मुनव्वर राना ने पसमांदा का अर्थ समझाते हुए कहा कि कई लोगों को इस शब्दावली का अर्थ भी पता नहीं होगा। समाज में जो पिछड़ जाते हैं, उन्हें पसमांदा कहा जाता है। उन्होंने कहा कि इस्लाम में तो पसमांदा का कोई कॉन्सेप्ट ही नहीं था। इस धर्म में जात-पात की कोई बात ही नहीं है। अरब में कोई यह नहीं जानता कि कौन किस जात का है। वहां हर किसी की पहचान अरबी से है। इसी आधार पर शादियां होती हैं, ब्याह होते हैं। तमाम मामले इसी आधार पर हल होते हैं। मुनव्वर आगे कहते हैं कि हिंदुस्तान आते-आते हम अलग-अलग रंगों में रंग गए। मुनव्वर राना ने कहा कि मैं एक बात बड़ी ईमानदारी से कहता हूं कि मेरा बाप मुसलमान था और इसकी मैं गारंटी लेता हूं। मेरी मां भी मुसलमान थी, इसकी मैं गारंटी नहीं लेता हूं।
राना ने बताई अपनी थ्योरी
हिंदुस्तान में मुसलमानों के इतिहास को लेकर मुनव्वर राना ने अपनी थ्योरी बताई है। उन्होंने कहा कि हमारा फर्स्ट फादर मुसलमान था, जो भारत आया था। वह चाहे निशापुर से आया हो या समरकंद से आया हो, चाहे बुखारा से आया हो या अफ्रीका से आया हो, चाहे अरब से आया हो, वह फौज के साथ आया था। उन्होंने कहा कि फौजें कभी बीवियां लेकर नहीं चलती हैं। तो मेरा बाप जो था, वह मुसलमान था। लेकिन, मेरी मां जो थी, वह मुसलमान थी, इसकी गारंटी नहीं लेता। मेरा बाप यहां आया, फर्स्ट फादर। उसने अपने सुलूक से, अपने अखलाक से, अपने व्यवहार से, अपने तौर-तरीके से, अपनी अच्छी विचारधारा से हिंदुस्तान में घुल-मिल गया।
मुनव्वर राना ने कहा कि देश में कहीं निजामुद्दीन औलिया की हैसियत से, कहीं ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की हैसियत से, कहीं हजरत वाजिद अली शाह की हैसियत से, कहीं हजरत इशाह मीना की हैसियत से, पूरे हिंदुस्तान में फैलते चले गए। उन्होंने कहा कि जब यहां के लोगों ने देखा कि यहां के ठुकराए हुए लोग, जो सनातनियों के ठुकराए हुए लोग थे, वे संपर्क में आने लगे। उन्होंने देखा कि ये कैसे लोग हैं? इनके यहां तो कुछ है ही नहीं। जाइए, बैठिए, इनके साथ खाइए, पीजिए। उन लोगों ने इस्लाम को कुबूल करना शुरू कर दिया। मुनव्वर राना अपने बयान के जरिए इस्लाम में पसमांदा की राजनीति को खारिज करते हुए किसी प्रकार के भेदभाव से इनकार किया है।