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नई दिल्ली: देश का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत को पीएम मोदी ने नेवी को सौंप दिया। 1997 में INS विक्रांत को रिटायर कर दिया गया और उसके 25 साल बाद एक बार फिर से आईएनएस विक्रांत का पुनर्जन्म हुआ है। आईएनएस विक्रांत का नाम नहीं बदला गया है और भारतीय नौसेना ने पहले के पोत विक्रांत के नाम पर ही इसका नाम रखा है। नए INS विक्रांत की ताकत अधिक है लेकिन पुराने आईएनएस की भी कहानी बड़ी दिलचस्प है। 1971 में भारत-पाक युद्ध में इस विमान वाहक पोत को लेकर पाकिस्तान काफी टेंशन में था। यही कारण था कि पाकिस्तान ने इसे खत्म करने की प्लानिंग की और अपने पनडुब्बी पीएनएस गाजी के जरिए इसे अंजाम देना चाहता था। पाकिस्तान को पूरा यकीन था कि वो इसमें कामयाब हो जाएगा लेकिन भारत की एक चाल के आगे वो मात खा गया।

INS विक्रांत को तबाह करने की पाकिस्तान की खतरनाक प्लानिंग
भारत का समुद्री इतिहास काफी समृद्ध है और गौरव से भरा है। इस बात का जिक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी शुक्रवार किया। भारतीय नौसेना के जहाजों के योगदान को जब भी याद किया जाएगा उसमें एक नाम आईएनएस विक्रांत का जरूर आएगा। 1961 में इसे आईएनएस विजयलक्ष्मी पंडित के नाम से सेवा में शामिल किया गया और बाद में इसका नाम बदलकर विक्रांत कर दिया गया। विक्रांत का मतलब ही होता है बहुादुर, साहसी, विजयी। विक्रांत के नौसेना में शामिल होने के बाद भारत का समुद्र में दबदबा बढ़ गया था। यही वजह थी कि पाकिस्तान इसको खत्म करना चाहता था।

आईएनएस विक्रांत के सिर्फ नाम से ही पाकिस्तान के मन में इतना खौफ बस चुका था कि वह किसी भी हाल में इस विमान वाहक पोत को नष्ट करना चाहता था। 1971 के युद्ध के दौरान पाक की ओर से पनडुब्बी पीएनएस गाजी को इस्तेमाल करने का फैसला किया गया। युद्ध के 20 साल बाद प्रकाशित किताब द स्टोरी ऑफ द पाकिस्तान नेवी में इस बात का जिक्र है कि कैसे 1971 में गाजी को बंगाल की खाड़ी में जाने के लिए कहा गया और INS विक्रांत को तबाह करने की जिम्मेदारी उसे दी गई।

जब भारत को पता चला पाकिस्तानी साजिश का पता
पाकिस्तान के पास गाजी एक ऐसी पनडुब्बी थी जिसमें समुद्री एरिया में जाकर टारगेट को निशाना बनाने की क्षमता थी। पाकिस्तान को भी यह पता था कि यदि वो विक्रांत को नुकसान पहुंचाने में कामयाब हुआ तो वह भारत पर युद्ध में बढ़त बना लेगा। 8 नवंबर 1971 को पीएनएस गाजी के कप्तान के पास यह मैसेज पहुंचता है कि आईएनएस विक्रांत को तबाह करने की जिम्मेदारी उन्हें दी गई है। 1971 स्टोरीज ऑफ ग्रिट एंड ग्लोरी फ्रॉम इंडो पाक वॉर में लिखा गया है कि बंबई से एक पाकिस्तानी जासूस ने अपने हैंडलर्स आईएनएस विक्रांत की जानकारी दी।

stories of grit and glory

8 नवंबर 1971 को जब भारतीय मेजर की ओर से ढाका और कराची के बीच जाने वाले संदेशों को सुनने की कोशिश की गई और अचानक उस दिन कई मैसेज जा रहे थे। भारत को इसका आभास तो हो गया कि कुछ बड़ा होने वाला है लेकिन बात पूरी तरह डिकोड नहीं हो पा रही थी कि आखिर पाकिस्तान की चाल क्या है। 10 नवंबर को वो कोड डिकोड हो गया। वहीं पहली बार यह पता चला कि पाकिस्तानी नौसेना कैसे भारतीय पोत आईएनएस विक्रांत को डुबो देना चाहता है।

गाजी का जब हमेशा के लिए हो गया काम तमाम
भारत को जब यह पता चल गया तो उसकी ओर से भी पाकिस्तान को चकमा देने की तैयारी की गई और उसे ऐसा जख्म दिया गया जिसे वो आज तक भूल नहीं पाया है। भारतीय नौसेना ने पाकिस्तान को चकमा दिया और आईएनएस राजपूत को आईएनएस विक्रांत बनाकर पेश किया। पाकिस्तानी पनडुब्बी गाजी आईएनएस राजपूत को भी तबाह नहीं कर पाया उसके विपरीत गाजी ही तबाह हो गया। पाकिस्तानियों को यह इनपुट था कि विक्रात विशाखापट्टनम में खड़ा है। भारत को यह पूरी जानकारी हो गई थी कि पाकिस्तान आखिर चाहता क्या है। पाकिस्तान को चकमा देने के लिए ऐसी तैयारी भारत ने बहुत जल्द की जिसकी उसकी भनक भी नहीं लगी।

71 में पूर्वी कमान के चीफ वाइस एडमिरल एन कृष्णन ने अपनी आत्मकथा अ सेलर्स स्टोरी में लिखा है कि आईएनएस राजपूत को विशाखापट्टनम से 160 KM की दूरी पर ले जाया गया और आईएनएस विक्रांत के कॉल साइन का प्रयोग करे। विक्रांत की रेडियो फ्रीक्वेंसी पर उससे भारी मात्रा में रसद की मांग करने को कहा गया जो एक बड़े जहाज के लिए जरूरी होता है। आईएनएस राजपूत को पाकिस्तान INS विक्रांत समझने की गलती कर बैठा। गाजी को लेकर अलग-अलग दावे भी किए जाते हैं। एक बात यह भी है कि भारत-पाकिस्तान का युद्ध शुरू होने से पहले ही भारत ने गाजी को तबाह कर दिया।

Khaibar and Shah Jahan ships sunk

3 दिसंबर 1971 को भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हो चुका था। इंडियन नेवी भी इसमें शामिल थी। 4 दिसंबर को इंडियन नेवी की ओर पाकिस्तान नेवी पर हमला किया गया। 4 दिसंबर को आईएनएस निर्घट ने पाकिस्तान के जहाज पीएनएस खैबर पर मिसाइल दागी। एक हमले से अभी कुछ समझ पाते कि दूसरी मिसाइल से खैबर डूब गया। पीएनएस शाहजहां पर भी हमला किया गया और उसे भी बहुत नुकसान पहुंचा। नेवी ने इस पूरे ऑपरेशन को ऑपरेशन ट्राइटेंड का नाम दिया। भारत को इस ऑपरेशन में कोई नुकसान नहीं पहुंचा लेकिन पाकिस्तान की ओर भारी तबाही हुई।



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By admin