अभी कोर्ट तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इन तीन याचिकाओं में से दो हिंदू पक्ष ने दाखिल की हैं। एक मस्जिद समिति ने फाइल की है। सोमवार को वाराणसी कोर्ट में सुनवाई इसे लेकर हुई कि केस आगे कैसे बढ़ेगा। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ऑर्डर 7 रूल 11 के तहत केस की मेनटेनिबिलिटी की याचिका पर पहले सुनवाई होनी चाहिए। वहीं, हिंदू पक्ष का अनुरोध है कि सर्वे कमीशन की ओर से फाइल की गई रिपोर्ट को पहले सुना जाना चाहिए।
कोर्ट ने किस चीज पर फैसला सुरक्षित रखा है?
जैसा कि आपको ऊपर बताया गया कि इसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलील है। दोनों ही पक्षों को सुनने के बाद सोमवार को जिला जज ने फैसला सुरक्षित कर लिया है। केस की अगली सुनवाई में अब वो बताएंगे कि इसे लेकर आगे किस तरह चीजें बढ़ेंगी। मेनटेनिबिलिटी पर मुस्लिम पक्ष के अनुरोध को पहले तवज्जो दी जाएगी या हिंदू पक्ष की प्रार्थना को सुना जाएगा।
हिंदू पक्ष की याचिकाओं में क्या कहा गया है?
हिंदू पक्ष की दो याचिकाओं में कई मांगें रखी गई हैं। पहली मांग यह है कि ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में माता श्रृंगार गौरी की रोजाना पूजा-अर्चना की अनुमति दी जाए। दूसरी, मस्जिद के वजूखाने में मिले शिवलिंग की पूजा करने की अनुमति मिले। तीसरी, शिवलिंग के नीचे बने कमरे को जाने वाले रास्ते से मलबा हटाया जाए। चौथी, शिवलिंग की लंबाई और चौड़ाई का पता लगाने के लिए सर्वे हो। पांचवीं, वैकल्पिक वजूखाने का प्रबंध किया जाए।
क्या कहती है मस्जिद समिति की याचिका?
मस्जिद समिति की याचिका में कहा गया है कि वजूखाने में किसी भी तरह की सीलिंग न हो। दूसरी मांग यह है कि ज्ञानवापी सर्वे को लेकर 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट के प्रकाश में ही कोई कदम बढ़ाया जाए।
क्या है ज्ञानवापी केस की हिस्ट्री?
1991 में वाराणसी की एक अदालत में याचिका दायर हुई थी। इस याचिका में ज्ञानवापी मस्जिद निर्माण के संबंध में एक दावा किया गया था। दावा यह था कि औरंगजेब के आदेश पर 16वीं शताब्दी में उनके शासनकाल के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर के एक हिस्से को ध्वस्त करके यह मस्जिद बनाई गई थी। याचिकाकर्ताओं और स्थानीय पुजारियों ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी थी। इनके अनुरोध पर इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 2019 में एएसआई सर्वे पर रोक लगाने का आदेश दिया था।
मौजूदा विवाद ने कैसे पकड़ा तूल?
इसकी शुरुआत तब हुई जब पांच हिंदू महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर माता श्रृंगार गौरी और देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा-अर्चना की अनुमति मांगी। पिछले महीने वाराणसी की एक अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के वीडियोग्राफी सर्वे का आदेश दिया था। इसके लिए इन पांच महिलाओं ने कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इन्होंने ज्ञानवापी मस्जिद की बाहरी दीवार पर हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियों की पूजा और दर्शन का अधिकार दिए जाने का अनुरोध किया है।
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद कौन है, इसका क्या कहना है?
अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद ज्ञानवापी मस्जिद का प्रबंधन करने वाली समिति है। इसने कोर्ट में मस्जिद के हालिया सर्वेक्षण को रद्द करने का अनुरोध किया है। हिंदू महिला वादियों ने इसके जवाब में हलफनामा दाखिल किया है।
पहले सिविल कोर्ट में क्यों चल रहा था मुकदमा?
दरअसल, मस्जिद के वक्फ बोर्ड के होने का दावा है। इस दावे को खारिज करते हुए हिंदू महिला वादियों ने याचिका दाखिल की थी। इसमें कहा गया है कि यह संपत्ति किसी वक्फ की नहीं है। यह ब्रिटिश कैलेंडर वर्ष की शुरुआत से लाखों साल पहले ही देवता ‘आदि विश्वेश्वर’ का स्थान थी। अब भी यह देवता की संपत्ति है। सिविल सूट होने के कारण ही पहले मामला दीवानी अदालत में था। हालांकि, सुप्रीम ने हाल में केस की जटिलताओं को देखते हुए केस को जिला जज के पास ट्रांसफर किया था।
क्या है ऑर्डर 7 रूल 11, मुस्लिम पक्ष क्यों उठा रहा है इसकी मांग?
यह किसी याचिका की मेनटेनिबिलिटी से जुड़ा नियम है। मेनटेनिबिलिटी से मतलब यह होता कि याचिका सुनवाई करने लायक है भी कि नहीं। कह सकते हैं कि केस के ट्रायल में यह पहला कदम होता है। मुस्लिम पक्ष प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट का हवाला देकर केस की मेनटेनिबिलिटी पर सवाल उठा रहा है। इस आधार पर वह चाहता है कि कोर्ट शुरुआत में ही याचिका को खारिज कर दे। सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद कमेटी ने अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि हिंदू पक्ष की ओर से सिविल कोर्ट में फाइल केसों को सुना ही नहीं जाना चाहिए था। कारण है कि यह 1991 के प्लेसेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट का उल्लंघन है। इस ऐक्ट के अनुसार, देश में किसी धार्मिक स्थल का स्वरूप 15 अगस्त 1947 जैसा ही रहेगा। इसे बदला नहीं जा सकता है।