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Latest Hindi News: ‘जहां अपराध हुआ है उस राज्य की नीति के अनुसार हो दोषियों की समयपूर्व रिहाई’ सुप्रीम कोर्ट का आदेश – premature release of the convict shall be considered in accordance with the policy of the state where the offense has been committed.


नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने कहा है कि दोषी करार दिए गए व्यक्ति की सजा में छूट या समय से पहले रिहाई पर उस राज्य में लागू नीति के अनुसार विचार किया जाना चाहिए जहां अपराध किया गया था। साथ ही कोर्ट ने कहा है कि ऐसे मामलों की सुनवाई वहां नहीं होनी चाहिए, जहां मुकदमे को ट्रांसफर किया गया था और सुनवाई संपन्न हुई थी। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) 1973 की धारा 432 (7) के तहत छूट के मुद्दे पर दो राज्य सरकारों का समवर्ती क्षेत्राधिकार नहीं हो सकता है।

शीर्ष अदालत दोषी करार एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें गुजरात को नौ जुलाई 1992 की नीति के तहत समय से पहले रिहाई के लिए उसके आवेदन पर विचार करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया, जो उसकी सजा के समय मौजूद थी। अपराध गुजरात में किया गया था, लेकिन 2004 में शीर्ष अदालत ने मामले के असामान्य तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए सुनवाई को मुंबई स्थानांतरित कर दिया था।

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शीर्ष अदालत ने मौजूदा मामले में कहा कि गुजरात में हुए अपराध की (दूसरे राज्य में) सुनवाई समाप्त होने और दोषसिद्धि का फैसला आने के उपरांत, अब आगे की उन सभी कार्यवाहियों पर, चाहे सजा में छूट या समय से पूर्व रिहाई का मसला क्यों न हो, गुजरात की नीति के अनुरूप ही विचार होना चाहिए, न कि उस राज्य में जहां न्यायालय के आदेशों के तहत असाधारण कारणों से मुकदमे को स्थानांतरित किया गया था और तदनुसार सुनवाई संपन्न हुई थी।

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पीठ ने कहा, ‘प्रतिवादियों को नौ जुलाई 1992 की उस नीति के अनुसार समय से पूर्व रिहाई के लिए याचिकाकर्ता के आवेदन पर विचार करने का निर्देश दिया जाता है, जो दोषसिद्धि की तारीख पर लागू होती है और दो महीने की अवधि के भीतर इस पर फैसला किया जा सकता है। यदि कोई प्रतिकूल आदेश पारित किया जाता है तो याचिकाकर्ता को कानून के तहत उसके लिए उपलब्ध समाधान तलाशने की स्वतंत्रता है।’



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By admin