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coronavirus in india: White House COVID response coordinator on situation on covid in upcoming years


नई दिल्लीः अमेरिका में कोरोना महामारी के शुरुआती साल में पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट आशीष झा ने सैकड़ों ट्विटर पोस्ट के जरिए लोगों को जागरूक किया। उन्होंने कई इंटरव्यू दिए और यहां तक कि सीएनएन पर 60 हजार बार उनका जिक्र किया गया। आशीष झा बताते हैं, ‘मुझे लगा मेरे काम न सिर्फ लोगों की मदद करना था, बल्कि वे जिस हालात में रह रहे थे, उसे समझने में भी मदद करना था।’ झा बताते हैं, ‘अगर किसी को आधी-अधूरी जानकारी से नुकसान पहुंचा है, तो आप उन्हें यूं ही न छोड़ें।’ आगे चलकर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने आशीष झा को वाइट हाउस का अगला कोविड रिस्‍पॉन्‍स को-ऑर्डिनेटर बनाया। उन्होंने अप्रैल में इस पद पर जेफ्री जेंट्स की जगह ली। उन्होंने मुश्किल भरे हालात में यह जिम्मेदारी संभाली थी। तब बेहद संक्रामक ओमिक्रॉन वेरिएंट की वजह से नई लहर का खतरा अधिक था। उधर, कोविड राहत पैकेज कांग्रेस में ठप पड़ा था। झा न तो महामारी विशेषज्ञ हैं और न ही कोई वायरोलॉजिस्ट नहीं हैं। इससे पहले उन्होंने फेडरल सरकार में कभी काम भी नहीं किया था।

जब वह छोटे थे, तभी उनका परिवार भारत से अमेरिका आ गया था। उन्होंने कोलंबिया से अर्थशास्त्र की पढ़ाई की। हार्वर्ड में मेडिकल स्कूल और पब्लिक-हेल्थ स्कूल के बाद वह वहां एक प्रमुख हेल्थ पॉलिसी रिसर्चर बन गए। उनका फोकस स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था की गुणवत्ता में सुधार पर रहा।

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क्या कोविड की स्थिति अब सामान्य बात हो गई है?
नए वेरिएंट का आना, अचानक मामलों में उछाल, कोविड की महामारी की मौजूदा स्थिति क्या सामान्य बात हो गई है? इस पर झा बताते हैं, ‘अगर हम कहें कि क्या अगले छह महीने या साल भर तक ऐसे हालात का सामना करना होगा, तो इसका जवाब हां है। लेकिन क्या हम अगले तीन या पांच साल तक ऐसी ही चुनौतियों से जूझने वाले हैं, तो मैं कहूंगा बिल्कुल नहीं।’ अभी नए वेरिएंट में इम्युनिटी को मात देने की क्षमता है। हमें पूरी आबादी को इस तरह बनाना है कि वायरस उसकी इम्युनिटी को भेद न सके। हमें नई पीढ़ी की वैक्सीन बनानी होगी। मुझे लगता है कि हम अगले 12 या 13 महीनों में यह काबयाबी हासिल कर लेंगे।

कोविड के मामले में ट्विटर की भूमिका मददगार
आशीष झा बताते हैं कि ट्विटर वैज्ञानिकों को साथ लाने और विचारों को साझा करने के मामले अद्भुत रहा है। हालांकि, कई लोगों ने इसका इस्तेमाल डर फैलाने में भी किया। जब सूचना की कमी होती है, तो ऐसी स्थिति में अफवाहों का बाजार हमेशा फलता-फूलता है।

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वह बताते हैं कि बिहार भारत के गरीब राज्यों में एक है। मेरे माता-पिता ने अपने बच्चों को अवसर मुहैया कराने के लिए पलायन किया। ऐसे में बतौर प्रवासी आप हमेशा कई तरह की संस्कृतियों के संपर्क में आते हैं। यह आपको दूसरों का नजरिया समझने में भी मदद करता है। हालांकि, यह भी सही है कि बतौर प्रवासी आप कहीं-न-कहीं बाहरी भी महसूस करते हैं।

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क्या हम ज्यादा गंभीर लोगों को कोविड से बचाने के लिए पर्याप्त कोशिश कर रहे हैं?
आशीष झा बताते हैं, ‘जब मैंने दो महीने पहले यह जिम्मेदारी संभाली, तो मैंने कहा था कि हमें एक रणनीति बनाने की जरूरत है। सबसे पहले हमें उन लोगों को सुरक्षित करना है, जिनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता कमजोर है। दूसरा, हमें बेहतर इलाज की सुविधा रखनी है।’ बीमारी के बाद होने वाली दिक्कतें शुरू से होती रही हैं। हम कोविड को लोगों के दिलों में डर की वजह नहीं बनने दे सकते।

दुनिया को कोविड से बचाने के लिए अमेरिका को और क्या करना चाहिए? इस सवाल के जवाब में वह बताते हैं कि राष्ट्रपति बाइडन का प्रशासन एक अरब वैक्सीन खुराक विदेश भेज रहा है। पहले ही 50 करोड़ से ज्यादा खुराक दूसरे देशों को दी जा चुकी है। हम कोविड से दो साल से जंग लड़ रहे हैं। विज्ञान ने इस लड़ाई में काफी मदद की है। आने वाले वर्षों में हमारे पास ऐसी वैक्सीन होगी, जो अधिक प्रभावी और कामयाब होंगी। इस वायरस को काबू में करने की हमारी क्षमता और बेहतर होगी।



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By admin