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हाइलाइट्स

  • महाशक्तियों ने दुनिया पर डंडा चला सिर्फ अपना स्वार्थ किया सिद्ध
  • किसी भी काम में पहले उपेक्षा होती है और विरोध भी
  • सारी दुनिया हमारी जैसी बने इसके लिए हम दबाव नहीं बनाएंगे

नई दिल्ली
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भारत को महाशक्ति नहीं, बल्कि विश्व गुरु बनना है। संघ प्रमुख ने कहा कि जो आज महाशक्ति हैं, उन्होंने बस दुनिया पर डंडा चलाया और अपना स्वार्थ सिद्ध किया। भारत को वैसा नहीं बनना है, भारत को विश्व गुरु बनना है।

संघ प्रमुख ने भारत विकास परिषद के एक कार्यक्रम में कहा कि सब बातों में हम दुनिया में नंबर वन रहेंगे। लेकिन, सारी दुनिया हमारी जैसी बने इसके लिए हम उन्हें अपने जैसा नहीं बनाएंगे बल्कि वहां के लोग आकर देखें सीखें, तब वह हमारे जैसा बनें। भागवत ने कहा कि सारी दुनिया से लोग यहां आकर चरित्र की शिक्षा लेकर जाएंगे और अपनी भाषा, अपनी पूजा पद्धति, अपने भूगोल के हिसाब से अपने वहां मानवता का काम करेंगे।

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मोहन भागवत ने कहा कि किसी भी काम में पहले उपेक्षा होती है, विरोध भी होता है। भारत विकास परिषद जैसे काम करता है उसमें विरोध की गुंजाइश कम है। फिर भी इस स्टेज से गुजरना होता है। उसके बाद अनुकूलता आती है।

जय-जयकार से उत्साह बढ़ता है लेकिन…
भागवत बोले कि अनुकूलता में ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। जय-जयकार से उत्साह बढ़ता है लेकिन, अहंकार बढ़ने की संभावना भी रहती है। अहंकार मारक होता है। सेवा में अहंकार बिल्कुल नहीं चलता है। अनुकूलता में अहंकार से दूर रहने की चिंता करनी पड़ती है।

संघ प्रमुख ने कहा कि सुविधाओं का उपयोग करना चाहिए, पर यह मनुष्य को सुविधाभोगी बना देता है, इसका ध्यान रखना पड़ता है। साथ ही अपना पूर्व चरित्र बार-बार याद करना ठीक रहता है।

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डायनेमिक्स बदलने का काम भारत का
भागवत ने कहा कि गीता में कहा गया है कि जो बड़े लोग हैं, श्रेष्ठ लोग हैं वे जैसा आचरण करते हैं बाकी लोग उसका अनुकरण करते हैं। भारत का प्राण है मनुष्य का विकास यानी विश्व के साथ एकात्मक हो जाएं।

उन्होंने कहा कि हमारे आठवीं पीढ़ी के पूर्वज कौन थे का बहुत कम लोग उत्तर दे सकेंगे। लेकिन, स्वामी विवेकानंद को सब लोग जानते हैं। हम उन्हें इसलिए जानते हैं क्योंकि वह अपने लिए नहीं जिए। वह ऐसे जिए कि सारी मानवता के सामने उदाहरण बन गए। उसका उपयोग भी उन्होंने अपने लिए नहीं किया।

भागवत ने कहा कि दुनिया में चाह बहुत हैं साधन मर्यादित हैं। इसलिए संघर्ष है। संघर्ष है तो सर्वाइल ऑफ द फिटेस्ट भी है। दुनिया सोचती है कि जितनी आयु है साधनों का अधिकतम उपयोग कर लें। इस डायनेमिक्स को बदलने का काम भारत का भारतवासियों का है। भारत को संपूर्ण दुनिया के अर्थ कामों को नियंत्रित करने वाला धर्म देना है, तब सारी दुनिया सुखी होगी।

mohan bhagwat



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