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2024 लोकसभा चुनाव की तैयारी सभी दलों ने शुरू कर दी है। कांग्रेस जहां भारत जोड़ो यात्रा कर रही है, वहीं क्षेत्रीय दल विपक्षी एकता की कोशिश करते दिख रहे हैं। बीजेपी ने भी अपनी कमजोर कड़ियों पर काम करना शुरू किया है। वह खास तौर पर ‘प्रवास मंत्री’ कार्यक्रम लेकर आई है और इसके जरिए 144 सीटों पर फोकस कर रही है। प्रवास मंत्री का मकसद महाराष्ट्र की राजनीति के उतार-चढ़ाव और हरियाणा में केजरीवाल फैक्टर, इन पर और ऐसे अन्य कई पहलुओं पर विशेष संवाददाता पूनम पाण्डे ने बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव और हरियाणा प्रभारी विनोद तावड़े से बातचीत की। पेश हैं अहम अंश :

प्रवास मंत्री की पूरी योजना क्या है और इसका मकसद क्या है?
हमने केंद्रीय मंत्रियों की लोकसभा प्रवास योजना शुरू की है। उसमें हमारा यह मकसद है कि दिल्ली से मंत्री गली-गली, एक-एक बूथ तक पहुंचें और केंद्र सरकार की योजनाओं का लाभ नीचे तक कैसे पहुंच रहा है यह देखें। वहां पर संगठन के नाते शक्ति केंद्र हैं, मंडल हैं, जिले हैं। तो संगठन कहां पर मजबूत है, कहां उसे मजबूत करने की जरूरत है- यह भी देखें। जिन राज्यों में हम सरकार में नहीं हैं उन राज्यों में स्थानीय सरकार योजना बदलकर अपने नाम से कुछ पैसे जोड़कर चला रही है। तो वहां जाकर उन योजनाओं के बारे में भी देखें कि उनका लाभ लोगों को मिल रहा है या नहीं।

प्रवास योजना में जिन 144 लोकसभा सीटों का चयन किया गया है, वह किस आधार पर किया गया?
पहला आधार यह कि जहां केंद्र की योजनाएं ठीक तरह से पहुंचने की संभावना नहीं है, क्योंकि वहां हमारी सरकारें नहीं हैं। उन क्षेत्रों में हम केंद्र की तरफ से लाभ देना चाहते हैं, लेकिन स्थानीय सरकार कहीं अपनी राजनीति के चक्कर में वहां लोगों का नुकसान तो नहीं कर रही है, यह देखना सबसे अहम मकसद है। दूसरा मकसद यह है कि वहां की राजनीतिक-सामाजिक स्थिति का मूल्यांकन करते हुए अगर पार्टी की ताकत वहां लगाते हैं तो जीत की संभावना है। पिछली बार 303 लोकसभा सीटें जीते, इस बार इस तरह से और भी जीत सकते हैं।

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तो ये सारी 144 सीटें उन राज्यों में हैं, जहां बीजेपी की सरकार नहीं है। क्या ये सारी 2019 के चुनाव में हारी हुई सीटें हैं?
85 परसेंट ऐसे राज्यों में हैं, जहां बीजेपी की सरकार नहीं है। कुछ सीटें ऐसी भी हैं, जो पिछले चुनाव में जीते थे। कुछ कम वोटों से हारी सीटें हैं। कुछ ऐसी हैं जो उस वक्त ज्यादा वोटों से हमने हारी थीं, लेकिन राजनीतिक समीकरण बदले हैं तो वहां थोड़ी ताकत लगाकर हम जीत सकते हैं।

जीती सीटों पर तो आपके सांसद हैं ही, तो वहां क्यों जरूरत पड़ी?
अलग-अलग समय पर जो राजनीतिक परिवर्तन होते हैं, उन्हें देखते हुए कि जीती सीट अपने हाथ से न चली जाए। यह इस तरह से संगठन के स्तर पर बूथ को मजबूत करने का अभियान है।

आपने घर-घर तिरंगा अभियान चलाया। वह एक बार का ही था या आगे भी कोई योजना है?
संगठन स्तर पर हम अब आजादी के ‘अनसंग हीरोज’ के बारे में लोगों को बताएंगे। आजादी के लिए लोगों ने क्या-क्या सहा, यह जानकारी युवा पीढ़ी तक पहुंचे। सिर्फ भारत-पाकिस्तान मैच के वक्त युवाओं में जो देशभक्ति जागृत होती है, वह देशभक्ति 365 दिन व्यवहार में किस तरह आए, इसे लेकर पार्टी अलग-अलग कार्यक्रम करेगी। आजादी में योगदान किसी एक पार्टी का नहीं, सिर्फ कुछ शहरों का नहीं, बल्कि कई ऐसे अनसंग हीरोज हैं, जिन्हें चर्चा में लाना, उन जगहों के बारे में लोगों को बताना भी जरूरी है।

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महाराष्ट्र में अमित शाह के बयान के बाद उद्धव ठाकरे ने कहा कि हम बीएमसी चुनाव में आसमान दिखाएंगे। बीजेपी की क्या तैयारी है?
कोई भी दो पार्टी जब गठबंधन कर चुनाव लड़ती हैं और चुनाव के बाद झूठी बातें बताकर सिर्फ मुख्यमंत्री पद के लिए ऐसी पार्टियों से मिल जाती है, जिनकी विचारधारा बिल्कुल उलट हो, तो यह तो धोखा ही है। इस धोखे का सही जवाब देने का काम जनता करेगी। जिस तरह उद्धव ठाकरे की पार्टी की हालत आज हुई है, बाला साहेब के शिवसैनिक एकनाथ शिंदे के साथ जुड़े हैं, वह साफ दिख रहा है। बीएमसी चुनाव में आम शिवसैनिक उद्धव ठाकरे को विचारों के साथ गद्दारी करने पर सबक सिखाएंगे।

हरियाणा में आम आदमी पार्टी पूरी ताकत लगाती दिख रही है। कितना असर पड़ेगा?
आम आदमी पार्टी ने उत्तराखंड, यूपी, गोवा में भी प्रयास किया था। सफलता सिर्फ पंजाब में मिली। उसकी वजह यह थी कि पंजाब में बीजेपी पिछले 30 साल से अधिक सीटों पर लड़ ही नहीं रही थी, क्योंकि वह अकाली दल के साथ थी। लेकिन इस बार अकाली दल और कांग्रेस के विरोध का जो लाभ था, वह आम आदमी पार्टी को मिला। ऐसा कोई माहौल न हरियाणा में है, न हिमाचल प्रदेश में है और ना ही गुजरात में। हरियाणा में आम आदमी पार्टी कह रही है कि हरियाणा का लाल केजरीवाल, तो फिर दिल्ली का लाल कौन है? तो वह दिल्ली के मुख्यमंत्री क्यों हैं? हरियाणा में हमारा मुकाबला कांग्रेस से होगा, लेकिन बीजेपी और जेजेपी मिलकर फिर जीतेंगे।

किसान आंदोलन के बाद जाट बीजेपी से नाराज हैं, कितना असर होगा इसका?
जाट अगर नाराज होते तो विधानसभा उपचुनाव में असर क्यों नहीं दिखा? नगर निगम, नगर पंचायत के चुनाव में भी असर नहीं दिखा। दरअसल, यह असर कुछ लोगों के बयान में हैं। वास्तव में कोई असर नहीं है।



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