यात्रा छह राज्यों से गुजरते हुए सातवें राज्य मध्य प्रदेश में चल रही है। अभी तक यह जहां-जहां से गुजरी है, इसे लोगों का जबरदस्त रिस्पॉन्स मिला है। जिस तरह से लोग खुद सामने आकर राहुल गांधी से मिल रहे हैं, उनके प्रति प्यार और भरोसा दिखा रहे हैं, उनसे अपने दिल की बात कह रहे हैं, वह अभूतपूर्व है। समाज के हर वर्ग से लोग आ रहे हैं, हमारे समर्थक आ रहे हैं, आलोचक आ रहे हैं और वे लोग भी आ रहे हैं जो त्रिशंकु हैं। वे यात्रा के बारे में देखने-समझने और राहुल गांधी से मिलने आ रहे हैं। वह जानना चाहते हैं कि राहुल गांधी क्या सोचते हैं, और क्या करना चाहते हैं? इससे हमारे संगठन में एक नई जान आई है। हमारे कार्यकर्ताओं का मनोबल और ऊर्जा, दोनों बढ़े हैं। हालांकि शुरू में हमें यात्रा को लेकर थोड़ी आशंका भी थी।
किस तरह की आशंका?
हमारी आशंका थी कि जहां हमारी सरकार नहीं है, वहां हमें न जाने कैसा रिस्पॉन्स मिले? क्या वहां हमारा संगठन होगा और अगर होगा तो क्या वह इस स्थिति में होगा कि लोगों को मोबिलाइज कर यात्रा तक ला सके? मसलन आंध्र प्रदेश में जहां हम बुरी तरह हारे थे और हमें दो फीसदी से भी कम वोट मिले थे। लेकिन यात्रा जब वहां के दो जिलों से होकर गुजरी तो हमारी आशंका निर्मूल साबित हुई। वहां बड़े पैमाने पर लोग आकर जुड़े, जिनमें बड़ी संख्या में महिलाएं, दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक शामिल थे। महाराष्ट्र में भी यात्रा को जबर्दस्त समर्थन मिला। पिछले चुनाव में कांग्रेस राज्य में चौथे स्थान पर थी, लेकिन नांदेड़ और शेगांव की रैली में उमड़ी जबरदस्त भीड़ दिखाती है कि कांग्रेस से लोगों की उम्मीद बढ़ी है। लोगों को लग रहा है कि यात्रा परिवर्तनकारी है। यह परिवर्तन सिर्फ कांग्रेस के लिहाज से ही अहम नहीं है, बल्कि यह देश की राजनीति के लिहाज से भी अहम है।
यात्रा को जैसा रिस्पॉन्स मिल रहा है, उसे देखते हुए कांग्रेस के भीतर ऐसा ख्याल नहीं आता कि यह यात्रा पहले ही शुरू हो जानी चाहिए थी?
निजी तौर पर मेरा मानना है कि पार्टी को यह काम दस साल पहले कर देना चाहिए था। हालांकि यात्रा की बात काफी समय से चल रही थी, लेकिन किन्हीं कारणवश हम पहले नहीं कर पाए। खैर, देर आए, दुरुस्त आए। भारत जोड़ो यात्रा के अलावा देश के अलग-अलग राज्यों में भी यात्राएं निकली हैं और आगे भी निकाली जाएंगी।
कांग्रेस के विरोधियों और आलोचकों का कहना है कि पार्टी को भारत जोड़ने से पहले कांग्रेस जोड़ने की बात करनी चाहिए। जिस तरह से लोग एक-एक कर कांग्रेस छोड़कर जा रहे हैं, पार्टी उन्हें छोड़ देश जोड़ने में लगी है। क्या कहेंगे आप?
मैं मानता हूं कि कुछ लोग यात्रा शुरू होने के बाद कांग्रेस छोड़कर गए हैं। कुछ लोग डिपार्चर लाउंज में हैं। महाराष्ट्र में जिनके डिपार्चर लाउंज में होने की बात कही जा रही थी, वे सब यात्रा में शामिल हुए। मेरा मानना है कि जिनको जाना है और जिन्होंने जाने का मन बना लिया है, वे जाएंगे। उन्हें लेकर ज्यादा चिंतित होने की जरूरत नहीं है। जो लोग गए हैं या जा रहे हैं, उनका कांग्रेस की विचारधारा के प्रति कमिटमेंट बहुत कमजोर है। वे चाहते है कि उन्हें कोई पोस्ट, चुनाव का टिकट या फिर यह संगठन में बड़ी जिम्मेदारी मिले। ऐसे लोग जाते हैं तो जाएं। लेकिन पार्टी के भीतर जो लोग बने हुए हैं, उन्हें मोटिवेट करने की जरूरत है। यहां मैं कहना चाहूंगा कि जो लोग भी छोड़कर गए हैं, पार्टी के भीतर उनके कई विकल्प मौजूद हैं।
कांग्रेस सामाजिक सौहार्द, बेरोजगारी, महंगाई और आर्थिक हालात जैसे तमाम मुद्दे उठा रही है। लेकिन चुनाव में लोगों के बीच ये मुद्दे आकार क्यों नहीं ले रहे हैं? कांग्रेस आखिर कहां चूक रही है?
मेरा मानना है कि पिछले कई सालों से देश में चुनाव अचीवमेंट (उपलब्धियों) के बजाय सेंटीमेंट (भावनाओं) के आधार पर लड़े जा रहे हैं। लोग सेंटीमेंट के आधार पर वोट करते हैं। जहां तक कांग्रेस की बात है तो हमारे बूथ मैनेजमेंट, वोटर मोबिलाइजेशन और वोटर्स मैनेजमेंट में थोड़ी कमी आ रही है। फिर आज ईवीएम मैनेजमेंट भी एक नया एरिया बन गया है। दूसरी ओर बीजेपी ने जिस तरह से चुनावों में संसाधनों का इस्तेमाल किया है, चाहे इलेक्टोरल बॉन्ड लेने की बात हो या बड़ी-बड़ी कंपनियों से डोनेशन लेने की, उससे भी फर्क पड़ता है। चुनावों में जहां हम एक रुपया खर्च कर रहे हैं वहीं बीजेपी सात से आठ रुपए खर्च कर रही है। बीजेपी के पास पैसे की कमी नहीं है।
यात्रा शुरू होने से पहले पार्टी और राहुल गांधी ने कहा था कि इससे संगठन की मजबूती के साथ-साथ विपक्षी एकजुटता में मदद मिलेगी। लेकिन यात्रा के दौरान जिस तरह से सहयोगी घटक दलों के साथ वैचारिक मतभेद उभरे हैं, मसलन सावरकर पर शिवसेना के साथ और राजीव गांधी हत्या मामले में डीएमके के साथ, ऐसे में कांग्रेस विपक्षी एकजुटता कैसे बनाए रख पाएगी?
यह यात्रा सामाजिक सौहार्द के साथ-साथ कांग्रेस की मजबूती के लिए हो रही है। विपक्षी एकजुटता मकसद नहीं है। प्राथमिकता कांग्रेस संगठन की मजबूती है। कमजोर कांग्रेस एक मजबूत विपक्ष नहीं दे सकती। यात्रा में सहयोगी दल हमारे साथ आए हैं। जहां तक वैचारिक मतभेद की बात है तो हम आपस में बात कर सकते हैं। हम बात कर भी रहे हैं। मुझे नहीं लगता कि ऐसे मतभेदों से महाराष्ट्र में एमवीए या तमिलनाडु में डीएमके साथ हमारा गठबंधन टूटेगा।