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हाइलाइट्स

  • जस्टिस नरीमन बोले – जजों की नियुक्ति में मेरिट सर्वोपरि होनी चाहिए
  • SC के लिए हाईकोर्ट से दो सीनियर जजों के नामों की सिफारिश का पक्ष में
  • 7 साल के कार्यकाल में बतौर जज 13500 से अधिक केस का किया निपटारा

नई दिल्ली
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन एफ. नरीमन गुरुवार को रिटायर हो गए। जस्टिस नरीमन सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में पांचवें ऐसे जज हैं जिन्हें सीधे वकील (बार) से सुप्रीम कोर्ट का जस्टिस बनाया गया था। जस्टिस नरीमन ने अपने सात साल के कार्यकाल में बतौर जज 13500 से अधिक केसों का निपटारा किया और करीब 400 फैसले लिखे। इनमें तीन तलाक केस, आईटी एक्ट 66 ए और निजता के अधिकार मौलिक अधिकार जैसे महत्वपूर्ण फैसले शामिल हैं। जस्टिस नरीमन उन जजों में शामिल थे जिन्होंने शायद ही अपना कोई फैसला एक महीने से अधिक समय तक सुरक्षित रखा हो।

क्या सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति का रास्ता खुल जाएगा?
जस्टिस नरीमन के रिटायर होने के बाद अब यह सवाल उठ रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति का रास्ता खुल जाएगा। क्या सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम का विवाद खत्म होकर उसमें आम सहमति बन जाएगी। कॉलेजियम मेंबर के रूप में जस्टिस नरीमन का मानना था कि कॉलेजियम में तब तक नामों पर कोई आम सहमति नहीं बन सकती जब तक कि हाईकोर्ट के जजों की ऑल इंडिया सीनियॉरिटी लिस्ट से दो जजों के नाम की सिफारिश नहीं की जाती है।

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अब जस्टिस नागेश्वर राव होंगे शामिल
सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा कॉलिजियम में चीफ जस्टिस जस्टिस एन. वी. रमण के अलावा जस्टिस यू. यू. ललित, जस्टिस ए. एम. खनविलकर, जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ शामिल हैं। जस्टिस नरीमन के रिटायर होने के बाद जस्टिस नागेश्वर राव इसमें शामिल होंगे। कॉलेजियम 28 अगस्त, 2019 से सरकार को एक भी नाम की सिफारिश करने में विफल रहा है। अब जस्टिस नरीमन के रिटायर होने के बाद अन्य नामों पर विचार करने की राह खुल जाएगी।

अन्य कारकों की बजाय मेरिट सर्वोपरि हो
जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा कि जूडिशरी में नियुक्ति में अन्य कारकों के बजाय मेरिट सर्वोपरि होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) की तरफ से आयोजित अपने विदाई समारोह में जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘मेरा मानना है कि किसी की इस अदालत में आने की ‘विधिसम्मत अपेक्षा’ नहीं होती। मेरा मानना है कि भारत के लोगों में और मुकदमा दायर करने वाले लोगों में ‘विधिसम्मत अपेक्षा’ इस अंतिम अदालत से गुणवत्तापरक न्याय पाने की होती है।’

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बेंच में अधिक डायरेक्ट प्रमोशन की वकालत

उन्होंने कहा, ”इसके लिए, यह बहुत स्पष्ट है कि अन्य पहलुओं के अलावा मेरिट ही सर्वोपरि होनी चाहिए। मेरिट हमेशा पहले आती है।’ जस्टिस नरीमन ने कहा कि यह समय है कि इस पीठ में और अधिक डायरेक्ट प्रमोशन हो। उन्होंने कहा, ‘मैं यह भी कहूंगा और उन्हें सलाह दूंगा, जिन्हें सीधी नियुक्ति का अवसर मिलता है, कभी ‘ना’ मत कहिए। यह उनकी पवित्र जिम्मेदारी है कि इस पेशे से जितना कुछ मिला है, उसे लौटाएं।’

37 साल की उम्र में सीनियर एडवोकेट बनाए गए
देश के दिग्गज वकील फली एस नरीमन के घर 13 अगस्त 1956 को पैदा हुए जस्टिस रोहिंटन एफ नरीमन की पढ़ाई दिल्ली में हुई। उन्होंने श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया। इसके बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी से एलएलबी की। वह एलएलएम की पढ़ाई के लिए हार्वर्ड गए। 1979 में उन्होंने वकालत शुरू की। वह 37 साल की उम्र में सीनियर एडवोकेट बनाए गए। साल 2011 में 55 साल की उम्र में वह सॉलिसिटर जनरल बनाए गए। 35 साल की शानदार प्रैक्टिस के बाद उन्हें सीधे सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। 7 जुलाई 2014 को सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के तौर पर उन्हें शपथ दिलाई गई।

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