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हाइलाइट्स

  • चर्चित युवा नेता कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी थामने जा रहे कांग्रेस का दामन
  • युवा नेताओं को शामिल कर कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश कर रही कि पार्टी में ही भविष्य दे रहे हैं युवा
  • इससे पहले अचानक नवजोत सिंह सिद्धू ने दे दिया इस्तीफा

नई दिल्ली
देश की राजधानी में आज सुबह से ही सियासी हलचल तेज थी, शाम में दो चर्चित युवा नेता कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी कांग्रेस का दामन थामने वाले थे। लेकिन दोपहर में करीब 3 बजे अचानक पंजाब से आई एक खबर ने कांग्रेस की खुशी पर ग्रहण लगा दिया। कैप्टन अमरिंदर सिंह का इस्तीफा करवाने के बाद आज अचानक पंजाब प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू ने इस्तीफा दे दिया।

मैं समझौता नहीं कर सकता… सिद्धू ने लिखा
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखा उनका लेटर सामने आया। इसमें सिद्धू ने लिखा, ‘मैं समझौता नहीं कर सकता हूं। समझौता करने से शख्सियत खत्म हो जाती है। मैं पंजाब के भविष्य के साथ समझौता नहीं कर सकता हूं।’ प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान संभालने के करीब ढाई महीने के बाद सिद्धू ने इस्तीफा दिया है। सिद्धू ने कांग्रेस और खासतौर से पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए एक बार फिर असहज स्थिति पैदा कर दी है। दरअसल, पंजाब की सियासत के ताजा घटनाक्रम को लेकर माना जा रहा था कि राहुल गांधी पंजाब की स्थितियों को संभाल रहे हैं। अब फिर से हालात उलट गए हैं।

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सोनिया को लिखा सिद्धू का लेटर

कांग्रेस आज दो बड़े नेताओं को शामिल करा बड़ा राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश में थी लेकिन सिद्धू के चलते सारा सियासी खेल गड़बड़ा गया। बीजेपी को भी कांग्रेस पर तंज कसने का मौका मिल गया। बीजेपी के प्रवक्ता संबित पात्रा ने ट्वीट कर लिखा, ‘Students के आने से पहले “गुरु” चला गया।’

पात्रा ने एक के बाद एक दो ट्वीट किए। एक अन्य में उन्होंने लिखा, ‘वो दो आए नहीं… एक चला गया… छा गए गुरु।’

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इससे कुछ देर पहले तक पंजाब के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के लिए मजबूर हुए दिग्गज नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के दिल्ली आने की काफी चर्चा थी। अटकलें लगाई जा रही थीं कि वह दिल्ली में अमित शाह और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात कर सकते हैं। संयोग से ये दोनों ही घटनाक्रम आज की कांग्रेस के संकट को सबसे अच्छे और सरल ढंग से बताते हैं।

इधर कुछ जोड़ने की कोशिश, उधर कुछ बड़ा टूट जाता है
जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार और गुजरात के चर्चित युवा दलित नेता जिग्नेश मेवानी को पार्टी में शामिल करा कांग्रेस यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि युवाओं को आज उसमें भविष्य दिख रहा है। हार्दिक पटेल को भी इसी रणनीति के तहत कांग्रेस में लाया गया था। यूपी, गुजरात समेत 5 राज्यों के चुनाव से पहले पार्टी युवाओं को रिझाने की कोशिश में जुटी है। खासकर, गुजरात विधानसभा चुनाव में हार्दिक पटेल, कन्हैया कुमार, जिग्नेश मेवानी जैसे युवा नेताओं की फौज उतारकर पार्टी बीजेपी के इस सबसे मजबूत किले को फतह करने का सपना देख रही है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी का आज असली संकट यही है कि वह कुनबे को संभाल नहीं पा रही। कुनबा संभालने की जद्दोजहद के बीच पार्टी किसी तरह विस्तार की सोचती है, तब तक कोई बड़ा दिग्गज कांग्रेस का दामन छोड़ जाता है।

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अमरिंदर सिंह को लेकर अटकलें
पंजाब के कांग्रेस के दिग्गज नेता और क्षत्रप कैप्टन अमरिंदर सिंह को लेकर अटकलें हैं कि वह बीजेपी का दामन थाम सकते हैं। नवजोत सिंह सिद्धू और कैप्टन के बीच अहं के टकराव को पार्टी हाईकमान शांत नहीं कर पाई। इस साल 18 जुलाई को सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस की कमान यही सोचकर दी गई कि अब चुनाव से पहले अंदरूनी खींचतान पर लगाम लगेगा। लेकिन हुआ उलटा। सिद्धू और आक्रामक होते गए। खुलेआम ‘ईंट से ईंट’ बजाने की धमकी देने लगे। दो महीने में ही कैप्टन की ‘अपमानजनक ढंग’ से मुख्यमंत्री पद से छुट्टी हो गई। 2017 में अकाली-बीजेपी सरकार को पंजाब की सत्ता से बेदखल करने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह 2022 के चुनाव से महज कुछ महीने पहले सियासी दोराहे पर खड़े हैं। गांधी परिवार के बेहद करीबियों में शुमार रहे कैप्टन अब कांग्रेस में ही अलग-थलग पड़ गए हैं। अगर वह बीजेपी में शामिल होते हैं तो कांग्रेस के लिए यह बड़ा झटका होगा।

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गोवा चुनाव से पहले सूबे के कद्दावर नेता ने छोड़ा साथ
एक दिन पहले ही गोवा के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य के कद्दावर कांग्रेस नेता लुइजिन्हो फलेरियो ने विधायक पद के साथ-साथ पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने जिस तरह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तारीफ की, उन्हें स्ट्रीट फाइटर बताया, उससे यह अटकलें तेज हो गई हैं कि उनका टीएमसी का दामन थामना बस औपचारिकता रह गया है। टीएमसी उन्हें राज्यसभा भेज सकती है। गोवा में अगले साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव होने हैं और फलेरियो के पार्टी छोड़ने से कांग्रेस की उम्मीदों को बहुत बड़ा झटका लग सकता है।

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सिंधिया, जितेंद्र प्रसाद और सुष्मिता देव ने भी बदली राह
हाल ही में असम से कांग्रेस की तेजतर्रार सांसद और महिला कांग्रेस की प्रमुख रहीं सुष्मिता देव ने भी पार्टी से इस्तीफा देंकर चौंका दिया था। उन्होंने भी टीएमसी का दामन थामा। अब वह असम समेत पूर्वोत्तर और त्रिपुरा में टीएमसी को मजबूत करने के लिए ताकत झोंकी हुई हैं। इससे पहले मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितेंद्र प्रसाद ने कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम लिया था। सिंधिया को बाद में मोदी सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया गया जबकि 2 दिन पहले ही रविवार को जितेंद्र प्रसाद को यूपी के योगी आदित्यनाथ कैबिनेट में जगह मिली। ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितेंद्र प्रसाद एक दौर पर राहुल गांधी के बेहद करीबियों में शुमार थे।

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राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कलह से जूझ रही कांग्रेस
कैप्टन अमरिंदर की अगली सियासी चाल का सबको इंतजार है। लेकिन जिस तरह से उन्होंने ऐलान कर रखा है कि नवजोत सिंह सिद्धू को सीएम बनने से रोकने के लिए वह 2022 में उनके खिलाफ मजबूत उम्मीदवार खड़ा करेंगे और उनकी हार सुनिश्चित करेंगे, इसके मद्देनजर इस बात की संभावना कम है कि वह कांग्रेस में रहेंगे। कांग्रेस के लिए राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी आंतरिक कलह को लंबे वक्त तक दबाए रखना या दूर करना आसान नहीं है।

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राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच उसी तरह का टकराव है जैसा कभी मध्य प्रदेश में कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच था। सिंधिया तो बीजेपी में शामिल हो गए लेकिन कांग्रेस किसी तरह राजस्थान में यह दोहराए जाने से रोकने में सफल हो गई। लेकिन गहलोत-पायलट गुट में जिस आधार पर सुलह हुई वह सुलह कम संकट को कुछ वक्त के लिए टालने जैसा ज्यादा रहा। पंजाब के बाद अब राजस्थान में भी कांग्रेस को एक बार फिर अंदरूनी कलह से जूझना पड़ सकता है। इसी तरह छत्तीसगढ़ में भी टीएस सिंहदेव बनाम भूपेश बघेल का टकराव तेज हो सकता है। सिंहदेव की निगाह भी मुख्यमंत्री पद पर है और वजह बार-बार हाईकमान को याद दिला रहे हैं कि ढाई-ढाई साल सीएम के फॉर्म्युले को लागू कराया जाए।

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