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kumar vishvas on pappu ki ari: kumar vishwas recites main kashi hoo meenakshi lekhi smiles on mentioning of pappu ki ari : ‘दुनिया जिनके पप्पू से है, पप्पू की अड़ी पर आ जाए…’ कुमार विश्वास की कविता से जब मीनाक्षी लेखी के चेहरे पर तैरी मुस्कान


हाइलाइट्स

  • वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में मंगलवार शाम को कुमार विश्वास ने जमाया रंग
  • कुमार विश्वास ने ‘मैं काशी हूं’ कविता के जरिए वाराणसी की आध्यात्मिकता के साथ-साथ मिजाज को बयां किया
  • विश्वास ने जब अपने अंदाज में ‘पप्पू की अड़ी’ का जिक्र किया, तब केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी के चेहरे पर मुस्कान तैर गई

वाराणसी
बनारस का रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर। ‘काशी उत्सव’ की पहली सांझ और मंच पर मशहूर कवि कुमार विश्वास। अपने चिर-परिचित अंदाज में कुमार विश्वास अपनी कविता ‘मैं काशी हूं’ के जरिए काशी की महिमा और मिजाज का बखान कर रहे हैं। बनारस के अल्हड़पन और खिलंदड़पन को बयां कर रहे हैं। पूरा हॉल झूम रहा है। लेकिन जब कुमार विश्वास अपने खास अंदाज में ‘पप्पू की अड़ी’ का जिक्र करते हैं तो दर्शकों के बीच पहली कतार में बैठे एक खास चेहरे पर तैर रही मुस्कान देखने लायक है। यह चेहरा कोई और नहीं बीजेपी की तेजतर्रार युवा सांसद और केंद्रीय मंत्री मीनाक्षी लेखी का है।

बिस्मिल्लाह खान की शहनाई से लेकर बनारस घराने की सुरमयी सुंदरता से होते हुए कुमार विश्वास काशी को बयां करते ‘पप्पू की अड़ी’ तक जाते हैं। ‘जिसको हो ज्ञान गुमान यहां लंका पर लंका लगवाए…’ काशी की अद्भुत ज्ञान गंगा की बखान पर हॉल में मौजूद हर शख्स का सीना गर्व से चौड़ा हो रहा है। अगली लाइन- ‘दुनिया जिनके पप्पू से है पप्पू की अड़ी पर आ जाए, दुनिया जिनके ठेंगे पर है पप्पू की अड़ी पर आ जाए…।’ कैमरा मीनाक्षी लेखी की तरफ घूमता है। उनके चेहरे की रौनक देखने लायक है। उनके लिए शायद इन पंक्तियों का कुछ सियासी निहितार्थ हो, लेकिन यहां बात हो रही है चाय की उस दुकान की, जो राजनीतिक गपशप से लेकर दर्शन जैसी गूढ़ चर्चाओं का केंद्र है।

दरअसल, लंका पर लंका लगवाए से मतलब है कि जिसे अपने ज्ञान का गुरूर हो, वह बीएचयू आ जाए, सारा गुमान हवा हो जाएगा क्योंकि वहां एक से बढ़कर एक विद्वान हैं। इसी तरह ‘पप्पू की अड़ी’ बनारस की एक ऐसी मशहूर चाय की दुकान है जहां एक से बढ़कर एक चर्चाएं होती हैं। यहां देश, दुनिया, धर्म, राजनीति, अध्यात्म से लेकर हर तरह की सार्थक चर्चा के साथ-साथ हल्की-फुल्की बतकही देखने-सुनने को मिल सकती है।

‘मैं काशी हूं…’
कुमार विश्वास ने अपनी कविता ‘मैं काशी हूं’ से जबरदस्त समां बांध दिया।

मेरे तट पर जागे कबीर, मैं घाट भदैनी तुलसी की
युग-युग के हर जग बेटे की, माता हूं मैं हुलसी सी
वल्लभाचार्य, तैलंग, रविदास हूं रामानंद हूं मैं
मंगल है मेरा मरण-जनम, सौ जन्मों का आनंद हूं मैं
कंकड़-कंकड़ मेरा शंकर, मैं लहर-लहर अविनाशी हूं
मैं काशी हूं, मैं काशी हूं, मैं काशी हूं, मैं काशी हूं

शहनाई में बिस्मिल्लाह था, नाटक में आगा खान हूं मैं
मुझमें रमकर जानोगे तुम कि पूरा हिंदुस्तान हूं मैं
जो मेरे घराने में संवरे उन सात सुरों की प्यासी हूं
मैं काशी हूं मैं काशी हूं मैं काशी हूं मैं काशी हूं

भारत के रत्न कहाते हैं मेरी मिट्टी के कुछ जाये
हर चौराहे पर पद्मश्री और पद्म विभूषण मिल जाए
जिसको हो ज्ञान गुमान यहां लंका पर लंका लगवाए
दुनिया जिनके पप्पू से है पप्पू की अड़ी पर आ जाए
दुनिया जिनके ठेंगे पर है पप्पू की अड़ी पर आ जाए
दर्शन-दर्शन सी गूढ़ गली मैं राड़-सांड़ संन्यासी हूं
मैं काशी हूं मैं काशी हूं, मैं काशी हूं, मैं काशी हूं

kumar-vishvas



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