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लेखकः मुकुल व्यास
दुनिया में जानवरों से मनुष्यों में पहुंचने वाले रोगों का खतरा बढ़ रहा है। कोरोना वायरस तो इसका सबसे बड़ा उदाहरण है ही, अब जानवरों से निकला एक और वायरस सामने आया है। चीन में मंकी-बी वायरस से एक व्यक्ति की मौत हो गई। बताते हैं कि यह बहुत ही दुर्लभ किस्म का संक्रामक रोग है, जो एक खास प्रजाति के बंदरों से ही फैलता है।

पेइचिंग में इस वायरस से मरने वाला व्यक्ति पेशे से वेटरनरी डॉक्टर था और यह वहां पर ऐसा पहला मामला है। चीनी रोग नियंत्रण और निवारण केंद्र के अनुसार, यह व्यक्ति एक ऐसे शोध संस्थान में काम कर रहा था, जहां प्राइमेट जानवरों का प्रजनन किया जाता है। उसने मार्च में दो मृत बंदरों का डाईसेक्शन किया था। एक महीने बाद उसे उल्टियां हुईं और बुखार आया। 27 मई को उसकी मौत हो गई। अप्रैल में उसके रक्त और थूक के नमूने चीनी रोग नियंत्रण केंद्र में भेजे गए, जिसमें शोधकर्ताओं को मंकी-बी वायरस का प्रमाण मिला। उसके साथ काम करने वाले एक डॉक्टर और नर्स की रिपोर्ट नेगेटिव आई।

मंकी-बी या हर्पीस बी वायरस ‘मकाक’ प्रजाति के बंदरों में पाया जाता है। मनुष्यों में पहुंचने पर यह वायरस घातक हो जाता है, हालांकि इस तरह के मामले बहुत कम होते हैं। जापान में कोबे विश्वविद्यालय के संक्रामक रोग विशेषज्ञ केंटारो इवाटा का कहना है कि यह वायरस केंद्रीय स्नायु संस्थान पर हमला करता है। इससे दिमाग सूज जाता है और चेतना चली जाती है। वक्त पर इलाज न होने पर ऐसे मामलों में मौत दर 80 प्रतिशत होती है।

दुनिया में प्राइमेट जानवरों से मनुष्य में संक्रमण का पहला मामला 1932 में मिला था। इसके बाद मनुष्यों में मंकी-बी वायरस के संक्रमण के करीब 100 मामले प्रकाश में आ चुके हैं। ज्यादातर मामले उत्तरी अमेरिका में दर्ज हुए थे। अमेरिका में परजू यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ वेटरनरी मेडिसिन में वायरोलॉजी के प्रफेसर सुरेश के. मित्तल के अनुसार मंकी-बी वायरस के संक्रमण से अब तक 21 लोगों की मौत हुई है। इस वायरस से सबसे ज्यादा खतरा वेटरनरी डॉक्टरों, वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं को होता है, जो प्राइमेट जानवरों के साथ काम करते हैं। 1997 में एक प्राइमेट शोधकर्ता एलिजाबेथ ग्रिफिन ने एक बंदर की चपेट में आने के छह हफ्ते बाद दम तोड़ दिया था। पिंजरे में कैद बंदर द्वारा फेंकी गई कोई बूंद उनकी आंख में लगी थी। अमेरिका के रोग नियंत्रण और निवारण केंद्र के अनुसार मंकी-बी वायरस के मनुष्य से मनुष्य में संक्रमण का अभी तक एक ही मामला रेकॉर्ड किया गया है।

मंकी-बी और कोरोना वायरस, दोनों ही प्रजातियों में वायरस जंप के परिणाम हैं, लेकिन इन दोनों में एक बड़ा अंतर है। मंकी-बी वायरस एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में जंप नहीं कर रहा, जबकि सार्स-कोव-2 ने एक नए मेजबान में पहुंचने की क्षमता हासिल कर ली है। हांगकांग के एक वेटरनरी कॉलेज के डीन निकोलस ऑस्टराइडर का कहना है कि हर्पीस-बी वायरस मकाक बंदरों में भली-भांति एडेप्ट हो चुका है। उसमें ऐसा कोई म्यूटेशन होने की आशंका नहीं है, जिससे वह मनुष्यों में तेजी से फैल सके।

बंदरों में हर्पीस वायरस का कुछ प्रतिशत मौजूद रहता है, इसलिए उनके मनुष्यों से संपर्क में आने पर चिंता पैदा होना स्वाभाविक है। पिछले साल फ्लोरिडा के अधिकारियों ने बंदरों की बढ़ती हुई आबादी पर चिंता व्यक्त की थी। ये बंदर वहां पर्यटन को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लाए गए थे। इनमें से अधिकांश बंदर हर्पीस-बी वायरस के वाहक हैं। कुछ दिन पहले टेक्सस में डेलस के स्वास्थ्य अधिकारियों ने एक व्यक्ति के मंकीपॉक्स से संक्रमित होने की सूचना दी थी। बंदरों द्वारा काटने या खरोंच मारने से इस रोग का संक्रमण हो सकता है, हालांकि इस तरह के मामले दुर्लभ होते हैं।

वैसे तो जैसा कि ऊपर कहा गया है, इस वायरस से ज्यादा खतरा वेटरनरी डॉक्टरों और जानवरों की देखभाल करने वाले लोगों को ही है, फिर भी आम लोगों को वन्य जीवन के साथ नजदीकी संपर्क से बचना चाहिए। वैज्ञानिकों ने जोर दिया है कि लोग इस बीमारी को समझें और चिड़ियाघरों एवं दूसरी जगहों पर बंदरों के सामने जाते हुए समुचित सावधानी बरतें।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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