एक तरफ कमिशन, दूसरी तरफ कलीजियम
जजों की नियुक्ति के लिए एनजेएसी (नैशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन) लाया गया था। सुप्रीम कोर्ट की स्क्रूटनी में वह टिक नहीं पाया। अदालत ने उसे असंवैधानिक करार दिया। उसकी राय में कलीजियम ही सबसे अच्छा सिस्टम है और न्यायिक स्वतंत्रता के लिए यह अपरिहार्य है। लेकिन इसी बीच कलीजियम सिस्टम के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हो गई, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के लिए सहमति जाहिर की है। कलीजियम सिस्टम से पहले जो नियुक्ति की प्रक्रिया थी, उसके तहत लॉ मिनिस्ट्री नामों को रेफर करती थी और फिर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया उस बारे में अपना विचार देते थे और तब उन्हें राष्ट्रपति के पास रेफर कर दिया जाता था। इस प्रक्रिया से हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति होती थी। 1993 में सुप्रीम कोर्ट की 9 जजों की बेंच ने आदेश पारित किया और कलीजियम सिस्टम की शुरुआत की। हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नाम भेजा जाता है। सुप्रीम कोर्ट के कलीजियम में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया और 4 सीनियर जस्टिस होते हैं। उन नामों पर विचार के बाद सुप्रीम कोर्ट की कलीजियम नाम तय करती है और फिर उसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है।
न्यायिक नियुक्ति आयोग असंवैधानिक: सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए नाम खुद सुप्रीम कोर्ट की कलीजियम तय करती है। इन नामों को सरकार के पास भेजा जाता है और फिर सरकार के संबंधित विभाग आईबी आदि से क्लियरेंस के बाद इन नामों को राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। कलीजियम सिस्टम को खत्म करने के लिए केंद्र सरकार ने 2014 में संसद में कानून पास किया था, और एनजेएसी लेकर आई थी। इसके तहत तय किया गया था कि छह लोगों का कमिशन होगा, जो जजों के नाम का चयन करेगा और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी से उन्हें जज बनाया जाएगा। इसमें भारत के चीफ जस्टिस, दो सुप्रीम कोर्ट के जज, कानून मंत्री और दो जानी मानी शख्सियत शामिल होंगी। इन दो नामों का चयन हाई पावर कमिटी करेगी, जिसमें प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और विपक्षी दल के नेता होंगे। लेकिन एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी गई और सुप्रीम कोर्ट ने 16 अक्टूबर 2015 को इसे खारिज करते हुए कलीजियम सिस्टम को रिवाइव कर दिया।
एनजेएसी को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के मूल ढांचे में जुडिशरी की सर्वोच्चता को बहाल रखा गया है। जजों की नियुक्ति में एग्जिक्यूटिव का रोल लिमिटेड है। जजों की नियुक्ति का अधिकार जुडिशरी का है और यह बेसिक स्ट्रक्चर का पार्ट है। सरकार की नई योजना एनजेएसी इसे डैमेज कर रही है, ऐसे में इसके लिए किया गया संविधान संशोधन और एनजेएसी एक्ट गैर संवैधानिक है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एनजेएसी के कारण जुडिशरी की स्वतंत्रता प्रभावित होती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि किसी भी सिस्टम की आलोचना हो सकती है, लेकिन अगर उसे चेंज करना है तो उसे संविधान के दायरे में भी बदला जा सकता है। एनजेएसी के लिए जो संविधान में संशोधन किया गया, वह संविधान के बेसिक स्ट्रक्चर को प्रभावित करता है। जजों की नियुक्ति के लिए किए संविधान संशोधन को गो-बाय करना होगा। यह भी समझना होगा कि तब के जजमेंट में सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा था कि जुडिशरी की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद-14, 19 और 21 का पार्ट है। अगर यह प्रभावित होती है तो इससे लोगों के मूल अधिकार प्रभावित होंगे, ऐसे में एनजेएसी को खारिज किया जाना जरूरी है।
बीजेपी और कांग्रेस साथ-साथ
देखा जाए तो कलीजियम सिस्टम को खत्म करने और जजों की नियुक्ति तथा जुडिशल रिफॉर्म को लेकर कांग्रेस और बीजेपी एक ही प्लेटफॉर्म पर रहे हैं। दोनों ही पार्टियों ने अपने अजेंडे में जुडिशल रिफॉर्म को शामिल रखा है। यूपीए-2 के कार्यकाल में कांग्रेस ने जुडिशल अपॉइंटमेंट कमिशन को संवैधानिक दर्जा देने को मंजूरी दी थी। इस तरह वह बिल पेश करने की तैयारी में थी, यानी उसके अजेंडे में पहले से ही जुडिशल रिफॉर्म की बात थी। लेकिन फिर सरकार बदल गई। बीजेपी सरकार में आई तो उसका भी वही अजेंडा रहा, और उसने एनजेएसी के लिए संविधान में संशोधन किया। इसमें राज्यों ने भी साथ दिया। एनजेएसी खारिज हो चुका है लेकिन फिर भी सरकार की ओर से कलीजियम सिस्टम पर सवाल उठाए जाते रहे हैं। केंद्र सरकार का यह स्टैंड रहा है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता की बात तब शुरू होती है जब जजों की नियुक्ति हो जाती है, उससे पहले नहीं।