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india should become hindu nation: Why Hasan Suroor in favor that India should consider becoming Hindu nation: Author Hasan Suroor said time to consider Hinduism official religion yet remain secular in practice: RIP secularism Let’s try a Hindu democratic republic of India (T & C apply): भारत को हिंदू राष्‍ट्र बनने की दिशा में बढ़ना चाहिए… ब्रिटेन मॉडल का जिक्र कर जाने-माने लेखक ने रखी यह राय


Hinduism to become official religion: भारत में मंदिर-मस्जिद विवाद नया नहीं है। जब कभी ऐसा होता है, वह सुर्खियों में आ जाता है। अभी वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा की शाही ईदगाह मस्जिद पर हंगामा मचा है। हिंदू-मुस्लिम पक्ष के अपने-अपने दावे हैं। हालांकि, इन सबके चलते दोनों समुदाय के लोगों में कटुता बढ़ रही है। उनका लगातार ध्रुवीकरण हो रहा है। ये हालात क्‍यों बिगड़ते जा रहे हैं? इसका क्‍या समाधान है? ‘अनमास्किंग इंडियन सेक्‍युलरिज्‍म: वाई वी नीड अ न्‍यू हिंदू-मुस्लिम डील’ के लेखक हसन सुरूर ने इस पर अपनी राय रखी है। उन्‍होंने ब्रिटिश मॉडल को अपनाने की बात कही है। वह मानते हैं कि हकीकत का सामना करना होगा। उन्‍होंने भारत में हिंदू धर्म को ऑफ‍िश‍ियल र‍िलीजन के तौर पर मान्‍यता देने की बात कही है। सुरूर के मुताबिक, ब्रिटेन ईसाई मुल्‍क है। हालांकि, धर्म और जाति के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। ब्रिटिश नागरिक के तौर पर वह यह देख रहे हैं। इसने काम किया है। उन्‍होंने भारत में धर्मनिरपेक्ष का मॉडल फेल होने की बात कही है।

हिंदू-मुस्लिम संबंध रसातल में पहुंचे
हसन सुरूर ने इसे लेकर हमारे सहयोगी समाचार पत्र ‘टाइम्‍स ऑफ इंडिया’ में एक लेख लिखा है। उन्‍होंने लिखा है कि मंदिर- मस्जिद विवाद फिर से सामने आने लगे हैं। प्‍लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्‍ट 1991 का जिक्र कर सुरूर ने कहा कि इसकी मंशा थी कि इससे आगे विवादों पर रोक लगाई जा सकेगी। यह कानून किसी धार्मिक स्‍थल के चरित्र को बदलने की कोशिश पर रोक लगाता है। इसके अनुसार, 15 अगस्‍त 1947 को जो धार्मिक स्‍थल जैसा था वैसा ही रहेगा। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्‍या मामले में फैसला सुनाते हुए साफ किया था कि अन्‍य धार्मिक ढांचों के ऐतिहासिक विवाद के संबंध में वह ऐसी याचिकाओं को स्‍वीकार नहीं करेगा। सुरूर के मुताबिक, हिंदू-मुस्लिम संबंध बहुत निचले स्‍तर पर पहुंच गए हैं। इनमें उकसावे की हर गतिविधि स्‍वीकार हो रही है। बाबरी-राम मंदिर विवाद का जिक्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि इसमें दोनों ओर से भावनाओं को भड़काने वाले थे।

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कैसे धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत हो गया फेल?
ऐसा क्‍या हुआ कि सेक्‍युलरिज्‍म फेल हुआ? कैसे किसी के ध्‍यान में आए बगैर भारतीयता बहुसंख्‍यकवाद में तब्‍दील हो गई? हम यहां तक कैसे पहुंच गए? इन सवालों को उठाते हुए सुरूर ने इनके जवाब दिए। लेखक ने कहा कि इन सवालों पर आत्‍मचिंतन की जरूरत है। इसमें नेता, दक्षिणपंथी हिंदू राष्‍ट्रवादी, मुस्‍ल‍िम लीडरशिप सभी को सोचने की जरूरत है। उन्‍होंने भारतीय धर्मनिरपेक्षता को क्‍लासिक केस बताया जिसकी मंशा अच्‍छी थी लेकिन गलत आचरणों से यह सोच पटरी से उतर गई।

उन्‍होंने लिखा हिंदू-मुस्‍ल‍िम संबंधों को सेक्‍युलरिज्‍म यानी धर्मनिरपेक्षता के साथ मिलाना गलती थी। यह धारणा बनाना भी गलती थी कि संवैधानिक तौर पर धर्मनिरपेक्ष राष्‍ट्र में ही अल्‍पसंख्‍यक सुरक्षित रह सकते हैं। कारण है कि उदारवादियों की धर्मनिरपेक्षता की परिभाषा में नहीं आने वाले सांप्रदायिक बन जाते हैं। लिहाजा, दोनों समुदाय धर्मनिरपेक्षता बनाम सांप्रदायिकता की बहस में एक-दूसरे के लिए नफरत पैदा करते गए।

सुरूर ने कहा कि सालों से इसे लेकर काफी पोस्‍ट मार्टम हो चुका है कि क्‍यों सेक्‍युलरिज्‍म ने काम नहीं किया। इसके लिए कौन कसूरवार है। हालांकि, सच यह है कि हम जहां थे वहीं हैं। लिहाजा, अब कोशिश इस पूरे रायते से निकलने की होनी चाहिए। इसके लिए मुस्लिमों को कुछ कठिन विकल्‍पों के लिए तैयार रहना चाहिए।

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संतुलन साधने की जरूरत
सुरूर ने बुनियादी रूप से दो वास्‍तविकताओं का जिक्र किया है जिन्‍हें स्‍वीकार करने की जरूरत है। उन्‍होंने कहा है कि धर्मनिरपेक्षता के मोर्चे पर सरकारें डिलीवर करने में नाकाम हुई हैं। वहीं, हिंदू पब्लिक ओपीनियन में नाटकीय बदलाव आया है। भारत पर हिंदुओं का पहला हक है, यह धारणा गहरे बैठ गई है। कई उदारवादियों की भी यही धारणा है।

लेखक ने कहा कि इसका यह कतई मतलब नहीं है कि सेक्‍युलरिज्‍म को पूरी तरह छोड़ दिया जाए या अचानक धर्मशासित हिंदू राष्‍ट्र को अपना लिया जाए। अलबत्‍ता जरूरत ऐसे मॉडल को देखने की है जो आज की राजनीति और सामाजिक हकीकत के साथ मेल खाता हो। यह आदर्शवाद के बजाय वास्‍तविकता पर आधारित होना चाहिए। इसका मतलब यह है कि अल्‍पसंख्‍यकों के अधिकारों और बहुसंख्‍यक समुदाय की संवेदनाओं के बीच सही संतुलन तलाशा जाए। उन्‍होंने भारत के व्‍यापक हितों के लिए हिंदुओं की शिकायतों के समाधान पर जोर देने के लिए कहा है। फिर चाहे वो वास्‍तविक हों या काल्पनिक।

धर्मनिरपेक्षता का है विकल्‍प
हसन सुरूर के मुताबिक, यह धारणा कि धर्मनिपेक्ष राष्‍ट्र का विकल्‍प धर्मतंत्र है, गलत है। कोई देश आध‍िकारिक तौर पर एक धर्म को मान्‍यता दे सकता है। भारत के संदर्भ में वह हिंदू धर्म होगा। हालांकि, वह तब भी आचरण में सभी नागरिकों को बराबरी का दर्जा दे सकता है। वह सुनिश्चित कर सकता है कि उनके धार्मिक और नागरिक अधिकार सुरक्षित रहें। यह ब्रिटेन सहित कई पश्चिमी देशों में है जहां क्रिश्चियनिटी आधिकारिक धर्म है। लेकिन, सरकार का आचरण धर्मनिरपेक्ष है।



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