नव संकल्प चिंतन शिविर न सिर्फ कांग्रेस बल्कि पूरे देश और आम जनों की अपेक्षाओं को पूरा करने वाला एक शिविर है। ऐसे समय जब पूरा देश बीजेपी की नीतियों से परेशान है, महंगाई आम लोगों के जीवन में सबसे बड़ा संकट बन गई है, युवाओं को रोजगार नहीं मिल रहा है, पेट्रोल और रसोई सिलेंडर आम लोगों के दायरे से दूर हो रहे हैं। इन सबके बीच बीजेपी लोगों के जख्मों पर यह कहकर नमक छिड़क रही है कि ये ही अच्छे दिन हैं। विकास का कोई भी पैरामीटर देखें, भारत पिछड़ रहा है। ऐसे में कांग्रेस का यह तीन दिवसीय शिविर हो रहा है। इसमें कांग्रेस खुद को इस बात के लिए तैयार करेगी कि आम लोगों को इन समस्याओं से निजात कैसे दिलाए। इन तीन दिनों में संगठन में बदलाव की दिशा तय होगी। अगले दो साल का रोडमैप तय होगा। पार्टी के जमीनी कार्यकर्ताओं में उत्साह का संचार होगा। आप देखेंगे कि तीन दिनों के बाद पार्टी किस स्पष्टता के साथ आगे बढ़ती है, आम जनों की आवाज बनती है। यह शिविर एक लैंडमार्क बनेगा।
लेकिन हालात बहुत विपरीत हैं। कई नए-पुराने नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। नेतृत्व को लेकर दुविधा है…
हर किसी के अच्छे-बुरे दिन होते हैं। जो गए उनकी बात करने से कोई फायदा नहीं। अब आगे बढ़ना होगा। इस शिविर में देश भर से कायकर्ताओं को बुलाया गया है। हर मुद्दे पर बातचीत के लिए अलग-अलग कमिटियां बनाई गई हैं। सभी की बात सुनी जाएगी। कार्यसमिति में इस फीडबैक पर विस्तार से चर्चा होगी। इसके बाद तमाम फैसले होंगे। ऐसे कठिन समय में देश को कांग्रेस से जो उम्मीद है, उसे पूरा करने लिए माकूल फैसले होंगे। सोनिया, राहुल, प्रियंका सभी लगातार बात कर रहे हैं। अगले कुछ दिन में तमाम बदलाव की तस्वीर साफ हो जाएगी और सभी सवालों का जवाब मिल जाएगा।
विपक्षी एकता की सूरत बनती नहीं दिख रही। क्या रास्ता है इसका?
विपक्षी एकता के लिए काम चल रहा है। इसकी तस्वीर भी साफ होगी। कांग्रेस उन सभी दलों से संपर्क में है जो केंद्र की बीजेपी सरकार की नीतियों के खिलाफ है और उसे गद्दी से हटाना चाहती है। खुद बीजेपी के पुराने साथी मसलन शिवसेना और अकाली दल उससे अलग हो चुके हैं, जो सालों से साथ थे। तमाम दलों के साथ मिलकर यूपीए प्लस बनेगा। 2004 की तरह 2024 में यही नया यूपीए देश की जनता के सामने विकल्प के रूप में आएगा। कांग्रेस इस विपक्षी एकता की धुरी बनेगी। इस पर भी उदयपुर में कई तरह की स्पष्टता आएगी।
लेकिन क्या तमाम क्षेत्रीय दल कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार करेंगे जैसा 2004 में किया था?
राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी का कोई विकल्प बन सकता है तो वह कांग्रेस ही है। तमाम क्षेत्रीय दलों की अपनी महत्वपूर्ण भूमिका है लेकिन उनकी कहीं न कहीं एक सीमा है। पूरे देश में हर राज्य में कोई एक दल अगर धुरी है तो वह कांग्रेस है। ऐसे में कांग्रेस के बिना विपक्ष की धुरी की बात करना संभव नहीं है। कांग्रेस पहले की तरह सभी को साथ लेकर चलेगी और तमाम दल इसे देश और आम जनों के हित में स्वीकार भी करेंगे।
पार्टी के अंदर आपकी भूमिका को लेकर भी कई तरह की चर्चा उठती रहती है। आपको क्या दायित्व मिलेगा?
राजनीति में कभी व्यक्तिगत हित की बात नहीं होती। अभी कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी ने कहा कि कांग्रेस ने कई नेताओं को बहुत कुछ दिया, अब बारी है पार्टी को उनसे कुछ मिलने की। हम सबको मिलकर अभी पार्टी को मजबूती से खड़ा करना है। इसके लिए पार्टी मुझे जो दायित्व देगी उसे लेने को तैयार हूं। लेकिन मेरी व्यक्तिगत इच्छा इतनी जरूर है कि राजस्थान में मैं पार्टी को इतना मजबूत करूं जिससे अगले साल विधानसभा चुनाव में फिर से उसकी सत्ता में वापसी हो जाए।
अगर राजस्थान की बात की जाए तो वहां पिछले दो लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली। वहां हर पांच साल पर राज्य की सरकार भी बदलती रहती है। ऐसे में चुनौतियां तो बहुत हैं…
चुनौतियों से जूझेंगे और हर मिथ को बदलेंगे। अभी से सरकार और संगठन आपस में मिलकर काम करने लगें तो कोई वजह नहीं कि हम दोबारा सरकार न बनाएं। अगले साल विधानसभा चुनाव जीते तो फिर 2024 आम चुनाव में भी हम पिछले दो चुनाव से कहीं बेहतर प्रदर्शन करेंगे।
हाल के दिनों में राजस्थान में कुछ सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं। सरकार से कहां चूक हुई?
राजस्थान जैसे शांतिप्रिय प्रदेश में ऐसी हिंसक घटनाएं साधारण नहीं हैं। ऐसी घटनाओं से वैमनस्य फैलता है। मेरा विनम्र अनुरोध होगा कि सरकार-प्रशासन बिना जाति-धर्म-विचार देखे इसमें शामिल लोगों के खिलाफ इतनी सख्त कार्रवाई करे कि आगे यह मिसाल बने और फिर कोई ऐसी हरकत करने की हिमाकत नहीं करे।