केंद्र सरकार ने याचिका पर सुनवाई के दौरान कहा कि वैक्सीन सरकार ने नहीं, थर्ड पार्टी ने बनाई है। वैक्सीन का रेग्युलटरी रीव्यू किया गया जिसमें सफलता मिलने के बाद ही वैक्सीन डोज लोगों को लगाई गई। सरकार ने कहा कि वैक्सीन का भारत में ही नहीं, विदेशों में भी रिव्यू हुआ और हर जगह यह सही पाई गई। ऐसे में इस तरह के वैक्सीन के कारण अगर कोई घटना होती है और बिल्कुल दुर्लभ मामले में किसी की मौत हो जाती है तो उसके लिए राज्य को जिम्मेदार ठहराया जाना कानूनी तौर पर सही नहीं है।
वैक्सीन से मौत का जिम्मेदार सरकार कैसे?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह पुख्ता करने को कोई साक्ष्य नहीं है कि राज्य सीधे तौर पर मौत के लिए जिम्मेदार है। जिन दो लड़कियों की मौत हुई उससे राज्य को नहीं जोड़ा जा सकता है। स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से पेश हलफनामे में कहा गया है कि वैक्सीन लिया जाना स्वैच्छिक था, इसे अनिवार्य नहीं किया गया था। केंद्र सरकार की ओर से यह भी साफ किया गया कि वैक्सीन लेना कानूनी तौर पर बाध्यकारी नहीं है। हालांकि केंद्र सरकार ने लोगों को जोर शोर से इस बात के लिए प्रोत्साहित किया था कि लोग वैक्सीन लें, यह सब पब्लिक इंट्रेस्ट में है। हालांकि इसकी कोई कानूनी बाध्यता नहीं है।
सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दीं दलीलें
केंद्र ने कहा कि वैक्सीन के बारे में जिनती भी जरूरी जानकारियां थीं, उसे पब्लिक डोमेन में डाला गया था। वैक्सीन मैन्यूफैक्चरर और स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा जानकारियां साझा की गई थीं। जो भी वैक्सीन लेने वाले लाभार्थी थे, उन्हें ऑप्शन था कि वह वैक्सीन के बारे में जानकारी लें और जो भी साइड इफेक्ट का अंदेशा था, उस बारे में वैक्सीनेशन साइट पर मौजूद वर्कर से जानकारी से उपलब्ध था। साथ ही वैक्सीनेशन के बारे में डॉक्टर भी जानकारी दे रहे थे। केंद्र ने यह भी कहा है कि अगर वैक्सीन लेने वाले एक बार वैक्सीन सेंटर जाते हैं और उन्हें सारी जानकारियां उपलब्ध कराई जा रही हैं। वो जानकारी लेते हैं तो फिर यह नहीं कहा जा सकता है कि जानकारी का अभाव था।
वैक्सीन लेने वालों को हमेशा जानकारी उपलब्ध कराई जा रही थी। डॉक्टर यह भी बता रहे थे कि आपकी मर्जी है कि आप वैक्सीन लें। केंद्र ने यह भी कहा कि वह 18 साल और 19 साल की बच्ची की मौत के मामले में गहरी संवेदना व्यक्त करता है। उसने कहा कि पीड़ित फैमिली के लिए कानूनी उपचार हमेशा उपलब्ध है और इस तरह का क्लेम केस टू केस निर्भर करता है। इसके लिए दावा सिविल कोर्ट में किया जा सकता है।