Sindhu Dhara

समाज की पहचान # सिंध की उत्पति एवं इतिहास<> सिंधी भाषा का ज्ञान <> प्रेणादायक,ज्ञानवर्धक,मनोरंजक कहानिया/ प्रसंग (on youtube channel)<>  सिंधी समाज के लिए,वैवाहिक सेवाएँ <> सिंधी समाज के समाचार और हलचल <>
manish tiwari book 10 flash point: 20 years


मनीष तिवारी, पूर्व केंद्रीय मंत्री
मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुआ आतंकी हमला बहुत ही बर्बर था। चार दिनों तक हुए इस नरसंहार में सैकड़ों लोग मारे गए थे। चंद आतंकियों ने पूरे देश को 60 घंटे तक बंधक बनाए रखा था। घटना के बाद मीडिया सरकार पर बुरी तरह हमलावर था। जिम्मेदारी तय करने की बात की जा रही थी। सुरक्षाकर्मियों को बेशक नायक की तरह पेश किया गया, जिन्होंने जान पर खेलकर कई लोगों की जान बचाई, लेकिन सरकार लोगों के निशाने पर थी। तभी 29 नवंबर को हमें जानकारी मिली कि अगले दिन गृह मंत्री शिवराज पाटिल पार्टी प्रवक्ताओं को घटना की जानकारी देंगे। सरकार का पक्ष किस तरह रखना है, यह बताएंगे।

हम सभी वहां पहुंचे और प्रवक्ता साथियों ने उनसे हर जरूरी सवाल पूछे। गृह मंत्री ने भी घटना के हर पहलू के बारे में पूरे विस्तार से बताया। हमारी ओर से उनसे कुछ असहज सवाल भी पूछे गए। मैंने अंत में गृह मंत्री से पूछा कि इतनी बड़ी घटना के बाद भी क्राइसिस मैनेजमेंट कमिटी की मीटिंग क्यों नहीं हुई है? शिवराज पाटिल ने इस बारे में भी विस्तार से हमें जानकारी दी। उनका कहना था कि चूंकि इस घटना के बाद सारे फैसले शीर्ष स्तर से लिए जा रहे हैं तो समानांतर रूप से इस कमिटी की मीटिंग की जरूरत नहीं थी।

उधर 30 नवंबर को जब आतंकी हमले के बाद तमाम एहतियाती कदम उठाए ही जा रहे थे, महाराष्ट्र के सीएम विलासराव देशमुख फिल्म निर्देशक रामगोपाल वर्मा के साथ घटनास्थल का जायजा लेने चले गए। भले देशमुख की नीयत ठीक रही हो, लेकिन इतनी बड़ी आतंकी वारदात के तुरंत बाद वहां फिल्म निर्देशक के साथ जाना लोगों को नागवार गुजरा। चूंकि रामगोपाल वर्मा एक्शन फिल्में बनाते थे और सीएम के पुत्र रितेश देशमुख भी अभिनेता थे, तो लोगों को लगा कि वह फिल्म बनाने की संभावनाएं टटोलने वहां गए थे।

शिवराज पाटिल का इस्तीफा
यह एक ऐसी घटना थी जिसे बतौर पार्टी प्रवक्ता मैं भी डिफेंड नहीं कर सका और टीवी डिबेट में मैंने इसे गलत बताया। इस घटना के तुरंत बाद सीएम को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। लेकिन मीडिया को यह कार्रवाई नाकाफी लगी। होम मिनिस्टर शिवराज पाटिल के इस्तीफे की मांग उठती रही। मुझे याद है उस दिन दिल्ली में अहमद पटेल के पास बैठकर मैं दिल्ली विधानसभा चुनाव के संभावित नतीजों पर बात कर रहा था। बातचीत के दौरान ही अहमद पटेल बार-बार पी चिदंबरम को फोन करके बुला रहे थे। चिदंबरम तमिलनाडु में अपने संसदीय क्षेत्र शिवगंगा के दौरे पर थे। आखिरकार वह सीडब्ल्यूसी की मीटिंग में शामिल होने आए। उसी मीटिंग में शिवराज पाटिल ने त्यागपत्र देने की पेशकश की, जिसे स्वीकार कर लिया गया और पी चिदंबरम देश के नए गृह मंत्री बने।

4 अप्रैल 2012 को एक अखबार में खबर छपी, जिसका शीर्षक था- जनवरी की रात में रायसीना हिल डरी, जब सेना की दो यूनिटें दिल्ली की ओर बिना सरकार को सूचित किए बढ़ चलीं। यह शीर्षक और पूरी खबर अपने आप में चिंता में डालने वाली थी। यह ऐसी खबर थी, जिसे कोई भी पूरी गंभीरता और संवदेशनशीलता के साथ बताएगा। लेकिन तब शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व और सेना के बीच रिश्ते में ऐसी दरार थी, कि ऐसी खबरों का दीवारों के बीच रहना संभव नहीं था। जिस खबर की गंभीरता को देखते हुए 11 हफ्ते तक रोकने की पुरजोर कोशिश की गई थी, वह अंतत: सनसनीखेज तरीके से बाहर आ गई। हालांकि सेना सहित सभी पक्षों ने इस खबर को तथ्यहीन बताया, लेकिन हाल के दिनों में यह सबसे डरावनी वाली खबर थी जिसका असर देखा जा रहा था। दरअसल उसी साल 16 जनवरी की देर रात, जिस दिन तत्कालीन आर्मी चीफ वीके सिंह ने अपनी जन्म तिथि के मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था, केंद्रीय खुफिया एजेंसी ने अहम सेना यूनिट की अप्रत्याशित मूवमेंट की खबर दी थी। इसकी सूचना सरकार को नहीं थी। हालांकि मूवमेंट के प्रति शक या दुर्भावना तब तक नहीं थी, फिर भी सरकार ने रूटीन प्रक्रिया के तहत सभी एजेंसियों को अलर्ट कर दिया।

यह सूचना पक्की थी कि सेना की इकाई दिल्ली की तरफ बढ़ रही है। इससे ठीक एक दिन पहले सेना दिवस का कार्यक्रम दिल्ली में समाप्त हुआ था। सेना के मूवमेंट को लेकर चिंता से अधिक कौतूहल था, उलझन थी। हाल के सालों में सेना और राजनीतिक नेतृत्व के बीच बेहद समन्वय और विश्वास वाले संबंध रहे हैं। लेकिन इस खबर के आने के साथ कि सेना की एक और यूनिट दिल्ली की ओर बढ़ने लगी है, चिंता बढ़ने लगी। रक्षा मंत्री को तुरंत सूचित किया गया। केंद्र सरकार के अंदर देर रात हलचल बढ़ी। केंद्र ने आतंकी खतरे का अलर्ट जारी करते हुए दिल्ली आने वाली हर गाड़ी की गहन जांच के आदेश दिए। अगले दिन प्रधानमंत्री को पूरी घटना के बारे में जानकारी दी गई। रक्षा सचिव शशिकांत शर्मा को मलेशिया दौरे के बीच से तुरंत बुलाया गया। उन्होंने देर रात दिल्ली लौटने के बाद लेफ्टिनेंट जनरल एके चौधरी जो उस समय डीजी, मिलिट्री ऑपरेशन थे, से आर्मी मूवमेंट के बारे में पूछा तो उन्होंने इसे एक सामान्य प्रक्रिया कहा। उनसे इस बारे में विस्तार से रिपोर्ट देने को कहा गया। उस रिपोर्ट में भी यही कहा गया कि कोहरे के बीच सेना की मूवमेंट एक जगह से दूसरी जगह कितनी तेजी और सक्रियता से होती है, उसे परखने के लिए यह पूरी कवायद थी। हालांकि उनके तर्कों में सचाई थी, लेकिन तब भी कई सवालों के जवाब नहीं मिले थे। सामान्य प्रोटोकॉल के तहत इस मूवमेंट की जानकारी पहले क्यों नहीं दी गई? कई दूसरे असहज पहलू भी सामने आए जिनका बाद में जांच और पूछताछ में पता चला।

(तिवारी की पुस्तक ‘10 फ्लैश पॉइंट्स: 20 ईयर्स’, प्रकाशक : रूपा पब्लिकेशन से साभार)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





Source link

By admin