जब 1950 में बुद्ध के अनुयायी को लद्दाख ले आए थे नेहरू
भारत की आजादी के बाद 1948 में लद्दाख में पाकिस्तान की तरफ बड़ा हमला हुआ था। लद्दाख के लोग बड़ी मुश्किल में थे। इसके बाद जुलाई 1949 में पीएम नेहरू चार दिन के लेह दौरे पर पहुंचे थे। इस दौरे के दौरान बौद्ध समुदाय के बड़े चेहरे कुशोक बाकुला रेनपोचे ने नेहरू से एक आग्रह किया था। क्या भारत भगवान बुद्ध के दो खास अनुयायी को लद्दाख भेज सकते हैं? ये अनुयायी थे सरीपुत्ता और महामोगलाना (इन्हें बुद्ध के सबसे प्रिय अनुयायी आनंदा के बाद माना जाता था।) इस दौरे के बाद जब पीएम नेहरू दिल्ली लौटे तो उन्होंने शिक्षा मंत्रालय को भगवान बुद्ध के अनुयायी को लद्दाख भेजने के लिए व्यवस्था करने को कहा। सारी व्यवस्था हो जाने के बाद श्रीलंका और भारत के बड़े बौद्ध भिक्षुओं का एक दल भगवान बुद्ध के अनुयायी और उनके दो अनुयायी को 24 मई 1950 को कोलकाता (उस समय कलकत्ता) के दम दम एयरपोर्ट से श्रीनगर एयरपोर्ट लेकर आया गया। दो दिन तक श्रीनगर में गुजारने के बाद भगवान बुद्ध के अनुयायी को सेना के स्पेशल एयरक्राफ्ट से लेह लाया गया। इसके बाद अगले 79 दिन भगवान बुद्ध के अनुयायी सभी बड़े मठों और गांवों की यात्रा पर गए और लोगों को एकसाथ लाए। इसके बाद लोग अपनी समस्याओं को भूल एक दूसरे की मदद में लग गए।
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1974 में जब बुद्ध पूर्णिमा के दिन मुस्कुराए थे बुद्ध
देश की आजादी के पहले से ही भारत को परमाणु शक्ति संपन्न देश बनाने की कवायद शुरू हो गई थी। 1944 में डॉ होमी जहांगीर भाभा ने इसपर बड़े काम किए थे। 1974 में देश के पहले परमाणु परीक्षण के हीरो थे होमी सेठना, पीके आयंगर, राज गोपाल चिदंबरम, राजा रम्ना और विक्रम साराभाई। 14 मई को रात में न्यूक्लियर डिवाइस, जिसका परीक्षण होना था उसे अंग्रेजी के L अक्षर के आकार में सेट कर दिया गया था। इसके ठीक अगले दिन 15 मई को होमी सेठना पीएम इंदिरा गांधी के घर पहुंचते हैं। सेठना ने पीएम से पूछा अब आगे क्या करना है। तब पीएम इंदिरा ने गो अहेड (Go Ahead)। इंदिरा ने पूछा क्या तुम्हें डर लग रहा है.. तब सेठना ने कहा, कतई नहीं। होमी सेठना उस वक्त परमाणु ऊर्जा आयोग के चेयरमैन थे। आयंगर इस प्रोजेक्ट के डेप्युटी हेड थे। चिदंबरम धातु विज्ञानी थे। आयंगर इस परीक्षण को लेकर काफी आश्वस्त थे। 18 मई 1974 को हुए परमाणु परीक्षण में प्लूटोनियम का इस्तेमाल किया गया था। 18 मई को जब परमाणु परीक्षण के विस्फोट का बटन दबाने की बात आई तो सबने मिलकर इसे डोटेनेशन टीम के चीफ प्रणब दस्तीदार को इसकी जिम्मेदारी सौंपी। 18 मई को 8 बजकर 5 मिनट पर दस्तीदार विस्फोट का लाल बटन दबा दिया। कुछ देर बाद रेत का तूफान हवा में उठा। सभी वैज्ञानिक एक-दूसरे को गले लगाकर बधाई देने लगे। इधर, दिल्ली में पीएम इंदिरा बेहद अहम फोन का इंतजार कर रही थीं। होमी सेठना के पास जो हॉटलाइन था, वह काम नहीं कर रहा था। वो वहां से पोकरण गांव आए। बड़ी मुश्किल से पीएम आवास पर फोन लगा। सेठना ने फोन पर चिल्लाते हुए कहा ‘The Buddha is Smiling’। इंदिरा इतना सुनते ही झूम उठी। अब भारत एक परमाणु शक्ति संपन्न देश था। अमेरिका को इस विस्फोट की भनक तक नहीं लग पाई थी।
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वाजपेयी सरकार का ‘स्माइलिंग बुद्धा’ मिशन
1998 में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने पोकरण-2 करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था। अचानक किए गए इन परमाणु परीक्षणों से अमेरिका, पाकिस्तान समेत कई देश दंग रह गए थे। पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुआई में यह मिशन कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया कि अमेरिका समेत पूरी दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी। इससे पहले 1974 में इंदिरा गांधी की सरकार ने पहला परमाणु परीक्षण (पोकरण-1) कर दुनिया को भारत की ताकत का लोहा मनवाया था, इसे ऑपरेशन ‘स्माइलिंग बुद्धा’ नाम दिया गया था। 10 मई की रात योजना को अंतिम रूप देते हुए इसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ का नाम दिया गया था। विस्फोट से कुछ समय पहले तड़के 3 बजे परमाणु बमों को सेना के ट्रक के जरिए ट्रांसफर किया था। भारत ने पोकरण परीक्षण रेंज पर 5 परमाणु बम का परीक्षण किया था। परीक्षण के बाद पीएम वाजपेयी ने कहा था, ‘आज 15:45 बजे भारत ने पोकरण रेंज में अंडरग्राउंड न्यूक्लियर टेस्ट किया। इस परीक्षण के लिए एपीजे अब्दुल कलाम और राजगोपाल चिदंबरम को समन्वयक बनाया गया था। उनके साथ डॉ अनिल काकोदकर समेत 8 वैज्ञानिकों की टीम सहयोग कर रही थी। भारत ने 11 मई को 3 परमाणु परीक्षण जबकि 12 मई को 2 परीक्षण किए थे।
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बुद्ध पूर्णिमा पर नेपाल में पीएम मोदी
हाल के दिनों में भारत और नेपाल के बीच लिपुलेख मुद्दे को लेकर काफी तनाव रहा है। इसके अलावा नेपाल में चीन के बढ़ते दखल को लेकर भी भारत सतर्क रहा है। लेकिन पीएम मोदी ने 2014 में पीएम बनने के बाद से ही नेपाल को काफी तवज्जो देते रहे हैं। बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर वह आज भगवान बुद्ध के जन्मस्थल लुम्बिनी गए हैं। नेपाल जाने से पहले पीएम मोदी ने कहा कि भारत और नेपाल के संबंध ‘अद्वितीय’ हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि नेपाल की उनकी यात्रा का उद्देश्य ‘समय की कसौटी पर खरे’ उतरे दोनों देशों के संबंधों को और गहरा करना है। प्रधानमंत्री लुम्बिनी में बौद्ध संस्कृति और विरासत केंद्र के निर्माण की आधारशिला रखने के कार्यक्रम में भी हिस्सा लेंगे। मोदी ने कहा, ‘पवित्र मायादेवी मंदिर में दर्शन करने के अलावा, मैं लुम्बिनी के मठक्षेत्र में बौद्ध संस्कृति और विरासत के लिए इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के शिलान्यास समारोह में भी शामिल होउंगा।’ प्रधानमंत्री ने कहा कि वह नेपाल सरकार द्वारा महात्मा बुद्ध की जंयती से संबंधित समारोह में भी शिरकत करेंगे। लुम्बिनी, दक्षिण नेपाल की तराई में स्थित है और महात्मा बुद्ध का जन्म स्थान होने की वजह से बौद्धधर्म के सबसे पवित्र स्थानों में से एक है।
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बुद्ध जयंती पर नेपाल को साधेंगे पीएम मोदी
नेपाल और भारत के बीच बेटी-रोटी का रिश्ता रहा है। अगर पिछले कुछ सालों को देखें तो कुछेक मुद्दों पर दोनों देशों के बीच तनातनी रही है। लिपुलेख का मामला तो काफी तूल भी पकड़ा था। हालांकि, भारत ने अपने इस पड़ोसी देश को मुश्किल समय में लगातार मदद की है। पीएम मोदी की आज की यात्रा को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। अपनी यात्रा के दौरान मोदी मायादेवी मंदिर जाएंगे और एक विशेष प्रार्थना में शामिल होंगे। उनके साथ देउबा भी होंगे।
भगवान बुद्ध का शांति और अहिंसा संदेश के जरिए भारत ऐसे बढ़ रहा है आगे
दरअसल, भगवान बुद्ध ने दुनिया को करुणा और शांति संदेश दिया। भारत आजादी के बाद से अबतक दुनिया में बुद्ध के संदेश के जरिए ही कूटनीतिक करता रहा है। मामला चाहे यूक्रेन-रूस युद्ध का हो या फिर फिलीस्तीन-इजरायल जंग। भारत ने हमेशा शांति का पक्ष लिया है। यूक्रेन युद्ध में भारत ने संयुक्त राष्ट्र से लेकर हर अंतरराष्ट्रीय मंचों से युद्ध को तत्काल रोकने की अपील कर चुका है। रही बात परमाणु शक्ति संपन्न देश बनने की बात तो भारत का इस मामले रुख साफ है कि वह कभी भी पहले इन विनाशक हथियारों का इस्तेमाल नहीं करेगा।