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delhi’s top market, Delhi Market: कभी आग में खाक हो गया था दिल्ली का यह बाजार, आज चांदनी चौक के इस कटरे में रहती है महिला खरीदारों की भयंकर भीड़ – chandni chowk famous new katra market best market for wedding shopping in delhi know all about the market


नई दिल्लीः चांदनी चौक में बहुत से कटरे हैं। सबकी ऐतिहासिक विरासत और किस्से कहानियां हैं। मुगलकाल और अंग्रेजों के दौर से होते हुए चांदनी चौक के कटरों में काफी कुछ बदला है। इन्हीं तमाम कटरों में से एक ‘नया कटरा’ है। 1967 में यहां भयंकर आग लगी थी। इसमें सब कुछ तबाह हो गया था। घटना का मुआयना करने इंदिरा गांधी और मोरारजी देसाई भी पहुंचे थे। उन्होंने व्यापारियों को फिर से काम शुरू करने की परमिशन देकर मदद की। आग की घटना के पहले कटरे का नाम मुंशी गौरी शंकर था। बाद में फिर से बाजार और रिहाइश बसाया गया और नाम दिया गया ‘नया कटरा’। व्यापारियों ने दिन-रात मेहनत कर बाजार को उभारने में मदद की। इन दिनों साड़ी, लहंगे, लाइनिंग फेबरिक और पगड़ी क्लॉथ के लिए मशहूर नया कटरा में महिला खरीदारों का फुटफॉल अधिक रहता है। इस कटरे की खासियत, जरूरतें और मांगों पर सूरज सिंह की रिपोर्ट:

सैकड़ों साल पुराने गेट के दुनिया में खरीदार

सैकड़ों साल पुराने गेट के दुनिया में खरीदार

कटरे के प्रवेश द्वार पर लगा भारी-भरकम गेट सैकड़ों साल पुराना है। इसके दुनिया में खरीदार हैं। भीमसेन ढींगरा ने बताया कि यहां बहुत से विदेशी टूरिस्ट, पुरानी चीजों के शौकीन, खरीदार आते रहे हैं। वो गेट की भव्यता देखकर आकर्षित होते हैं। इसे खरीदना चाहते हैं। फोटो और विडियो बनाकर ले जाते हैं। वर्षों पुराने गेट की लकड़ी भी जानदार और शानदार है। इसके बदले अच्छा पैसा और यहां नया गेट लगाने की पेशकश भी करते हैं। इसके लिए हम मना कर देते हैं। यह गेट नया कटरे का आभूषण है। पहचान है। ऐसा गेट फिर से नहीं बन सकता। लिहाजा, इस धरोहर को कहीं नहीं जाने देंगे। इसका समय-समय पर ध्यान रखते हैं। पेटिंग करके सुंदरता का खयाल रकते हैं। एंट्रेंस के बाद साईं बाबा का मंदिर है। आते-जाते लोग मत्था जरूर टेकते हैं। इससे बाजार में बरकत बनी हुई है।

​115 साल पुराना प्राइमरी स्कूल

115-

कटरे में 115 साल पुराना प्राइमरी स्कूल है। 1908 में स्थापित मारवाड़ी प्राइमरी स्कूल मान्यता एवं सहायता प्राप्त विद्यालय है। इसे मारवाड़ी चैरिटेबल ट्रस्ट चलाता है। अनिल मेहरा ने बताया कि आज भी 200 से 250 बच्चे स्कूल में पढ़ने आते हैं। छोटी-सी सीढ़ियों के जरिए ऊपर जाकर स्कूल बना है। यहां छात्रों के बैठने और पढ़ने की अच्छी जगह है। आसपास के कटरों में रहने वालों के छोटे बच्चे निशुल्क शिक्षा ग्रहण करते हैं। चांदनी चौक के बड़े-बड़े व्यापारी मारवाड़ी प्राइमरी स्कूल से पढ़ चुके हैं। इस स्कूल में निशुल्क शिक्षा, निशुल्क प्रवेश, जरूरतमंदों को छात्रवृति, प्रथम कक्षा में प्रवेश लेने वाले बच्चों को मुफ्त वर्दी, फ्री किताब-कॉपी, अल्पाहार, फ्री चिकित्सा सुविधा, कंप्यूटर शिक्षा, अंग्रेजी शिक्षा और दिल्ली दर्शन की सुविधा दी जाती है।

प्रधानमंत्री की पसंद का कपड़ा

प्रधानमंत्री की पसंद का कपड़ा

अनिल मेहरा ने बताया कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिनेन का कपड़ा काफी पसंद है। वो कुर्ता-पायजामा लिनेन के पहनते हैं। ये कपड़ा यहां होलसेल प्राइस में मिलता है। कई नेताओं को इसी कपड़े की ड्रेस पहनना पसंद होता है। लिनेन के कपड़ों की दो बड़ी मशहूर मिलों के कपड़े नया कटरा में मिलते हैं। आज कल लिनेन का कपड़ा ट्रैंड में है। गीजा कॉटन की कई वैरायटी मार्केट में उपलब्ध हैं। बड़े इंपोर्टर नया कटरा में बैठे हैं। साथ ही देश के मशहूर ब्रैंड के डीलर यहीं से थोक कारोबार करते हैं। जिस भी कस्टमर को शर्टिंग में काम करना है, उसे नया कटरा आना पड़ेगा।

रास्ता खुल जाए, तो भला हो जाए

रास्ता खुल जाए, तो भला हो जाए

चांदनी चौक की मुख्य सड़क का सौंदर्यकरण हो चुका है। यहां सुबह 9 बजे से रात 9 बजे तक मोटर व्हिकल की आवाजाही पर पाबंदी है। यदि किसी ने नियम तोड़ा, तो 20 हजार रुपये का जुर्माना है। इस रूल से चांदनी चौक में अंदर के कटरों में बैठे व्यापारियों को काफी नुकसान झेलना पड़ता है। भीमसेन ढींगरा ने कहा कि यदि रास्ता खुल जाए, तो भला हो जाए। व्यापारी चाहते हैं कि मैन रोड पर किसी को गाड़ी खड़ी नहीं करने दी जाए। कोई भी वाहन आए और सवारी को छोड़कर निकल जाए। अभी बहुत से ऐसे ग्राहक जो मेट्रो, बस, टैक्सी में चलना पसंद नहीं करते, उन्होंने चांदनी चौक आना छोड़ दिया है। पैसों वाला ग्राहक जो गाड़ी से उतरकर सीधा शोरूम में जाना पसंद करता है, उसने दिल्ली के दूसरे बाजारों में जाना शुरू कर दिया है। इससे यहां के पारंपरिक दुकानदारों को घाटा सहना पड़ रहा है। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए। चांदनी चौक व्यापारिक क्षेत्र है। कारोबार को बचाने पर जोर देना चाहिए।

आगजनी से पहले मुंशी गौरीशंकर था कटरे का नाम

आगजनी से पहले मुंशी गौरीशंकर था कटरे का नाम

नया कटरा की विशेषता है कि यह दो तरफ से खुला है। यहां चांदनी चौक मैन रोड और मालीवाड़ा की ओर से भी ग्राहकों की आवाजाही रहती है। 1967 में यहां आग लगी थी, जिसमें बहुत-सी दुकानें जल कर राख हो गईं थी। गंगास्नान की वजह से मार्केट में छुट्टी थी। काफी माल स्वाह हो गया था। उससे पहले कटरे को मुंशी गौरीशंकर के नाम से जानते थे। किसी जमाने में यहां मुंशी रहते थे। यह भी मुगलकालीन बाजार है। आज भी खुदाई होती है, तो पुराने कुएं और हवेलियों के अवशेष मिलते हैं। अंग्रेजों से पहले मुगलों का शासन था। उस दौर में दरबार के मंत्री यहीं ठहरा करते थे। समय के साथ काफी बदलाव हुए। आज पूरे कटरे में 2-4 फैमिली रहती होगी। बाकि में बिजनेस होता है। कटरे में ऊपर-नीचे मिलाकर 125 से अधिक दुकानें होंगी। पहले ये होलसेल कटरा था। धीरे-धीरे रिटेल और थोक बिक्री में कारोबार कन्वर्ट हो गया। -भीमसेन ढींगरा, प्रेजिडेंट, नया कटरा

पानी की समस्या

पानी की समस्या

अन्य कटरों की तरह नया कटरा में भी पीने के पानी की समस्या है। अशोक कुमार ने बताया कि वॉटर लेवल नीचे चला गया है। मोटर काम नहीं करतीं। दिल्ली जल बोर्ड का पानी समय पर नहीं आता। अब रिहायइश तो नाम मात्र की है। पूरा क्षेत्र कमर्शल है। फिर भी पानी की जरूरत पड़ती है। कई दुकानदारों ने शौचालय बना रखे हैं। इसके लिए टंकियां हैं। व्यापारी और ग्राहकों को टॉयलेट यूज करना पड़ता है, तो पानी जरूरी है। अब यदि रात में या सुबह जल्दी पानी आता भी है, तो उसे टंकी में कौन भरेगा? दुकानें तो सुबह 11 बजे खुलती हैं। पीने का पानी तो खरीदा जा सकता है। मगर, शौचालय के लिए तो सरकार को पानी मुहैया कराना चाहिए।

लेडिज टॉयलेट की कमी से दुकानदार परेशान

लेडिज टॉयलेट की कमी से दुकानदार परेशान

आज भी नया कटरा में कई बड़े व्यापारी थोक में बिजनेस करते हैं। किसी समय यहां आढ़ती भी अच्छी संख्या में थे। वो दिल्ली के बाहर से आने वाले कस्टमर को अंदर बैठे व्यापारियों का माल बिकवाते थे। इसका उन्हें अच्छा कमीशन मिल जाता था। साड़ी, सूट, लहंगा चुन्नी और शूटिंग-शर्टिंग जैसे कपड़ों के विख्यात शोरूम हैं। इन पर रिटेल और होलसेल में डीलिंग होती है। यहां से काफी माल एक्सपोर्ट भी होता है। मार्केट में महिला ग्राहकों की अच्छी संख्या है। मगर, यहां लेडिज टॉयलेट की भारी कमी है। इससे दुकानदार भी परेशान हैं। नगर निगम और सरकार को ध्यान देना चाहिए। अब तो पुरुषों के लिए भी महिलाएं ही परचेजिंग करती हैं। चांदनी चौक में 20 अतिरिक्त पब्लिक टॉयलेट बनने चाहिए। भले, इसके लिए पैसा वसूला जाए। यहां हजारों से लेकर करोड़ों रुपया एक-एक खरीदार खर्च कर देता है। उसे मूलभूत सुविधा मिलनी चाहिए। -अनिल मेहरा, ज्वाइंट सेक्रेटरी, कटरा कमिटी

अतिक्रमण के चलते कटरे की एंट्रेंस पर भीड़

अतिक्रमण के चलते कटरे की एंट्रेंस पर भीड़

चांदनी चौक के मैन रोड से नया कटरा में प्रवेश के दौरान बहुत कम रास्ता ग्राहकों को मिलता है। इसे चौड़ा होना चाहिए। अतिक्रमण की वजह से आवाजाही प्रभावित होती है। कई बार महिलाओं खरीदारों का समूह जगह नहीं मिलने पर दूसरी जगह मूव कर जाता है। इससे अंदर बैठे दुकानदारों की रोजी रोटी पर फर्क पड़ता है। यदि प्रॉपर रास्ता मुहैया कराया जाए, तो विजिटर्स को दूर से खुला रास्ता मिलेगा। आग की घटना के बाद फिर से बने मार्केट में अंदर अच्छा खासा स्पेस है। जबकि दूसरे पुराने कटरों में गलियां संकरी हैं। अन्य कटरों की तरह नया कटरा में भी तारों की गुच्छों से व्यापारी परेशान हैं। गर्मियों में एसी चलते हैं। बिजली का लोड बढ़ता है। तार गर्म हो जाते हैं। इनमें स्पार्किंग होती है। चिंगारी भड़क गई, तो फिर से बड़ा हादसा हो सकता है। ओपन वायरिंग का समाधान खोजना चाहिए, ताकि फिर को अनहोनी नहीं हो पाए। -रोहित कोहली, कपड़ों के थोक विक्रेता

मैं चौकीदार, यहां मेरी दो दुकानें

मैं चौकीदार, यहां मेरी दो दुकानें

नया कटरा में हमारे पुरखे चौकीदारी करते आए हैं। मेरे बाबा, मेरे पिता जी और अब मैं कटरे की चौकीदारी करता हूं। इसके लिए मैंने डीटीसी की सरकारी नौकरी तक छोड़ दी। बेटे बड़े हो गए हैं। उनकी दो दुकानें भी कटरे में हैं। अच्छा बिजनेस चल रहा है। फिर भी चौकीदारी का काम नहीं छोड़ा है। हर दुकान से आज भी 170 रुपये महीने चौकीदारी का पैसा लेता हूं। यहीं के मारवाड़ी स्कूल से पढ़ाई की है। जिस समय यहां आग लगी थी, तब स्कूल में ही था। तब मुझे और दूसरे बच्चों को सुरक्षित जगह से धोती के जरिए निकाला गया था। उस समय नया कटरा में काफी परिवार रहते थे। नया कटरे को आग के बाद फिर से संभलते हुए करीब से देखा है। 1950 से 1980 तक ऊपरी मंजिल में फैमिली रहती थी और नीचे दुकानें होती थीं। धीरे-धीरे ऊपर और नीचे दुकानें खुलती गईं। स्थानीय लोग पुरानी दिल्ली को छोड़कर दूसरी जगह शिफ्ट हो गए। -अशोक कुमार मिश्रा, चौकीदार



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