
सोमवार की वाद सूची से पता चलता है कि यह मामला CJI के नेतृत्व वाली बेंच के सामने कई राज्यों में धर्म परिवर्तन के खिलाफ कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के साथ सूचीबद्ध है, जिसमें जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जे बी पर्दीवाला शामिल हैं।
9 जनवरी को हुई थी आखिरी सुनवाई
जस्टिस शाह और सी टी रविकुमार की खंडपीठ ने पहले एडवोकेट अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर याचिका की पर दर्ज की गई आपत्तियों को खारिज कर दिया था। जबरन धर्मांतरण को एक गंभीर मुद्दा करार देते हुए अदालत ने 9 जनवरी को सुनवाई की आखिरी तारीख पर अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की सहायता मांगी थी।
तमिलनाडु के वकील को दी थी चेतावनी
उस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने तमिलनाडु के एक वकील को भी चेतावनी दी थी, जिन्होंने इस बात से इनकार किया कि राज्य में कोई जबरन धर्मांतरण हो रहा है और बेंच से इस मामले को विधायिका पर छोड़ने का आग्रह किया। वकील ने तर्क दिया कि याचिकाकर्ता बीजेपी मेंबर थे और आरोप लगाया कि याचिका राजनीति से प्रेरित थी।
हमें पूरे देश की चिंता है- सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस शाह ने फटकार लगाते हुए कहा कि अदालत ने इस मामले में पहले ही जांच करने का फैसला कर लिया है। उन्होंने कहा, ‘आपके इस तरह से उत्तेजित होने के अपने कारण हो सकते हैं। कोर्ट की कार्यवाही को अन्य चीजों में न उलझाएं। हम किसी ए राज्य या बी राज्य से संबंधित नहीं हैं। हमें पूरे देश की चिंता है। अगर आपके राज्य में धर्मांतरण हो रहा है तो ये बेहद गलत है अगर नहीं हो रहा तो ये अच्छी बात है। लेकिन इसे किसी एक राज्य तक सीमित करने के रूप में न देखें। इस मामले को राजनीतिक न बनाएं।’