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कांग्रेस इन दिनों कई तरह के बदलावों से गुजर रही है। पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती थी- किसी गैर गांधी के हाथों कांग्रेस की कमान जाना। लेकिन गांधी परिवार की खुद ही इससे दूर रहने की जिद ने लंबे समय बाद मल्लिकार्जुन खरगे के तौर पर पार्टी को गैर गांधी अध्यक्ष दिया। दूसरी ओर राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का आधा हिस्सा पार कर चुकी है। यह यात्रा भी बदलती कांग्रेस की झलक देती है। कांग्रेस के एक सीनियर नेता के मुताबिक, पार्टी काफी अरसे से कनेक्टिविटी और कलेक्टिविटी की समस्या से जूझ रही थी। यात्रा के जरिए इन दोनों दिशाओं में काम हुआ।

​‘घर भर के बदल डालेंगे’

राहुल गांधी के जरिए कांग्रेस ने लोगों से कनेक्ट किया तो यात्रा ने पार्टी के नेताओं और वर्कर्स को फिर से एकजुट होकर काम करना सिखा दिया है। कांग्रेस में चूंकि अब पूर्णकालिक अध्यक्ष आ चुके हैं, इसलिए पार्टी पर आगामी लक्ष्यों और संगठन की मजबूती को लेकर काम करने का दबाव बढ़ गया है। सूत्रों के मुताबिक इस दिशा में काम शुरू हो चुका है। माना जा रहा है कि कांग्रेस में ये बदलाव महज ऊपरी तौर पर नहीं होंगे, बल्कि संगठन में बाकायदा वैसी सर्जरी की कवायद होगी, जिसकी बात पिछले कुछ सालों से लगातार कई सीनियर नेता कर रहे थे। संगठन में यह बदलाव ऊपर से नीचे तक कुछ ‘घर भर के बदल डालेंगे’ के अंदाज में होने की बात कही जा रही है।

​चिंतन-मनन और संगठन

कांग्रेस के भीतर एक तरफ उदयपुर चिंतन शिविर से निकले संकल्पों को जमीन पर उतारने की रणनीति पर काम चल रहा है, तो दूसरी ओर पार्टी अधिवेशन भी होना है। आमतौर पर नया अध्यक्ष बनने या उनका नया कार्यकाल शुरू होने के बाद कांग्रेस अधिवेशन होता है। लेकिन इस बार भारत जोड़ो यात्रा और गुजरात-हिमाचल प्रदेश के चुनावों में व्यस्तता के चलते अधिवेशन को फरवरी तक टाला गया है। चर्चा है कि जनवरी के आखिर या फरवरी के शुरू तक यात्रा संपन्न होगी, जिसके बाद अधिवेशन बुलाया जाएगा। इस अधिवेशन में कांग्रेस का आगामी रोडमैप को पेश किया जाएगा, जिस पर आम सहमति तैयार कर उस दिशा में आगे बढ़ने का काम होगा। इसमें 2024 के आम चुनावों और उससे पहले होने वाले तमाम विधानसभा चुनावों के साथ-साथ संगठन के पुनर्गठन और विपक्षी एकजुटता की भी रणनीति की झलक मिलेगी। कांग्रेस ने मोटे तौर पर तीन दिशाओं में काम करने की योजना बनाई है। ये हैं संगठन की मजबूती, संपर्क व संवाद (कम्युनिकेशन) और संसाधनों का संयोजन।

तीन मोर्चों पर फोकस

कांग्रेस को लगता है कि इन तीन मोर्चों पर अगर ढंग से काम कर लिया जाए तो काफी हद तक जंग लड़ी जा सकती है। इसमें कांग्रेस के संगठन को प्राथमिकता देने की बात है। उदयपुर चिंतन शिविर में संगठन को लेकर लिए गए तमाम संकल्पों पर काम शुरू किया जाएगा। मसलन, यह देखा जाएगा कि संगठन के सभी स्तरों पर 50 फीसदी लोग 50 साल से कम उम्र के हों, हर राज्य में एक राजनीतिक मामलों की कमिटी बने, एक व्यक्ति-एक पद का सिद्धांत अच्छी तरह लागू हो और समाज के सभी पिछड़े और वंचित तबकों की नेतृत्व में भागीदारी हो। सूत्रों के मुताबिक, इन तमाम चीजों को लेकर काम शुरू हो चुका है। कमान संभालने के बाद खरगे ने कांग्रेस की तमाम प्रदेश समितियों, फ्रंटल इकाइयों और विभागों से उनके कामकाज का ब्यौरा मंगाना शुरू कर दिया है। इनमें उनके पिछले कामकाज के अलावा आने वाले दिनों की कार्ययोजना का विवरण भी शामिल हैं। हर प्रदेश इकाई से कहा गया है कि वह रोजमर्रा के स्तर पर अपने यहां होने वाले आयोजनों और गतिविधियों की तफसील तैयार करे।

चुनाव की नई रणनीति

उदयपुर में व्यक्तियों से लेकर समितियों तक के कामकाज की समीक्षा और आकलन की जो योजना बनी थी, उसके मद्देनजर यह कवायद अहम मानी जा रही है। यही नहीं, कांग्रेस में लगभग आधे दर्जन नए विभाग भी शुरू किए जाने की दिशा में काम चल रहा है। इनमें चुनाव प्रबंधन विभाग, संगठन की ट्रेनिंग का विभाग, पब्लिक इनसाइट विभाग, पदाधिकारियों के कामकाज की समीक्षा से जुड़े विभाग आदि शामिल हैं। लगातार हार का सामना कर रही पार्टी ने महसूस किया है कि चुनाव को लेकर नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। इसी के मद्देनजर अब चुनाव प्रबंधन विभाग बन रहा है, जो पूरे समय देश-प्रदेश सहित अलग-अलग स्तरों पर होने वाले चुनावों को लेकर पार्टी की रणनीति पर काम करेगा। पार्टी अपने वर्कर्स और युवा लीडरशिप को कांग्रेस की विचारधारा से अवगत कराने के लिए ट्रेनिंग कार्यक्रम चलाने जा रही है, जिसमें वह अपनी विचारधारा को मजबूती से सामने रखेगी, ताकि कांग्रेस जिस विचारधारा को लेकर चली है, उसे फिर से जमीन पर पहुंचाया जा सके। दूसरी ओर, इस पूरे बदलाव में कांग्रेस ने पेशेवर अंदाज को खासा महत्व देने की योजना बनाई है। आने वाले दिनों में पार्टी में प्रफेशनल्स की खासी तादाद दिखाई देगी। पार्टी की विभिन्न मुद्दों को प्रभावशाली और संजीदा तरीके से उठाने के लिए विषय से जुड़े विशेषज्ञों की मदद लेने की भी योजना है।

मुश्किलें नहीं हैं कम

कांग्रेस अपने भीतर बदलाव के लिए युद्ध स्तर पर रोडमैप तैयार करने में जुटी है, लेकिन उसकी एक लड़ाई इन बदलावों को जमीन पर उतारने को लेकर अपने लोगों से भी है। पिछले एक दशक से हार और गुटबाजी से जूझ रही कांग्रेस के लोगों के लिए इन बदलावों के हिसाब से खुद को ढालना आसान नहीं है। कांग्रेस के भीतर सालों से आई जड़ता कुछ हद तक नैशनल हेराल्ड मामले में ईडी की पेशी के दौरान प्रदर्शन और भारत यात्रा के जरिए टूटी है, लेकिन अभी इस दिशा में और काम होना है। उसे मुद्दों को लेकर सड़क पर उतरना होगा। अगर पार्टी इस दिशा में आगे बढ़ने के साथ-साथ आपसी गुटबाजी, खींचतान और अनुशासनहीनता पर लगाम लगाने में कामयाब होती है तो उसे आने वाले कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान सहित कई राज्यों के चुनावों में राहत मिल सकती है। खासकर राजस्थान के भीतर सियासी मसला सुलझाना भी बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के भीतर एक बड़ा खतरा बढ़ते पावर सेंटर्स को लेकर भी है। अगर पार्टी में एक से ज्यादा पावर सेंटर बने रहते हैं तो कड़े और निर्णायक फैसलों का सामने आना मुश्किल होगा।



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By admin