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हाइलाइट्स

  • दुनिया के छह देश अफगान में फंसे भारतीयों को निकालने को तैयार हो गए हैं
  • अफगानिस्तान में अपने भारतीय कर्मचारियों को अपने देश ले जाएंगे
  • भारत सरकार बाद में अलग-अलग देशों से भारतीयों को वतन वापस ले आएगी

नई दिल्ली
अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों को निकालने का अभियान जारी है। तालिबान ने अमेरिका को कहा है कि वो 31 अगस्त तक बाकी बचे अपने सैनिकों को अफगानिस्तान से निकाल ले। ऐसे में भारत सरकार के पास महज सात दिन बचे हैं अपने बाकी बचे नागरिकों को वापस वतन लाने के लिए। हालांकि, अच्छी बात यह है कि इस काम में छह अन्य देशों ने भी भारत की मदद करने के प्रस्ताव पर हामी भरी है।

सिर्फ भारतीयों को ही नहीं निकाल रही है भारत सरकार

दरअसल, भारत सरकार अफगानिस्तान से सिर्फ भारतीयों को ही नहीं निकाल रही है बल्कि वहां के हिंदू और सिख निवासियों को भी तालिबान के चंगुल से छुड़ा रही है। यहां तक कि वहां के सांसद भी भारत लाए जा रहे हैं। ऐसे में भारत सरकार का काम और जिम्मेदारी बढ़ गई है। राहत की बात है कि यूनाइटेड किंगडम (UK), संयुक्त अरब अमीरात (UAE), अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और कतर भारतीयों को निकालने को तैयार हो गए हैं।

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छह देशों के साथ हुआ यह समझौता

इन छह देशों के अफगानिस्तान में कारोबार थे जिनमें कई भारतीयों की नौकरी थी। भारत सरकार ने उन देशों से कहा है कि वो अपने-अपने भारतीय कर्मचारियों को अपने देश ले जाएं। फिर भारत की सरकार उन्हें अलग-अलग देशों से वतन ले आएगी। अनुमान है कि अफगानिस्तान में करीब डेढ़ हजार भारतीय थे जिनमें से करीब आधे निकाल लिए गए हैं। बहरहाल, अमेरिकी वॉइट हाउस की ओर से जारी बयान में बताया गया है कि सोमवार को करीब 10,900 लोगों को अफगानिस्तान से निकाला गया था जिनमें अमेरिका ने 6,600 लोगों को जबकि अन्य देशों ने कुल 4,300 लोगों को बाहर निकाला था।

ताजा हालात पर सर्वदलीय बैठक

इधर, केंद्र सरकार अफगानिस्तान के ताजा हालात और उसके प्रयासों से रू-ब-रू करवाने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई। आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक, 26 अगस्त को होने वाली इस ऑल पार्टी मीटिंग में सरकार खासकर तौर पर यह बताएगी कि वो काबुल से कैसे लोगों को निकाल रही है। स्वाभाविक है कि वो अब तक निकाले गए और वहां बच गए भारतीयों का आंकड़ा भी पेश करेगी। सरकार अपना देश छोड़ रहे अफगानियों के लिए वीजा पॉलिसी पर भी सफाई देगी।


इन मुद्दों पर सरकार से हो सकते हैं सवाल

हालांकि, विभिन्न राजनीतिक दलों के नेता यह जानने को भी उतावले होंगे कि भारत सरकार अफगानिस्तान में पैदा हुई नई परिस्थिति से निपटने के लिए किन-किन विकल्पों को तलाश रही है। मीटिंग में भाग लेने वाले संसदीय दलों के नेता सरकार से यह भी जानना चाहेंगे कि अफगानिस्तान के नए हालात को लेकर उसका क्या रुख है। संभवतः सरकार को इस सवाल का जवाब देना पड़े कि क्या उसने तालिबान के कब्जे के बाद काबुल में अपना दूतावास बंद करके ठीक किया है या उसे थोड़ा इंतजार करना चाहिए था?

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इन सवालों के बीच, सबसे बड़ा सवाल यह उठ सकता है कि भारत सरकार ने तालिबानी शासन को मान्यता देने के बारे में क्या सोच रखा है। क्या भारत तालिबान विरोधी नैशनल रेजिस्टेंस फ्रंट (NRF) को समर्थन देने पर विचार कर रहा है। साथ ही, इस पर भी मंथन होने की संभावना है कि चीन और पाकिस्तान की तालिबान के साथ गठजोड़ हमारे लिए क्या चुनौती खड़ा कर सकता है।

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अफगानिस्तान से भारतीयों को निकालने का अभियान जारी।



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