय’ की पुरजोर वकालत कर सकता है। ग्लोबल वार्मिंग को काबू में रखने के लिए उठाए गए कदमों से दुनिया को वाकिफ कराना भी एजेंडे में शामिल है। ‘नेट जीरो’ को लेकर विकसित देशों के दबाव को भारत गोलपोस्ट शिफ्ट करने की कोशिश की तरह देख रहा है।
भारत चाहता है कि ऐतिहासिक रूप से जिन देशों ने ज्यादा प्रदूषक तत्वों का उत्सर्जन किया है, उन्हें धरती को बचाने के लिए उसी हिसाब से कोशिशें भी करनी चाहिए। यही वजह है कि COP26 में भारत की ओर से पीएम मोदी पूरी दुनिया के सामने कुछ बड़ी डिमांड्स रखने वाले हैं। भारत को बेहद नपे-तुल कदमों के साथ आगे बढ़ना होगा क्योंकि वह एक विकासशील अर्थव्यवस्था है और उर्जी की कमी से जूझ रहा है।
ग्लासगो पहुंच चुके हैं पीएम मोदी
COP26 पर्यावरण शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने पीएम मोदी रविवार को ग्लासगो पहुंचे।मोदी ने ट्वीट किया, ‘ग्लासगो पहुंच गया हूं। सीओपी26 में हिस्सा लूंगा, जहां मैं जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए और इस संबंध में भारत के प्रयासों को स्पष्ट करने के लिए विश्व के अन्य नेताओं के साथ काम करने को इच्छुक हूं।’ मोदी सोमवार सुबह स्कॉटलैंड में समुदाय के नेताओं और विद्वानों के साथ बैठक कर अपने यूरोपीय दौरे के ब्रिटेन चरण की शुरुआत करेंगे।
COP के टारगेट्स
- ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री तक सीमित रखना
- लॉन्ग-टर्म ‘नेट जीरो’ टारगेट तक पहुंचना। मतलब जितनी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन हो रहा है, उतनी ही मात्रा में गैसों को हटाना
- कम आय वाले देशों को 100 बिलियन डॉलर देना जिससे वे उत्सर्जन कम कर सकें, यह दावा 2009 में किया गया था
- ऊर्जा उत्पादन के लिए कोयले पर चरणबद्ध तरीके से निर्भरता कम करना
- ऊर्जा के नवीकरणीय स्त्रोतों में निवेश
सोलर ग्रीन ग्रिड की पहल करेंगे भारत-ब्रिटेन
COP26 के दौरान, भारत और ब्रिटेन एक नई ग्रीन ग्रिड की शुरुआत करेंगे। इसके जरिए दुनिया के विभिन्न हिस्सों को एक नेटवर्क से जोड़ने की कवायद होगी। अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) के महानिदेशक डॉ. अजय माथुर ने कहा, “पहल का उद्देश्य इच्छुक पक्षों के गठबंधन से शुरुआत करना है, जैसे कि कोई दो देश, जो सौर विद्युत के हस्तांतरण से पारस्परिक रूप से लाभान्वित होंगे।” इससे सुरक्षित, विश्वसनीय और सस्ती बिजली के उत्पादन को बढ़ाने के लिए नए बुनियादी ढांचे के निर्माण को तेज किया जा सकेगा। इनमें आधुनिक, लचीले ग्रिड, चार्जिंग प्वाइंट और बिजली इंटरकनेक्टर शामिल हैं।
ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने का टारगेट
छह साल पहले, पेरिस में दुनियाभर के देश जलवायु परिवर्तन को लेकर साझा लक्ष्यों पर सहमत हुए थे। तब ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने और 1.5 डिग्री सेल्सियस रखने की कोशिश पर रजामंदी बनी थी। COP26 के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा कि ‘1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को बरकरार रखने के लिए सीओपी26 हमारी अंतिम सर्वश्रेष्ठ उम्मीद है…यदि हम अभी कार्रवाई करते हैं और साथ मिल कर काम करते हैं तो हम अपने बेशकीमती वादे की रक्षा कर सकते हैं और पेरिस में जो कुछ वादा किया गया था, उसे ग्लासगो में पूरा करना सुनिश्चित कर सकते हैं।’
NSG की स्थायी सदस्यता मांगेंगे पीएम?
भारत ने रविवार को कहा है कि जलवायु परिवर्तन से जुड़े उसके लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिशें न्यूक्लियर्स सप्लायर्स ग्रुप में उसकी सदस्यता के मुद्दे से जुड़ी हो सकती हैं। चीन के विरोध के चलते भारत NSG का सदस्य नहीं बन सका है। भारत ने कहा कि उसने एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति की तरह व्यवहार किया है और उसे NSG की सदस्यता मिलनी चाहिए।
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विकसित देशों को वादा याद दिलाएंगे
पेरिस समझौते में, विकसित देशों ने शपथ ली थी कि वे हर साल जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए 100 बिलियन डॉलर देंगे, मगर ऐसा हुआ नहीं। भारत उन्हें अपना यही वादा याद दिलाएगा। हाल ही में अमेरिका ने इंटरनैशनल क्लाइमेट फायनेंस को 2024 तक बढ़ाकर 11.4 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष करने की घोषणा की है। ग्लासगो में भारत जैसे देश एक नए वित्तीय लक्ष्य की तलाश में होंगे जिसे 2025 के बाद भी लागू रखा जा सके। ग्लोबल इकनॉमी में भारत की जो भूमिका है, उससे यह तय है कि वह COP26 में केंद्रीरय भूमिका निभाएगा।
COP26 में क्या बड़े ऐलान करेंगे पीएम मोदी?
- भारत किस साल तक ‘नेट जीरो’ हासिल करेगा, इसे लेकर खूब चर्चा हुई है। सूत्रों के अनुसार, भारत 2060 या 2070 तक का लक्ष्य रख सकता है।
- प्रधानमंत्री मोदी COP26 में 2030 तक 450 गीगावाट की रीन्यूएबल एनर्जी इंस्टॉल करने का ऐलान कर सकते हैं। यह ग्रीन हाइड्रोजन को ईंधन की तरह इस्तेमाल करने का मिशन है।
- कृषि क्षेत्र से होने वाले उत्सर्जन को हैंडल करने के लिए लैंड डीग्रेडेशन न्यूट्रलिटी हासिल करना।
- बड़े पैमाने पर पौधोरोपण अभियान का आह्वान।
- क्लाइमेट जस्टिस की वकालत।
क्या कर रहे हैं विकसित देश?
जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए दुनियाभर की ताकतें एक मंच पर आई हैं। हालांकि कार्बन एमिशन में कटौती के लिए अभी लंबा समय तय करना है। पहले भी कोशिशें हुईं मगर विकसित देशों ने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई। पेरिस जलवायु समझौते को ही लीजिए। डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति रहते अमेरिका इस समझौते से पीछे हट गया था। हालांकि जो बाइडन इस चुनौती से निपटने के लिए अमेरिका की भूमिका व महत्व पर जोर देते दिखे हैं। विकसित देशों के पास तकनीक व संसाधनों की कमी नहीं है, ऐसे में उन्हें अपनी जि़म्मेदारी और व्यापक रूप से निभाने की जरूरत है।
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विकसित देशों के मुकाबले भारत का बेहद कम उत्सर्जन
पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव का कहना है कि भारत जलवायु संकट का हल खोजने के लिए प्रतिबद्ध है मगर उत्सर्जन की महती जिम्मेदारी विकसित देशों की है। दुनियाभर में प्रति व्यक्ति बिजली का जो उपभोग है, भारत में वह उसका केवल 33 प्रतिशत ही है। प्रति व्यक्ति भारत जितना कोयला खर्च करता है, जर्मनी उससे चार गुना। 1850 के बाद से दुनिया के कुल कार्बन उत्सर्जन में भारत ने केवल 4 प्रतिशत का योगदान दिया है।
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