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ये तेरी-मेरी यारी… नडाल-फेडरर ही नहीं, इन नेताओं की दोस्ती के किस्से भी आपको कर देंगे हैरान – friendship of these politicians is no less than nadal-federer


हाल के कुछ साल में दुनिया ने शायद ही ऐसी तस्‍वीर देखी थी। दो सबसे बड़े प्रतिद्वंदी लेकिन साथ रोते हुए। टेनिस के महान खिलाड़ी रोजर फेडरर का आखिरी मैच था। लेवर कप में। 22 ग्रैंड स्लैम खिताब जीत चुके फेडरर करियर के आखिरी मैच के बाद अपने जज्‍बातों पर काबू नहीं रख सके। वह फूट-फूट कर रोने लगे। सिर्फ फेडरर ही नहीं, इस खेल में उनके सबसे बड़े प्रतिद्वंदी रहे राफेल नडाल भी अपने आंसुओं को नहीं रोक पाए। दोनों के साथ रोने की तस्‍वीरें पूरी दुनिया ने देखीं। खेल ही नहीं, दोस्‍ती की ऐसी मिसालें भारतीय राजनीति में भी हैं। आइए, यहां उन किस्‍सों के बारें में जानते हैं।

राजीव- राजेश थे पक्‍के दोस्‍त

राजेश पायलट सचिन पायलट के पिता थे। कांग्रेस में उनकी एंट्री गांधी परिवार के जरिये हुई। आखिरी सांस तक वह कांग्रेस में रहे। राजेश पायलट पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बहुत अच्‍छे दोस्‍त थे। राजनीति में कदम रखने से पहले वह भारतीय वायुसेना में थे। बतौर पायलट उन्‍होंने वायुसेना में 13 साल बिताए थे। राजेश पायलट और राजीव गांधी की कई मंचों पर साथ तस्‍वीरें देखने को मिलती हैं। दोस्‍ती होने के बावजूद राजेश पायलट कांग्रेस को कभी आईना दिखाने से नहीं चूकते थे। राजीव गांधी की हत्‍या के बाद कांग्रेस में काफी उथल-पुथल हुई थी। तब पायलट ने भी अपने तेवर दिखाए थे। लेकिन, उन्‍होंने कांग्रेस से कभी नाता नहीं तोड़ा। दौसा के एक सड़क हादसे में राजेश पायलट की मृत्यु हो गई थी। उसके बाद उनकी पत्नी रमा पायलट और सचिन पायलट दौसा लोकसभा सीट से सांसद बने। राजेश पायलट और राजीव गांधी की जोड़ी के बाद राहुल गांधी और सचिन पायलट की जोड़ी को भी उसी रूप में देखा जा रहा है।

गजब के थे अटल और नरसिम्‍हा राव के रिश्‍ते

अलग-अलग पार्टियों में होते हुए भी अटल बिहारी वाजपेयी और नरसिम्हा राव के बीच गजब का तालमेल और दोस्ती थी। दोनों ने कई मौकों पर इसकी बानगी दी। 1991 में जब देश दिवालिया होने की कागार पर था तब पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में उदारीकरण की नीति लागू हुई थी। ऐसे ही अटल बिहारी वाजपेयी के शासन में देश ने भारी दबाव के बावजूद परमाणु परीक्षण किया था। इस दौरान दोनों ने एक-दूसरे का भरपूर साथ दिया। यहां तक कई मौकों पर राव ने अपनी पार्टी के नेताओं के बजाय वाजपेयी पर भरोसा जताकर उन्हें अहम जिम्मेदारियां दीं। ऐसा ही एक मौका 1994 में आया था। पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग में एक प्रस्ताव रखा था। यह कश्मीर में कथित मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर था। राव ने भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए एक टीम बनाई थी। इस टीम में उन्‍होंने वाजपेयी को भी शामिल किया था। तब वाजपेयी विपक्ष के नेता होते थे।

नीतीश-लालू की जोड़ी

कहते हैं राजनीति अपनी जगह है और रिश्ते अपनी जगह। नीतीश कुमार और लालू यादव की दोस्ती किसी से छुपी नहीं है। दोनों ने एक साथ छात्र राजनीति में कदम रखा था। साठ के दशक के आखिर में दोनों ने पटना में एक साथ पैर जमाए। लालू राजनीति छोड़ पटना के बीएन कॉलेज से ग्रेजुएशन करके सरकारी नौकरी तलाशने लगे थे। इसके उलट नीतीश कुमार इंजीनियरिंग करके भी राजनीति में ही जमे रहे। वह इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स की यूनियन मजबूत करने में जुटे गए। 1973 में तेजी से समीकरण बदला। लोहिया की जलाई मशाल बिहार में धधक रही थी। इसे कर्पूरी ठाकुर ने थाम रखा था। जयप्रकाश नारायण ने इसे मजबूती दी। लालू की स्टूडेंट पॉलिटिक्स में वापसी हुई। लालू और नीतीश दोनों ने लंबे समय तक बिहार की कमान संभाली। राजनीति में इन दोनों के रिश्‍ते बनते-बिगड़ते रहे। लेकिन, दोस्‍ती पर आंच नहीं आई। हाल में लालू की तबीयत खराब हुई तो नीतीश तुरंत अस्पताल दौड़ पड़े थे।

बेनी प्रसाद वर्मा और मुलायम सिंह भी कभी दोस्‍त थे

बेनी प्रसाद वर्मा मुलायम सिंह के काफी करीबी थे। दोनों में अच्‍छी दोस्‍ती और तालमेल था। यह समाजवादी पार्टी के शुरुआती दौर से था। इन लोगों का साथ करीब तीन दशक तक चला। बाद में बेनी प्रसाद वर्मा ने मुलायम का साथ छोड़कर अलग पार्टी बना ली। 2016 में फिर से सपा में बेनी की वापसी हुई। लेकिन, चुनाव में उनके बेटे का टिकट कट जाने पर फिर नाराज हो गए। राजनीति में इन दोनों की दोस्‍ती की मिसाल दी जाती थी।



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By admin