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ambedkar jayanti 2023: how indian government making ambedkar dreams true


अर्जुन राम मेघवाल
आज राष्‍ट्र डॉ. भीमराव आंबेडकर की 132वीं जयंती मना रहा है। यह एक विशेष अवसर इसलिए भी है, क्‍योंकि यह आंबेडकर के शोध प्रबंध ‘द प्रॉब्‍लम ऑफ रूपीः इट्स ओरिजिन एंड इट्स सॉल्‍यूशन’ का भी 100वां वर्ष है, जिसने 1934 में भारतीय रिजर्व बैंक की नींव रखी थी। यह वही समय था, जब देश औपनिवेशिकता की बेड़ि‍यों में बंधे अपने आवरण से छूटने की योजना बना रहा था।

साइमन कमिशन के सामने तीनों गोलमेज सम्‍मेलनों में भागीदारी के दौरान डॉ. आंबेडकर ने दलित वर्ग के उत्‍थान संबंधी कार्यों का प्रतिनिधित्‍व किया। वायसराय की परिषद में श्रमिक सदस्‍य (1942-46), संविधान की मसौदा समिति के अध्‍यक्ष जैसे अपने प्रत्‍येक कार्य में उन्‍होंने लक्षित लोगों के यथोचित हितों का दृढ़तापूर्वक संरक्षण किया। भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए दूरदर्शिता पूर्ण दृष्टिकोण रखते हुए उन्होंने नेहरू सरकार के जम्‍मू और कश्‍मीर के लिए विशेष दर्जे और यूएनओ हस्तक्षेप आदि जैसे कुछ कदमों का विरोध किया।

डॉ. आंबेडकर ऐसे चमकते सितारे थे, जो गौरवशाली राष्ट्र की हमारी धरोहर का प्रतिनिधित्व करते थे। पर क्या हमने आंबेडकर की विचारधारा को पूर्ण रूप से स्वीकार किया है? इतिहास देखें तो पता चलता है कि कांग्रेस और अन्य सरकारों के लिए आंबेडकर का व्यक्तित्व स्वीकार करने की यात्रा कठिन रही। इसका प्रमाण यह है कि संसद के केंद्रीय कक्ष में उनका आदमकद चित्र 34 वर्षों के बाद लगा। विडंबना रही कि सेंट्रल हॉल में डॉ. आंबेडकर की बैठी हुई मुद्रा में लगी पहली तस्वीर 9 अगस्त 1989 को हटा दी गई थी, जिसे बाद में 12 अप्रैल 1990 को फिर लगाया गया।

डॉ. भीमराव आंबेडकर की 132वीं जयंती आज (फोटोः BCCL)

आंबेडकर के अनुयायियों के सरोकारों के साथ मोदी सरकार बेहद संवेदनशील है। संस्कृति मंत्रालय के तत्वावधान में राष्ट्रीय सांस्कृतिक संपदा संरक्षण अनुसंधान शाला, लखनऊ ने बाबा साहेब के साजो-सामान को सुरक्षित किया है। संविधान का मसौदा तैयार करने में इस्तेमाल हुए टाइपराइटर सहित कुल 1358 वस्तुएं संरक्षित की गई हैं, जिन्‍हें आने वाले समय में नवनिर्मित बाबा साहेब डॉ. बीआर आंबेडकर सामाजिक-आर्थिक और संस्कृति केंद्र, चिंचोली, नागपुर में प्रदर्शित किया जाएगा। 11.5 एकड़ में फैला यह केंद्र भारतीय-थाई वास्तुकला का संयोजन है, जिसमें एक संग्रहालय, स्मारक, ध्यान-योग कक्ष और पुस्तकालय भी है।

2014 के बाद मोदी सरकार ने योजना से लेकर कार्यान्वयन और शासन व्यवस्था को आंबेडकर की प्रेरणा के अनुरूप बनाने और ढालने का प्रयास किया है। यह सरकार के अथक प्रयासों का परिणाम है कि पंच तीर्थ- डॉ. आंबेडकर अंतरराष्ट्रीय केंद्र का समर्पित विकास हुआ है। गरीबों की सहायता करने वाली जन-केंद्रित योजनाओं के कार्यान्वयन ऐसे कदम हैं जो सरकार को डॉ. आंबेडकर के विचारों के और करीब ले जाते हैं। सुधार, निष्‍पादन और परिवर्तन के मूल्यों से राष्ट्र-निर्माण की अनवरत यात्रा बेहतर भविष्य के लिए जीवन को कई तरह से प्रभावित कर रही है। कई पहलों के अलावा स्टार्टअप, पीएम आवास योजना, भीम, मुद्रा, और जेएएम (जैम) आदि इस बात का प्रमाण हैं कि सरकार संतुष्टि स्तर तक कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने में कसर नहीं छोड़ रही है। पिछली सरकारों के दरकिनार किए गए मुद्दों को मुख्यधारा में लाने के एजेंडे ने देश में विकास की संभावनाओं को गति दी है।

मानव केंद्रित विकसित भारत, गुलामी के सभी चिह्नों से मुक्ति, अपनी विरासत पर गर्व, एकता-एकजुटता और नागरिक कर्तव्यों के पालन जैसे प्रधानमंत्री के पंच प्रणों में भी डॉ. आंबेडकर का प्रतिबिंब है। डॉ. आंबेडकर का मानना था कि स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श भारतीय संस्‍कृति का हिस्‍सा हैं, जो उन्‍हें महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं से प्राप्‍त हुए हैं। डॉ. आंबेडकर की विचारधारा को मूल रूप में स्वीकार करना और कर्म में उनके मूल्यों का अनुसरण करना ही भारत के महान सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करना है।

डॉ. आंबेडकर की विचारधारा को स्‍वीकार करने की प्रवृत्ति अगर पहले की सरकारों के लिए प्राथमिकता का विषय रही होती तो देश को तो फायदा होता ही, व्‍यापक स्‍तर पर जनकल्‍याण भी देखने को मिलता। उनकी 132वीं जयंती पर हमें एक समृद्ध, न्‍याय और सामंजस्यपूर्ण समाज बनाने का संकल्‍प लेना चाहिए।

(लेखक केंद्रीय संस्कृति और संसदीय कार्य राज्य मंत्री हैं)

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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