
ये सवाल मेरे जैसे हर भारतीय के जहन में उठना चाहिए। शायद अब वक्त आ गया है कि हमें अपनी बहनों और गर्ल दोस्तों के साथ ही अपने घर की बुजुर्गों के साथ भी हर जगह जाना पड़ेगा। जिस तरह हमें अपनी बहन को ट्यूशन तक छोड़कर आना पड़ता है, वैसे ही घर की दादी-अम्मा और नानी को पार्क तक छोड़कर आना पड़ेगा। समाज में इंसानी चोला पहने जो भेड़िये अब तक लड़कियों पर अपनी काली नजर डालते थे उनकी नजर अब हमारे घरों की बुजुर्गों तक पहुंच चुकी है। भले ही सरकारें और पुलिस कितनी भी अलर्ट क्यों न हो जाए लेकिन इन भेड़ियों की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। समाज के इन काले भेड़ियों को न कानून का डर है न समाज का।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः,
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।’
संस्कृत का ये श्लोक तो आपने जरूर सुना होगा। ये श्लोक मनुस्मृति के अध्याय 3 से लिया गया है, जिसका अर्थ है- ‘जहां स्त्रियों की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं और जहां स्त्रियों की पूजा नही होती है, उनका सम्मान नहीं होता है, वहां किए गए समस्त अच्छे कर्म भी निष्फल हो जाते हैं।’ संस्कृत का ये श्लोक और इसका अर्थ महिलाओं को लेकर दिए गए हर भाषण में वक्ता जोर शोर से सुनाते हैं। भाषण में भरपूर तालियां भी बजती हैं, लेकिन बाद में इसका कोई नतीजा नहीं निकलता। आजादी के 75 साल बाद भी भारत में महिलाओं की स्थिति काफी चिंताजनक है। एक ओर जहां महिलाएं सेना और अंतरिक्ष के क्षेत्र में अमिट छाप छोड़ रही हैं, ओलंपिक में देश का गौरव बढ़ा रही हैं वहीं दूसरी ओर वे रेप जैसी घटनाओं का शिकार हो रही हैं।
समाज के साथ सवाल कानून के रखवालों से भी बनता है। जो देश चांद और मंगल पर जाने के सपने संजो रहा है, वहां महिलाएं इतनी असुरक्षित क्यों हैं? क्यों देश में आज भी कोई महिला अकेले सफर नहीं कर सकती? NCRB के डेटा के अनुसार भारत में हर घंटे 86 महिलाएं रेप का शिकार होती हैं। यानी जितनी देर में मैं ये लेख लिख रहा हूं उतनी देर में करीब 90 महिलाओं के साथ दुष्कर्म हो जाएगा। डेटा के मुताबिक साल 2021 में देशभर में कुल 31,677 केस दर्ज किए गए, वहीं 2020 में 28,046 केस दर्ज किए गए। साल दर साल ये आंकड़ें बढ़ते जा रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली से लेकर दूर दराज के छोटे कस्बे और गांव तक ये गंदी आग पहुंच चुकी है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन कानून से लोगों का भरोसा उठ जाएगा।
बलात्कार की घटनाएं केवल हिंसक अपराध तक सीमित नहीं रह गई हैं, ये अब मनोविकार वाली संस्कृति बन गई है। ऐसा देखा गया है कि रेप करने वाला ज्यादातर मनोरोगी होता है। ऐसे तमाम साइको हमारे आस-पास रहते हैं। दिखने में ये बिल्कुल आम लोगों की तरह होते हैं, लेकिन इनके दिमाग में हमेशा काली करतूतें पलती रहती हैं। ऐसे साइको अपने जैसे लोगों के साथ बहुत जल्दी घुल-मिल जाते हैं। यही वजह है कि गैंगरेप जैसी घटनाओं के समय किसी भी अपराधी के दिमाग में मानवता नहीं जगती। अब हमें खासतौर पर महिलाओं को ऐसे साइको लोगों से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।
खैर, ये कानून और मनोविज्ञान की बातें पहले भी कई बार होती रही हैं और शायद आगे भी ऐसे ही जारी रहेंगी। लेकिन आज मैं और मेरे जैसे लोगों ने बुजुर्गों से आशीर्वाद और दुआएं लेने का हक खो दिया है। अब कोई अनजान अम्मा हमारे हाथ चूम कर आशीर्वाद देने से पहले सौ बार सोचेगी। वाकई, ये कहां आ गए हम…