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नई दिल्‍ली
केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में रविवार को किसानों के ‘शक्ति प्रदर्शन’ की गूंज पूरे देश में सुनाई दी। अलग-अलग राज्यों से बड़ी संख्‍या में किसान मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज मैदान में ‘किसान महापंचायत’ के लिए जुटे। मुजफ्फरनगर रैली ने तीन दशक पहले महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में बोट क्लब रैली की याद दिला दी। महेंद्र सिंह टिकैत किसान आंदोलन का चेहरा राकेश टिकैत के पिता हैं। करीब 33 साल पहले महेंद्र सिंह टिकैत की अगुवाई में 5 लाख किसानों ने दिल्‍ली के बोट क्‍लब में अपनी मांगों को लेकर तत्‍कालीन राजीव गांधी सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया था।

तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन को नौ महीने से अधिक समय हो गया है। किसान उन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। उन्हें डर है कि नए कानून न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को खत्म कर देंगे। सरकार के साथ किसानों की 10 दौर से अधिक की बातचीत हुई। लेकिन, दोनों पक्षों के बीच गतिरोध खत्‍म नहीं हुआ। इन कानूनों के विरोध में रविवार को किसान महापंचायत का आह्वान किया गया था। इसमें किसानों का हुजूम उमड़ा। भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा, ‘हमें देश को बिकने से रोकना है। किसान को बचाना चाहिए, देश को बचाना चाहिए, कारोबारियों, कर्मचारियों और युवाओं को बचाना चाहिए, यही रैली का उद्देश्य है।’

कृषि आंदोलनों का जिक्र होने पर राकेश टिकैत के पिता महेंद्र सिंह टिकैत का जिक्र आ ही जाता है। उनका अंदाज बिल्‍कुल गंवई था। वह हुक्‍का गुड़गुड़ाते किसानों के बीच बैठ जाते थे। एक समय उनकी अगुवाई में सत्‍तारूढ़ दल को अपनी रैली की जगह तक बदलनी पड़ी थी।

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बाबा टिकैत के नाम से थे मशहूर
किसानों के बीच महेंद्र सिंह टिकैत ‘बाबा टिकैत’ के नाम से मशहूर थे। उनकी एक आवाज पर लाखों किसान जुट जाते थे। उन्‍हें किसानों का मसीहा कहा जाता था। बात 25 अक्टूबर 1988 की है। तब महेंद्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में दिल्ली के बोट क्लब में किसानों की रैली की तैयारी की गई थी। इसमें किसानों की 35 मांगें थीं। इनमें बिजली, सिंचाई की दरें घटाने और फसल के उचित मूल्य सहित कई मांगें रखी गई थीं। पश्चिमी यूपी से बड़ी संख्या में किसान दिल्ली पहुंच रहे थे। प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए पुलिस बल का इस्तेमाल किया। लोनी बॉर्डर पर किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने फायरिंग भी कर दी। इसमें दो किसान राजेंद्र सिंह और भूप सिंह की मौत हो गई। मामले में पुलिस की किरकिरी भी हुई। इस घटना ने किसानों का गुस्‍सा बढ़ा दिया। हालांकि, प्रशासन उन्हें दिल्ली जाने से कोई रोक नहीं सका।

ठप कर दी थी दिल्‍ली
यह रैली कितनी बड़ी थी इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि इसमें करीब 14 राज्‍यों के 5 लाख किसानों ने शिरकत की थी। किसानों ने अपनी बैल गाड़‍ियां और ट्रैक्‍टर बोट क्‍लब में खड़े कर दिए थे। पूरी दिल्‍ली थम गई थी। विजय चौक से लेकर इंडिया गेट तक किसानों की गिरफ्त में आ गया था। किसानों ने यह मौका ढूंढकर चुना था। दरअसल, उन दिनों बोट क्‍लब में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्‍यतिथि (30 अक्‍टूबर) की तैयारियां चल रही थीं। मंच बना दिया गया था। इस मंच पर ही किसान आकर बैठ गए थे। टिकैत के नेतृत्‍व में एक हफ्ते किसानों ने वहीं धरना दिया। यहां तक किसानों को हटाने के लिए 30 अक्‍टूबर के दिन लाठीचार्ज भी हुआ। लेकिन, किसान टस-से-मस नहीं हुए। अंत में तत्‍कालीन सरकार ने ही आयोजन स्‍थल को बदल लिया। बोट क्‍लब की जगह लालकिले के पीछे मैदान में कार्यक्रम हुआ।

सरकार ने टेके थे घुटने
वोट क्‍लब में किसानों का धरना 31 अक्‍टूबर 1988 को खत्‍म हुआ था। यह तत्‍कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इस आश्‍वासन के साथ खत्‍म हुआ कि किसानों की सभी मांगों पर फैसला लिया जाएगा। इस आंदोलन के बाद महेंद्र सिंह टिकैत का रुतबा बहुत ज्‍यादा बढ़ गया था।

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पिता की राह पर राकेश टिकैत
किसान आंदोलन की शुरुआत से राकेश टिकैत इसका चेहरा रहे हैं। पिछले कुछ महीनों में किसानों में उनकी स्‍वीकार्यता बहुत ज्‍यादा बढ़ी है। मुजफ्फरनगर रैली इसका संकेत देती है। भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने दावा किया कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, कर्नाटक जैसे विभिन्न राज्यों के 300 किसान संगठनों के किसान कार्यक्रम स्थल पर पहुंचे हैं। उनके लिए 5,000 से अधिक लंगर लगाए गए हैं। संगठनों के झंडे और अलग-अलग रंग की टोपी पहने किसान बसों, कारों और ट्रैक्टरों के जरिये मुजफ्फरनगर में पहुंचते देखे गए। आयोजन स्थल के आसपास कई चिकित्सा शिविर भी लगाए गए। जीआईसी कॉलेज मैदान तक पहुंचने में असमर्थ लोगों को कार्यक्रम देखने की सुविधा प्रदान करने के लिए शहर के अलग-अलग हिस्सों में एलईडी स्क्रीन भी लगाई गई।

क्‍यों अहम है आयोजन?
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा, ‘पांच सितंबर की ‘महापंचायत’ राज्य और केंद्र की योगी-मोदी सरकार को किसानों, खेत मजदूरों और कृषि आंदोलन के समर्थकों की ताकत का एहसास कराएगी। मुजफ्फरनगर ‘महापंचायत’ पिछले नौ महीनों में अब तक की सबसे बड़ी महापंचायत है।’ राकेश टिकैत के बेटे चरण सिंह टिकैत ने शनिवार को कहा था कि जब तक सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस नहीं लेती तब तक उनके पिता घर नहीं आएंगे। अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस आयोजन को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। ‘किसान महापंचायत’ का आयोजन संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से किया गया।

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