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Cpt vs Sidhua and Baghel vs Deo : कांग्रेस आलाकमान के निर्देश पर नवजोत सिंह सिद्धू के सलाहकार मलविंदर माली को इस्तीफा देना पड़ा। प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने कहा कि पंजाब में सब चीजें ठीक से चल रही हैं, चुनाव जब नजदीक होते हैं तो थोड़ी हलचल होती है। इसका मतलब ये नहीं है कि सबकुछ सामान्य नहीं है। हालांकि, सच्चाई क्या है, इसका अंदाजा सिद्धू के बिल्कुल ताजा बयान से लगाया जा सकता है। सिद्धू ने कहा, ‘अगर आपने मुझे निर्णय नहीं लेने दिया तो आपको छोड़ूंगा नहीं, ईंट से ईंट बजा दूंगा।’ यह इशारा किस तरफ है, यह जानना बहुत कठिन नहीं है। उधर, छत्तीसगढ़ कांग्रेस में भी भारी उथल-पुथल मची है। इतनी कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव और कई विधायक दिल्ली आ धमके हैं। उनकी राहुल गांधी से मुलाकात होने वाली है। बघेल ने कहा, ‘आज संभवत: राहुल गांधी से मुलाकात होगी। सरकार सुरक्षित है, 70 विधायक हैं।’ आज भले ही पंजाब और छत्तीसगढ़ कांग्रेस की अंदरूनी कलह सतह पर दिख रही है, लेकिन केरल से लेकर कश्मीर तक कांग्रेस पार्टी के अंदर विद्रोह की ज्वाला धधक रही है, भले ही वो थोड़ी दबी हुई है…

​पंजाब

पंजाब में मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के बीच का झगड़ा इस बात का प्रतीक है कि गांधी परिवार किस तरह संकट पैदा करने में माहिर हो चुका है। वहां अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं जिनमें कैप्टन की अगुवाई में कांग्रेस की आसान जीत की भविष्यवाणी हो रही थी। प्रदेश कांग्रेस में इस बात की चर्चा है कि कैप्टन को विरासत में कई संकट मिले, लेकिन उन्होंने गांधी परिवार के नाक में दम कभी नहीं किया लेकिन सिद्धू और उनके सलाहकारों ने सीमा लांघ दी।

​छत्तीसगढ़

राहुल गांधी ने छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री बदलने का वादा किया था जो अब उनकी गले ही हड्डी बन रहा है। प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंह देव वादा पूरा नहीं होने से खफा हैं जबकि भूपेश बघेल अपने प्रतिस्पर्धी टीएस सिंह देव के प्रभाव वाले दलित बहुल इलाकों के नेताओं को भड़काने में जुटे हैं। दिल्ली नेतृत्व ने देव को और बड़ा मंत्रालय देने का ऑफर दिया, लेकिन बघेल की जगह उन्हें मुख्यमंत्री बनाना संभव नहीं दिख रहा है। कारण बड़े सपोर्ट बेस वाले बघेल का विधायकों के बीच भी अच्छी पकड़ का होना है।

​केरल

गांधी परिवार को ओमन चांडी और रमेश चेन्निताला की जुगलबंदी भा रही है। वहां केसी वेणुगोपाल की सलाह पर सामूहिक नेतृत्व की जगह एक से ज्यादा मोर्चों का प्रयोग आजमाया जा रहा है। दूसरी तरफ, प्रदेश कांग्रेस प्रमुख के. सुधाकरण और विधानसभा में संसदीय दल के नेता वीडी सतीशन का जोड़ा है। ऐसे में केरल कांग्रेस की हालत यह हो गई है कि नई धुरी पार्टी पर चांडी-चेन्निताला की पकड़ मजबूत करना चाहता है तो सुधाकरण-सतीशन की जोड़ी किसी भी सूरत में अपनी पकड़ ढीली नहीं होने देना चाहती है।

​कर्नाटक

सिद्धारमैया बनाम डीके शिवकुमार की लड़ाई ही प्रदेश कांग्रेस की सुर्खियां रहती हैं। बीजेपी ने येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हटा दिया है, इस कारण प्रदेश कांग्रेस से उसका आसान निशाना ही छिन गया। अब उसके पास भ्रष्टाचार विरोधी अभियान भी औंधे मुंह गिर चुका है। ऐसे में पूरा फोकस सिद्धरमैया और शिवकुमार के बीच खुद को मुख्यमंत्री पद का हकदार साबित करने पर चला गया है। भविष्य में यह गुटबाजी बढ़ने के भरपूर संकेत मिल रहे हैं।

​महाराष्ट्र

टीम राहुल ने ‘वफादारों’ को नजरअंदाज करके बीजेपी से लौटे नाना पटोले को महाराष्ट्र कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया तो उन्होंने महाविकास अघाड़ी गठबंधन में अपनी चाल चलनी शुरू कर दी। तब गठबंधन के साथियों- शिवसेना और एनसीपी ने कांग्रेस को हिदायत दी कि वह पटोले को अनुशासन में रखे। नितिन राउत समेत कांग्रेस के अन्य मंत्रियों के साथ पटोले का मनमुटाव भी सार्वजनिक हो चुका है। मुंबई कांग्रेस में आंतरिक कलह को हवा संजय निरुपम और गुरुदास कामत के झगड़े से मिली थी। कामत की अब मृत्यु हो चुकी है। उसके बाद यूथ कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष सूरज ठाकुर ने मुंबई क्षेत्रीय कांग्रेस समिति (MRCC) और भाई जगताप के साथ अनबन के कारण पद से इस्तीफा दे दिया। भाई जगताप राहुल गांधी की खोज हैं। मुंबई कांग्रेस में यह तब हो रहा है जब बीएमसी चुनाव माथे पर है।

​गोवा

दलबदल की राजनीति के प्रतीक इस राज्य में कांग्रेस के पास करीब आधे दर्जन पूर्व मुख्यमंत्री और पर्व प्रदेश अध्यक्ष हैं, लेकिन टीम राहुल ने गिरीश चोडंकर, चंद्रकांत कावलकर और चेल्लाकुमार (अब उनकी जगह दिनेश गुंडुराव आ गए हैं) को क्रमशः पार्टी प्रमुख, विधानसभा में कांग्रेस संसदीय दल का नेता और पार्टी प्रभारी बनाया। इससे वहां के वरिष्ठ कांग्रेसियों में बगावत हो गई और कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी। हाल ही में, प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं ने गांधी से मिलकर गोवा के नेतृत्व में बदलाव की मांग की।

​गुजरात

पिछले विधानसभा चुनाव में बढ़िया प्रदर्शन करने के बाद राहुल गांधी ने गुजरात में अपनी टीम बनाई। ऐसा करते वक्त उन्होंने तत्कालीन नेतृत्व को पूरी तरह नजरअंदाज किया जिसमें अहमद पटेल के भी कई समर्थक शामिल थे। अमित चावड़ा, परेश धानी और हार्दिक पटेल को क्रमशः प्रदेश कांग्रेस प्रमुख, विधानसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता और प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष का पोस्ट दिया। वहीं, अशोक गहलोत की जगह राजीव सातव को गुजरात का प्रभारी बनाया गया। उसके बाद लोकसभा चुनाव हुआ तो कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। वहां पार्टी की हार का सिलसिला आगे बढ़ा और स्थानीय निकायों के चुनावों में भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। अब पार्टी में आंतरिक कलह जोरों पर है। वहां पार्टी के कई नेता एक-दूसरे को दुश्मन की नजर से देखते हैं।

​राजस्थान

मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच ‘हम बड़े, हम बड़े’ की लड़ाई परंपरागत तरीके से आगे बढ़ रही है। प्रदेश प्रभारी अजय माकन जुलाई में जयपुर गए और हरेक विधायक से अकेले में मुलाकात की। उन्होंने पार्टी को दिल्ली नेतृत्व का संदेश दिया कि राजस्थान कैबिनेट में बदलाव किया जाए। मीटिंग में कई प्रमुख विधायकों और नेताओं ने माकन को चेताया कि दिल्ली नेतृत्व ‘गद्दारों’ की पीठ पर हाथ रखकर उन वफादारों को चिढ़ाना छोड़ दे जिन्होंने उस वक्त गहलोत की सरकार बचाई जब बीजेपी ने घात लगाने की कोशिश की थी।

​हरियाणा

विधानसभा में कांग्रेस ससंदीय दल के नेता और पूर्व मुख्यंत्री भूपेंदर सिंह हुड्डा बनाम प्रदेश कांग्रेस प्रमुख कुमारी शैलजा की लड़ाई के बीच हाल ही में हुड्डा के समर्थक कांग्रेस हेडक्वॉर्टर पहुंच गए। वहां उन्होंने कांग्रेस के संगठन महासचिव और प्रदेश प्रभारी से प्रदेश संगठन की शिकायत की। उन्होंने अपनी शिकायत में जो तथ्य सामने रखे, उससे लगता है कि हुड्डा कैंप को गांधी और वाड्रा परिवार का समर्थन हासिल है। कहा जा रहा है कि हुड्डा अपने बेटे को शैलजा की जगह प्रदेश कांग्रेस प्रमुख का पद दिलाना चाहते हैं जबकि शैलजा पुरानी वफादार हैं और उनके समर्थक एवं दलित मतदाताओं की मजबूत जमीन कांग्रेस के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

​उत्तर प्रदेश और बिहार

राहुल-प्रियंका के नेतृत्व में लड़े गए पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनाव के बाद यूपी कांग्रेस गहमागहमी बढ़ी। कई बुजुर्ग नेताओं को किनारे लगा दिया गया और जितिन प्रसाद ने तो पार्टी ही छोड़ दी। वहीं, बिहार में पार्टी को यह समझ ही नहीं आ रहा है कि वो किसी दलित को प्रदेश नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपे या फिर सवर्ण को। ऐसे में कई कांग्रेस विधायक मुख्यमंत्री नीतीश कुमारे के पार्टी (जेडीयू) मजबूत करो अभियान के शिकार हो सकते हैं।

​झारखंड

प्रदेश कांग्रेस में अंदरूनी कलह बढ़ने के बीच प्राटी ने वहां नया अध्यक्ष बना दिया। प्रदेश में इस बात की चर्चा तेज हो गई थी कि कुछ विधायक बीजेपी के फेंके पासे में फंसते दिख रहे हैं। नए प्रदेश नेतृत्व ने पार्टी को संभालने में सफलता नहीं पाई तो जेएमएम के साथ गठबंधन वाली उसकी सरकार भी संकट में आ सकती है।

​असम और पूर्वोत्तर राज्य

असम विधानसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई चरम पर पहुंच गई। यहां तक कि राहुल गांधी की वफादार सुष्मिता देव ने कांग्रेस छोड़कर टीएमसी का दामन थाम लिया। असम के कुछ कांग्रेसी विधायकों और नेताओं ने भी पार्टी छोड़ दी। बीजेपी और उसके गठबंधन साथियों के शासित कई पूर्वोत्तर राज्य आंतिरक संकट से जूझ रहे हैं, फिर भी कांग्रेस मौके का फायदा नहीं उठा पा रही है।

​जम्मू-कश्मीर

कांग्रेस पार्टी ने गुलाम नबी आजाद से किनारा करके जम्मू-कश्मीर में पार्टी के समीकरण को नया मोड़ दे दिया है। राहुल ने वहां आजाद के आलोचक गुलाम मोहम्मद मीर को प्रदेश प्रमुख का ओहदा दे दिया है। बदले में आजाद पिछली दो बार से अपने प्रदेश दौरे पर शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं। अभी उनके पास पार्टी में प्रदेश के साथ-साथ राष्ट्रीय स्तर पर भी हलचल मचाने की पूरी क्षमता है।

​अंदरूनी कलह की इन कहानियों के पीछे कौन?

दरअसल, कांग्रेस पार्टी दो वर्षों से नेतृत्व विहीन है। सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष के तौर पर पार्टी का पहिया खींच रही हैं। अभूतपूर्व चुनावी एवं संगठनात्मक उलटफेर के बीच पुत्र राहुल गांधी और पुत्री प्रियंका गांधी वाड्रा पार्टी नेतृत्व में परिवारिक हितों की रक्षा कर रहे हैं। यह सब कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) के सदस्यों, पार्टी महासचिवों (AICC General Secretaries), सचिवों, प्रदेश कांग्रेस कमिटी (PCC) प्रमुखों की ‘हमें चाहिए गांधी परिवार’ की बनावटी चित्कार की आड़ में हो रहा है। ध्यान रहे कि ये कार्यसमिति से लेकर पीसीसी तक के सदस्य और प्रमुख प्रभावी तौर पर ‘नामित’ हैं, चयनित नहीं। यही वजह है कि वो सभी सोनिया गांधी की कृपा से पद पर आसीन रहते हैं जबकि चुनाव होते तो जीतने वाले कार्यसमिति सदस्यों या संसदीय बोर्ड के सदस्यों को हटाने का अधिकार पार्टी अध्यक्ष के पास नहीं होता। नेतृत्व के मोर्चे पर ‘आप नामित करें, हमें समर्थन देंगे’ की व्यवस्था के बावजूद विभिन्न प्रदेशों में कांग्रेस आंतरिक मारधाड़ से लहूलुहान है। कांग्रेस नेता पार्टी नेतृत्व से मायूस हो रहे हैं, इसलिए उनमें निराशा का भाव गहरा हो रहा है। वहीं, पार्टी नेतृत्व ‘पीढ़ीगत बदलाव’, ‘बुजुर्ग नेताओं’ को किनारे करने और ‘टीम राहुल-प्रियंका’ को मजबूत करने के लुभावने दावे कर रहा है।

​खुर्शीद की कांग्रेसियों को सलाह

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने कहा कि पार्टी नेताओं को पहले आरएसएस और बीजेपी से लड़ना चाहिए और फिर अपने मतभेदों को दूर करना चाहिए। उन्होंने यह टिप्पणी कांग्रेस के कुछ नेताओं की ओर से संगठन में व्यापक बदलाव की मांग से जुड़े विवाद को लेकर की है। खुर्शीद ने दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के विधि विभाग की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘जब समय आएगा तो हम बता देंगे हमारा अध्यक्ष कौन हैं। फिलहाल सोनिया जी हमारी अध्यक्ष हैं और अगर कोई कोई बदलाव होगा तो आपको बताया जाएगा।’ खुर्शीद ने कहा, ‘अगर हम आपस में ही लड़ते रहेंगे तो फिर आरएसएस और भाजपा से कैसे लड़ेंगे। पहले आरएसएस और भाजपा से लड़िये और फिर अपने मतभेदों को को दूर करिये।’



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