ट्रायल कोर्ट ने सुनाई थी मौत की सजा
राजीव गांधी हत्याकांड में निचली अदालत ने 26 दोषियों को मौत की सजा सुनाई थी। लेकिन 11 मई 1999 को सुप्रीम कोर्ट ने इनमें से सिर्फ 4 की मौत की सजा को बरकरार रखा। ये थे- पेरारिवलन, मुरुगन, संथान और नलिनी। 3 दोषियों रॉबर्ट पायस, जयकुमार और रविचंद्रन को मौत की सजा को सुप्रीम कोर्ट ने आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया। बाकी 19 बरी कर दिए गए। सुप्रीम कोर्ट से मौत की सजा सुनाए जाने के बाद भी पूर्व प्रधानमंत्री के कातिल फांसी के फंदे से बच गए। अप्रैल 2000 में तमिलनाडु के राज्यपाल ने नलिनी की मौत की सजा माफ कर दी। इसके 14 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने दया याचिका पर फैसले में देरी के आधार पर बाकी तीन दोषियों की मौत की सजा माफ कर दी। 18 फरवरी 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने पेरारिवलन, मुरुगन और संथन की मौत की सजा को उम्रकैद में तब्दील कर दिया।
राजीव के फैसले से भड़का हुआ था LTTE
राजीव गांधी हत्याकांड की साजिश श्रीलंका में रची गई। एलटीटीई 1987 से ही इसे अंजाम देने के फिराक में था। दरअसल, 80 के दशक में श्रीलंका गृह युद्ध की भीषण आग में जल रहा था। पूर्वोत्तर श्रीलंका में ‘तमिल ईलम’ नाम से स्वतंत्र तमिल राज्य की मांग को लेकर अलगाववादी सशस्त्र विद्रोह छेड़े हुए थे। इस अलगाववादी आंदोलन का नेतृत्व द लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) कर रहा था। श्रीलंका ने गृह युद्ध से निपटने के लिए भारत से मदद मांगी। 29 जुलाई 1987 को दोनों देशों के बीच एक समझौता हुआ जिसके तहत भारत श्रीलंका में ‘शांति और सामान्य हालात’ कायम करने के लिए सेना भेजने को तैयार हो गया। समझौते के तहत इंडियन पीस कीपिंग फोर्स (IPKP) श्रीलंका पहुंची। इससे LTTE भड़क गया। उसने IPKP पर अपने लड़ाकों पर अत्याचार का आरोप लगाया। बाद में वीपी सिंह सरकार आने के बाद भारत ने श्रीलंका से IPKP को बुलाने का फैसला किया।
20 सितंबर 1990 को शरणार्थी के तौर पर भारत आया था रॉबर्ट पायस
LTTE आतंकियों ने राजीव गांधी हत्याकांड को बड़े ही सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया। 1987 से ही इसकी साजिश चल रही थी। इसके लिए श्रीलंका से आतंकियों की भारत में घुसपैठ कराई गई। 12 सितंबर 1990 से 1 मई 1991 तक 7 समूहों में साजिशकर्ता भारत आए। राजीव गांधी हत्याकांड का मास्टरमाइंड शिवरासन आतंकियों के सबसे आखिरी समूह के साथ आया, जिसमें उसके अलावा 8 और आतंकी थे। हालांकि, वह उससे पहले भी कई बार भारत आ चुका था लेकिन लौट जाया करता था। खैर, बात रॉबर्ट पायस की। वह श्रीलंका से आए एलटीटीई आतंकियों के दूसरे समूह में शामिल था। इस समूह में उसके अलावा उसकी पत्नी प्रेमा (उस वक्त प्रेग्नेंट थी), उसकी बहन प्रेमलता, उसका साला जयकुमार और उसकी पत्नी शांति शामिल थी। शांति भारतीय तमिल थी, बाकी सभी श्रीलंकाई। 20 सितंबर 1990 को ये समूह शरणार्थियों के तौर पर रामेश्वरम में आया। इस समूह की जिम्मेदारी एलटीटीई की गतिविधियों को चलाने के लिए किराए पर ठिकाने की तलाश करना था।
साजिश में शामिल आतंकियों के लिए सुरक्षित ठिकाना मुहैया कराना थी पायस की जिम्मेदारी
रामेश्वरम में शरणार्थी के तौर पर रजिस्ट्रेशन के बाद रॉबर्ट पायस अपने समूह के साथ मद्रास (अब चेन्नई) पहुंचा। वहां ये समूह शांति के रिश्तेदार के यहां ठहरा और किराए के मकान की तलाश शुरू हुई। जल्द ही मद्रास के साबरी नगर एक्सटेंशन, पोरुर में एक किराये का घर लिया। इसे जयकुमार के नाम पर लिया गया। घर में अवैध वायरलेस कम्यूनिकेशन सेटअप तैयार किया गया जिससे आतंकी सीमापार स्थित अपने आकाओं के साथ-साथ आपस में संपर्क करते थे। पोरुर स्थित इस घर में राजीव हत्याकांड का मास्टरमाइंड शिवरासन नियमित तौर पर आता था। उसके कहने पर रॉबर्ट पायस ने मद्रास के मुथामिल नगर में एक और घर किराए पर लिया। इस घर पर भी शिवरासन अक्सर आया-जाया करता था। रॉबर्ट पायस की जिम्मेदारी एलटीटीई आतंकियों के भारत में रहने के दौरान उनके आने-जाने, ठहरने वगैरह का इंतजाम करना था। पोरुर हाउस राजीव गांधी हत्याकांड के साजिशकर्ताओं की गतिविधियों का मुख्य केंद्र था।
बदले की आग में जल रहा था पायस
रॉबर्ट पायस ने अपने कबूलनामे में कहा है कि एलटीटीई ने जब उसे भारत भेजा तो उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि वास्तव में प्लान क्या है। उसे बस इतना पता था कि शिवरासन किसी बहुत खतरनाक प्लान को अंजाम देने वाला था। रॉबर्ट पायस 1985 से ही LTTE से जुड़ा हुआ था। उसने अपने कबूलनामे में इंडियन पीस कीपिंग फोर्सेज पर गंभीर आरोप लगाए थे। पायस का दावा है कि IPKF ने एक बार उसे और जयकुमार को पकड़ लिया था और 15 दिनों तक कस्टडी में रखा था। उन्हें टॉर्चर किया गया। उसका दावा है कि IPKF ने उसके घर पर भी छापा मारा और महिलाओं को बुरी तरह पिटाई की थी। अपने कबूलनामे में पायस ने कहा कि इंडियन पीसकीपिंग फोर्सेज की कार्रवाई में उसके डेढ़ साल के बेटे की मौत हो गई थी। तभी उसने उसे IPKF और राजीव गांधी के प्रति नफरत हो गई। वह बदले की आग में जल रहा था। वह अपने बेटे की मौत के साथ-साथ श्रीलंका में तमिलों पर कथित अत्याचार के लिए राजीव गांधी को जिम्मेदार मानने लगा। यही वजह है कि जब LTTE ने उसे 1990 में किसी ‘बड़े कांड’ के लिए भारत जाने के लिए कहा तो वह तुरंत तैयार हो गया। भारत में उसका एक और बेटा हुआ जो अब नीदरलैंड में रहता है।
कैसे गिरफ्तार हुआ
21 मई 1991 को राजीव गांधी की हत्या वाले दिन पायस पोरुर हाउस में ही था। 22 मई को उसने पटाखे फोड़कर हत्या का जश्न भी मनाया। वह 28 मई तक पोरुर हाउस में ही रहा। पुलिस ने बचने के लिए वह 28 मई की रात को बस पकड़कर थिरुचेंदुर पहुंच गया। अगली रात उसने फिर मदैरै के लिए बस पकड़ी। किसी को शक न हो, इसके लिए उसने साथ में महिलाओं को भी रखा। पुलिस से बचने के लिए वह इधर-उधर भागता रहा। लेकिन आखिरकार 18 जून 1991 को पुलिस ने उसे धर दबोचा।
‘मौत की भीख’ मांग रहा था, मिल गई रिहाई
5 साल पहले पायस ‘मौत की भीख’ मांग रहा था लेकिन अब वह आजाद है। जून 2017 में रॉबर्ट पायस ने तमिलनाडु सरकार से मर्सी किलिंग की गुहार लगाई। तत्कालीन मुख्यमंत्री के. पलनिसामी को लिखे एक भावुक खत में उसने मांग की कि उसे मार दिया जाए और उसके शव को उसके परिजनों को सौंप दिया जाए। उसने खत में लिखा कि रिहाई की कोई उम्मीद नहीं दिख रही, लिहाजा उसकी जिंदगी का कोई मतलब नहीं रह गया है।
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