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recalling baabasaheb ambedkar builder of a strong and harmonious nation


आचार्य पवन त्रिपाठी

लेखक: आचार्य पवन त्रिपाठी
20वीं सदी में भारत के राजनीतिक एवं सामाजिक परिदृश्य को जिन दो महान शख्सियतों ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है, वो हैं- महात्मा गांधी और बाबासाहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर। यदि कहा जाए कि दोनों पुण्य आत्माओं का महति अवदान मूल्यांकन से परे है, तो यह अतिशयोक्ति न होगी। स्वयं गांधी जी कहा करते थे कि डॉ. आंबेडकर की उपलब्धियां ‘दृढ़ हौसले के चमत्कारिक नतीजे’ हैं। आज आंबेडकर जयंती का अवसर है। बाबासाहेब के जीवन को समग्र रूप से आत्मसात करने का पल है। बाबासाहेब का जीवन एक कालखंड मात्र नहीं था, बल्कि संघर्ष की ऐसी कहानी थी, जिसमें समाज के हर वर्ग के लिए कुछ आदर्श एवं मूल्य निहित हैं। उनके जीवन में समाज के प्रति समर्पण और समाज-निर्माण का एक अद्भुत संकल्प स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। जिन संघर्षों और अवरोधों के बीच बाबासाहेब ने अपने जीवन को जिया, उसकी शायद ही कोई दूसरी मिसाल हो।

बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर केवल एक पेशेवर वकील ही नहीं, एक महान लेखक, अर्थशास्त्री, कानूनविद्, समाजसेवी और युगद्रष्टा भी थे। भारतीय समाज व्यवस्था, आर्थिक तंत्र, राजनैतिक प्रक्रियाओं एवं सभ्यता की उपलब्धियों के प्रति बाबासाहेब की समझ अतुलनीय थी। अपनी इसी विशिष्ट प्रतिभा के चलते वे स्वतंत्र भारत के प्रथम विधि एवं न्याय मंत्री बने। वह भारतीय संविधान के जनक एवं भारतीय गणराज्य के निर्माताओं में से एक थे। भारतीय संविधान के निर्माण में उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उन्हें ‘भारतीय संविधान का पितामह’ कहा जाता है। भारतीय संविधान में बहुमूल्य योगदान तथा इस देश को एक नई दिशा देनेवाले बाबासाहेब समता, स्वतंत्रता और समरसता के सौंदर्य के स्वाभाविक प्रतीक पुरुष थे। संविधान के प्रति उनकी भावना इस हद तक जुड़ी थी कि वे कहते थे- ‘संविधान मात्र वकीलों का दस्तावेज़ नहीं, बल्कि हमारे जीवन का माध्यम है।’ उन्होंने यह भी कहा था, ‘यदि मुझे लगेगा कि संविधान का दुरुपयोग हो रहा है तो सबसे पहले मैं ही इस संविधान को जलाऊंगा।’

देश की आजादी के बाद, देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे समावेशी, आदर्श एवं भविष्यवादी संविधान की रचना की थी, जो देश को एक दिशा दे सके और आनेवाले कालखंड में भारतीय प्रजातंत्र की जड़ों को मजबूती प्रदान करता रहे। आज हमारे पास एक ऐसा विस्तृत, सशक्त और समावेशी संविधान है, जिसमें समाज के सभी वर्ग, वर्ण, धर्म या संप्रदाय गौरव महसूस करते हैं। इसका पूरा श्रेय बाबासाहेब को ही जाता है। इस संविधान की सबसे खूबसूरत बात यही है कि यह समाज के सभी वर्गों को समानता, एकरूपता एवं एकात्मकता के साथ लेकर चलने की बात करता है। समानता के समर्थक बाबासाहेब ने शिक्षा को लिंगेतर माना और कहा था, ‘शिक्षा का अधिकार जितना पुरुष का है, उतना ही महिलाओं का भी।’

सन् 1951 में बाबासाहेब ने ‘भारत के वित्तीय कमीशन’ की स्थापना की। देश में प्रजातंत्र को मजबूती देने के लिए निष्पक्ष चुनाव आयोग की परिकल्पना उन्हीं की थी। उनकी सोच का ही सुखद परिणाम है कि आज भारत दुनिया के सबसे बड़े और सशक्त लोकतंत्र के रूप में सुस्थापित है। यही दृष्टि, यही विज़न आज माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की कार्यशैली में भी देखने को नजर आता है। ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास, सबका प्रयास’ की उनकी सोच शत-प्रतिशत बाबासाहेब के जीवन-अनुभव और आदर्शों से ही प्रेरित है। एक बार माननीय प्रधानमंत्री जी ने बाबासाहेब के बारे में कहा था कि ‘अगर बाबासाहेब नहीं होते तो आज मैं भी नहीं होता!’ निश्चित रूप से, बाबासाहेब के विजन का ही परिणाम है कि समाज के अंतिम छोर पर खड़ा व्यक्ति अपने सामर्थ्य से सर्वोच्च शिखर को हासिल कर सकता है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसकी जीती-जागती मिसाल हैं।

मोदी जी हमेशा बाबासाहेब के विचारों से प्रभावित और प्रेरित रहे हैं। जब वे 2010 में गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो उन्होंने एक भव्य ‘संविधान गौरव यात्रा’ आयोजित की थी। ऐसा करने वाले वे देश के पहले और अकेले राजनेता हैं। केवल यही नहीं, उनकी यह पदयात्रा बाबासाहेब के विचारों और संविधान के प्रति उनकी अटूट आस्था एवं निष्ठा का परिचायक है। इसकी एक झलक हमें तब देखने को मिली जब प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद वह पहली बार संसद आए तो उन्होंने न केवल संसद, बल्कि संविधान के सामने भी नतमस्तक होकर उसी उच्च और उदात्त भाव से बाबासाहेब को श्रद्धांजलि दी।

समाज और राष्ट्र की प्रगति और उत्थान को लेकर बाबासाहेब के विचार अनुकरणीय हैं। वे हमेशा मानते थे कि अगर किसी समाज की प्रगति को नापना हो तो वहां की महिलाओं के शिक्षा के स्तर को जांच लें। माननीय प्रधानमंत्री जी की ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ की सोच उनकी इसी सोच का विस्तार है, जिसे मोदी जी ने नीतिगत रूप से लागू किया है। स्वच्छ भारत, अंत्योदय योजना, उज्ज्वला योजना, डीबीटी, जनधन खाता, राष्ट्रीय शिक्षा नीति जैसे उनके प्रयास बाबासाहेब की आर्थिक-सामाजिक सशक्तीकरण के सपनों को पूरा करने के अनूठे प्रयास हैं।

कश्मीर विषय पर भी बाबासाहेब की सोच और उनके विचार एकदम स्पष्ट थे। संविधान की रचना के समय जब धारा 370 को लेकर चर्चा हो रही थी, एक घटना को जानना बहुत ही जरूरी है। प्रधानमंत्री नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को इस विषय पर बाबासाहेब से मिलकर चर्चा करने की सलाह दी थी। डॉ. आंबेडकर ने शेख अब्दुल्ला से मुलाकात के दौरान कहा, ‘यदि आप चाहते हैं कि भारत आपकी सीमाओं की रक्षा करे, आपकी सड़कें बनवाए, आपको खाना, अनाज पहुंचाए, फिर तो इस राज्य को भी वही स्टेटस मिलना चाहिए, जो देश के दूसरे राज्यों का है। इसके उलट, आप चाहते हैं कि भारत सरकार के पास आपके राज्य में सीमित अधिकार रहें और भारतीय लोगों के पास कश्मीर में कोई अधिकार नहीं रहे, अगर आप इस प्रस्ताव पर मेरी मंजूरी चाहते हैं तो मैं कहूंगा कि ये भारत के हितों के खिलाफ है। एक भारतीय कानून मंत्री के हिसाब से मैं ऐसा कभी नहीं करूंगा।’

उनके शब्द इतने स्पष्ट हैं कि इसमें कोई दो राय नहीं कि बाबासाहेब कश्मीर को स्पेशल स्टेटस देने के पक्ष में बिलकुल भी नहीं थे। उनके इस सपने को, जिसके लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया, पूरा करने का ऐतिहासिक काम प्रधानमंत्री मोदी जी ने 5 अगस्त, 2019 को किया। प्रधानमंत्री मोदी जी ने बाबासाहेब के जीवन से जुड़े पांच विशेष स्थलों को ‘पंच तीर्थ’ के रूप में विकसित किया और जोड़ा, ताकि आनेवाली पीढ़ी को उनके जीवन और आदर्शों से प्रेरणा मिलती रहे। डॉ. आंबेडकर कहा करते थे, ‘हम शुरू से लेकर अंत तक भारतीय हैं और मैं चाहता हूं कि भारत का प्रत्येक मनुष्य भारतीय बने, अंत तक भारतीय रहे और भारतीय के अलावा कुछ न बने।’ उनके अनुसार, ‘महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है।’

आज मोदी जी ने बाबासाहेब के इन्हीं आदर्शों को ‘राष्ट्र सर्वप्रथम, हमेशा सर्वप्रथम’ के सिद्धांत के रूप में आत्मसात कर लिया है। ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो’ के उनके आह्वान को एक मंत्र मानकर एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में हमें स्वयं को राष्ट्र के प्रति समर्पित करना होगा, जिससे एक सशक्त, समृद्ध और समरस राष्ट्र का निर्माण हो सके। एक बार फिर हम उनके एक अन्य कथन को अपने जीवन का मूलमंत्र बनाएं- ‘जीवन लंबा नहीं, बल्कि बड़ा और महान होना चाहिए।’ बाबासाहेब के जन्मदिन पर उनके प्रति हम सबकी यही सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

आचार्य पवन त्रिपाठी, भाजपा की मुंबई इकाई के उपाध्यक्ष हैं।

डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं





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