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INS Vikrant PM Modi Calls It Certificate Of India Hard Work Talent Impact And Commitment


मृत्युंजय राय

पुराने जमाने में राजा विशालकाय स्मारक बनाते थे। आधुनिक समय में हर राष्ट्र खुद को विशालकाय परियोजनाओं के माध्यम से परिभाषित करने की कोशिश करता है। हाल में स्वदेश निर्मित युद्धपोत विक्रांत को नौसेना को सौंपते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, ‘यह 21वीं सदी के भारत के परिश्रम, प्रतिभा, प्रभाव और प्रतिबद्धता प्रमाण प्रस्तुत करता है?’ क्या है इन शब्दों के पीछे मौजूद भावना और कैसे भारत ने इस परियोजना के माध्यम से उन्हें साकार किया है? आइए विचार करते हैं कुछ आख्यानों के माध्यम से।

परिश्रम

महाभारत में पांडवों को युद्ध में जिन अस्त्रों से जीत में मदद मिली, उसके लिए अर्जुन को घोर तप, घोर परिश्रम करना पड़ा था। महायोगी व्यास ने युधिष्ठिर से युद्ध जीतने के लिए इंद्र, रुद्र, वरुण, कुबेर और यम के अस्त्र प्राप्त करने को कहा। युधिष्ठिर ने इसके लिए अर्जुन को हिमालय भेजा। वहां उनकी परीक्षा एक तपस्वी ने ली, जो वास्तव में भगवान इंद्र थे। परीक्षा लेने के बाद उन्होंने अर्जुन को अपना वास्तविक परिचय दिया। इसके बाद जब अर्जुन ने उनसे अस्त्र मांगे तो इंद्र ने कहा, ‘पहले भगवान शिव का दर्शन करो, तब तुम्हें दिव्य अस्त्रों की प्राप्ति होगी।’ अर्जुन ने तब अपने तप से भगवान शिव को प्रसन्न किया और उनसे ब्रह्मशिर नाम का अस्त्र हासिल किया। इसके बाद उन्होंने इंद्र सहित दूसरे देवताओं को प्रसन्न कर उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त किए। 21वीं सदी के ‘भारतीय स्मारक’ विक्रांत के बनने की कहानी भी बहुत रोचक है, जिसमें अथक परिश्रम और कोई दो दशक का वक्त लगा। विक्रांत को कोचीन शिपयार्ड ने बनाया है। इसके चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर मधु एस नायर ने बताया, ‘इसे बनाने का सफर कोचीन शिपयार्ड और भारतीय नौसेना के लिए आसान नहीं रहा…यह किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था।’

प्रतिबद्धता

इतनी बड़ी और महत्वपूर्ण परियोजना की खातिर धैर्य और प्रतिबद्धता की जरूरत थी। कुछ वैसी ही, जैसी नचिकेता ने दिखाई थी। नचिकेता के पिता वाजश्रवा ने फल की कामना के लिए एक यज्ञ किया। इसमें उन्हें अपनी समस्त संपत्ति दान करनी थी। नचिकेता को यह देखकर बुरा लगा कि उनके पिता बूढ़ी और बेकार गायें दान कर रहे थे। उन्होंने तब वाजश्रवा से पूछा, ‘आप मुझे किसे देंगे? बार-बार प्रश्न करने पर पिता ने कहा- मैं तुझे मृत्यु को देता हूं।’ पिता की बात का मान रखने के लिए नचिकेता मृत्यु के देवता यम के यहां गए, लेकिन तब वह वहां नहीं थे। तीन दिन तक नचिकेता ने बिना खाए-पीए उनका इंतजार किया। लौटने पर यम को यह जानकर पछतावा हुआ और उन्होंने नचिकेता से तीन वर मांगने को कहा। नचिकेता ने पहला वर यह मांगा कि जब वह लौटें तो पिता उनके प्रति प्रसन्न रहें। दूसरा, मुझे उस अग्नि का उपदेश दीजिए, जो स्वर्ग को ले जाने वाली है। तीसरे वर के रूप में उन्होंने मृत्यु का रहस्य जानना चाहा। यम ने इसे छोड़ने के लिए नचिकेता को कई प्रलोभन दिए। लेकिन नचिकेता मृत्यु का रहस्य जानने को लेकर अड़े रहे और आखिरकार यम को हार माननी पड़ी।

विक्रांत को लेकर भारत ने यही प्रतिबद्धता दिखाई। इसे बनने में जितना वक्त लगा, उस दौरान कई तकनीकी चुनौतियां आईं। ऐसी लंबी परियोजना में कई बार संशय भी पैदा होते हैं। यह ऐसा काम था, जिसे असंभव तक बताया गया। फिर भी भारत ने इसे कर दिखाया। अगर चीन की बात करें तो तो शैंगडोंग को उसका पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर माना जा सकता है, जिसे उसने दिसंबर 2019 में अपनी नौसेना को सौंपा। चीन ने एक तरह से 1985 से स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने का काम शुरू कर दिया था। उसे पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में 39 साल का वक्त लगा, जबकि भारत ने उससे आधे समय यह कमाल कर दिखाया है।

प्रतिभा

ऐसा काम करने के लिए संसाधनों के साथ प्रतिभा और कुशलता की भी जरूरत पड़ती है। कुछ वैसी ही, जैसे अष्टावक्र ने दिखाई थी। वह ब्रह्मऋषि श्वेतकेतु के मामा और कहोड के पुत्र थे। एक बार धन अर्जन के लिए कहोड राजा जनक के यहां गए। जनक के विद्वान पुरोहित बन्दी का नियम था कि जो भी उससे शास्त्रार्थ में हारता, उसके प्राण वह पानी में डुबाकर ले लेता। कहोड के साथ भी ऐसा ही हुआ। यह बात अष्टावक्र को कुछ बड़े होने पर पता चली तो वह श्वेतकेतु को लेकर राजा जनक के यहां गए। छोटी आयु के कारण अष्टावक्र को पहले द्वारपाल ने रोका। लेकिन जवाब से संतुष्ट होने के बाद द्वारपाल ने उन्हें राजा जनक के दरबार में जाने दिया। अष्टावक्र ने पहले अपने ज्ञान से राजा जनक को संतुष्ट किया और फिर बन्दी को परास्त। आखिर में उन्होंने बन्दी के साथ वही सलूक किया, जो उसने उनके पिता कहोड के साथ किया था। जो काम पिता न कर पाए, उसे अष्टावक्र ने प्रतिभा के दम पर कर दिखाया। आज प्रतिभा के दम पर भारत भी दुनिया के गिने-चुने देशों में शामिल हो गया है, जिनके पास अपना एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने की क्षमता है। भारत से पहले यह क्षमता अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और फ्रांस के पास थी।

प्रभाव

प्रधानमंत्री ने विक्रांत को नौसेना को सौंपते हुए प्रभाव शब्द का भी प्रयोग किया। इसे समझने के लिए फिर से महाभारत की कथा पर लौटते हैं। कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों को हराने के बाद युधिष्ठिर शोक में डूब गए। युद्ध में दोनों ओर से परिजनों ने जान गंवाई थी। तब मन को शांत करने के लिए भीष्म और महायोगी व्यास ने उन्हें अश्वमेध यज्ञ करने की सलाह दी। युधिष्ठिर ने इसे मान लिया। इसके बाद लंबे वक्त तक शांतिपूर्वक राजकाज चलाते रहे। इस दशक के आखिर तक भारत दुनिया की तीसरी और चीन सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति होगा। 21वीं सदी में भारत के सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का भी अनुमान लगाया गया है। लेकिन भारत का यह उदय तभी होगा, जब उसके पास वैसी सामरिक शक्ति भी हो। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमेरिका दुनिया की महाशक्ति इसी तरह बना। आज चीन दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है और बहुत बड़ी सामरिक शक्ति भी। भारत को भी आर्थिक तरक्की के साथ सैन्य क्षमता बढ़ानी होगी। ब्रह्मोस, तेजस के साथ विक्रांत को उस दिशा में बढ़ाया गया महत्वपूर्ण कदम माना जा सकता है।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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