उन्होंने कहा कि अतीत में भी भारत सरकार ने केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर को लेकर ओआईसी के बयानों को सिरे से खारिज किया था । उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न और अटूट हिस्सा है।
बागची ने किसी देश का नाम लिए बिना कहा कि ओआईसी को एक देश की शह पर भारत को लेकर अपना ‘साम्प्रदायिक एजेंडा’ चलाने से बचना चाहिए। उनका इशारा साफ तौर पर पाकिस्तान की ओर था।
परिसीमन आयोग ने इस महीने के शुरू में अपनी अंतिम रिपोर्ट नोटिफाई की थी। आयोग को जम्मू-कश्मीर में परिसीमन का काम पूरा करने के लिए कहा गया था। ऐसा राज्य में चुनाव कराने के लिए जरूरी है।
इसे लेकर ओआईसी ने एक बयान जारी किया था। इसमें उसने भारत पर जम्मू-कश्मीर की सीमाओं को जबरन बदलने की कोशिश का आरोप लगाया था। साथ ही कश्मीरी लोगों के अधिकारों के उल्लंघन पर चिंता जताई थी।
यह पहली बार नहीं है जब ओआईसी को भारत के अंदरूनी मामलों को लेकर बयान देने पर तीखी प्रतिक्रिया का सामना करना पड़ा है। बीते महीने भी भारत ने ओआईसी को जमकर लताड़ा था। तब समूह ने ऑल पार्टीज हुर्रियत कॉन्फ्रेंस के चेयरमैन को अपनी विदेश मंत्रियों की बैठक में बुलाया था। इस बैठक का आयोजन इस्लामाबाद में हुआ था।
इसके कुछ हफ्तों बाद ओआईसी ने एक रेजॉल्यूशन पारित किया था। इसमें उसने जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकार उल्लंघनों का आरोप लगाया था। साथ ही यह भी कहा था कि कश्मीर मुद्दा सुलझने तक शांति की कल्पना करना मुश्किल है। विदेश मंत्रालय ने इस रेजॉल्यूशन को बेतुका करार दिया था। इसके अलावा यह भी कहा था कि भारत के बारे में कहीं गई बातें गलत तथ्यों पर आधारित हैं।
फरवरी में समूह ने उसके अनुसार भारत में मुस्लिमों पर होने वाले हमलों पर चिंता जताई थी। इसे लेकर अंतरराष्ट्रीय बिरादरी से आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा था। भारत ने इसके बाद तुरंत प्रतिक्रिया दी थी। ओआईसी को एक देश से प्रेरित होकर भ्रामक बयान देने से बाज आने के लिए कहा था।